tenant rights india: किराए पर रहने वालों के लिए जरूरी जानकारी, मकान मालिक कब और कितना किराया बढ़ा सकता है, अब ये जानना बेहद जरूरी हो गया है भारत जैसे देश में जहां लाखों लोग किराए के मकानों में रहते हैं, वहां अक्सर एक सवाल सबके मन में आता है कि क्या मकान मालिक जब चाहे तब किराया बढ़ा सकता है? कई बार किराएदारों को बिना किसी सूचना या पूर्व जानकारी के मकान मालिक की ओर से किराया बढ़ाने की बात सुननी पड़ती है, जिससे असहज स्थिति बन जाती है।
लेकिन अब आपको घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि देश के कानून और किराया अधिनियम में साफ-साफ बताया गया है कि एक साल में किराया कितना बढ़ाया जा सकता है और किन शर्तों पर ये वैध होता है।
किराया बढ़ाने को लेकर कानून क्या कहता है
भारत में हर राज्य का अपना किराया नियंत्रण कानून है, लेकिन ज्यादातर राज्यों में नियम एक जैसे हैं। सामान्य तौर पर मकान मालिक हर साल किराया बढ़ा सकता है, लेकिन इसकी अधिकतम सीमा तय है। ज्यादातर जगहों पर यह सीमा 10% प्रति वर्ष तय की गई है। यानी अगर आप ₹10,000 किराया दे रहे हैं तो अगले साल ₹11,000 से ज्यादा नहीं मांगा जा सकता।
इसके अलावा किराया बढ़ाने से पहले मकान मालिक को लिखित सूचना कम से कम 3 महीने पहले देनी होती है। अगर किरायेदार सहमत नहीं है, तो वह किराया नियंत्रण अदालत या उपखंड अधिकारी के पास शिकायत कर सकता है। कानून में यह भी प्रावधान है कि किराया एकतरफा नहीं बढ़ाया जा सकता जब तक कि रेंट एग्रीमेंट में इसकी स्पष्ट शर्त न हो।
रेंट एग्रीमेंट की भूमिका बहुत अहम
अक्सर लोग बिना लिखित किरायानामा यानी रेंट एग्रीमेंट के ही मकान किराए पर ले लेते हैं। यही सबसे बड़ी गलती होती है क्योंकि ऐसे में भविष्य में किसी विवाद की स्थिति में किराएदार कमजोर पड़ जाता है।
एक अच्छा और स्पष्ट रेंट एग्रीमेंट वह होता है जिसमें किराया, जमा राशि, किराया बढ़ने की शर्तें, अवधि और अन्य नियम साफ-साफ लिखे होते हैं। यदि एग्रीमेंट में लिखा है कि हर साल 10% तक किराया बढ़ाया जाएगा, तो ही मालिक वैध रूप से उतना बढ़ा सकता है। वरना मनमानी करने पर किरायेदार कानूनी कार्रवाई कर सकता है।
किराएदार के अधिकार क्या कहते हैं कानून में
भारत में किराएदार के अधिकारों को लेकर भी पूरी व्यवस्था है। अगर कोई मकान मालिक जबरन किराया बढ़ाता है, या किरायेदार को धमका कर खाली कराने की कोशिश करता है, तो किरायेदार सीधे किराया नियंत्रण प्राधिकरण या SDM कोर्ट में जा सकता है।
इसके अलावा यदि किराया समय पर दिया जा रहा है, तो मकान मालिक बिना ठोस वजह के मकान खाली नहीं करवा सकता। कानून किराएदार को रहने की स्थिरता और सुरक्षा देता है। यह भी जरूरी है कि किराया बढ़ाने की प्रक्रिया साफ, लिखित और सहमति के साथ हो।
मकान मालिक और किरायेदार के बीच संतुलन जरूरी
कई बार विवाद सिर्फ इस वजह से होता है क्योंकि दोनों पक्ष एक-दूसरे से ठीक से संवाद नहीं करते। मकान मालिक को भी यह समझना चाहिए कि किराएदार उसकी संपत्ति का सम्मान कर रहा है और उसे नियमित किराया मिल रहा है, तो जबरदस्ती किराया बढ़ाना या मकान खाली करवाना सही नहीं है।
वहीं किराएदार को भी मकान मालिक की संपत्ति की देखभाल करनी चाहिए और अगर रेंट एग्रीमेंट में शर्तें पहले से तय हैं, तो उनके अनुसार सहमति देनी चाहिए। इस संतुलन से दोनों पक्षों को फायदा होता है और विवाद की नौबत नहीं आती।
कब और कैसे बढ़ सकता है किराया
अगर रेंट एग्रीमेंट एक साल से ज्यादा का है और उसमें किराया बढ़ाने की समय-सीमा नहीं लिखी गई है, तो मकान मालिक को सालाना 5% से 10% तक ही बढ़ोतरी की इजाजत मिलती है, वो भी सूचना देने के बाद।
कुछ विशेष शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, पुणे, लखनऊ में स्थानीय नियम थोड़े अलग हो सकते हैं, लेकिन नियमों का मूल यही है – सहमति और सूचना के साथ किराया बढ़े। अगर कोई मकान मालिक बिना सूचना और एग्रीमेंट के किराया दोगुना करने की बात करता है, तो यह पूरी तरह से गलत है और किराएदार को इसका विरोध करना चाहिए।
👉 यह जानकारी जरूर शेयर करें ताकि हर किराएदार अपने अधिकारों को जाने और मकान मालिक के साथ कानूनी संतुलन बनाए रखे।