Supreme Court: सरकारी कर्मचारियों के ट्रांसफर को लेकर आए दिन विवाद होते रहते हैं। कोई अधिकारी ट्रांसफर को दुर्भावना से प्रेरित मानता है, तो कोई कोर्ट की शरण में जाकर उसे रुकवाने की कोशिश करता है। ऐसे ही एक केस में अब सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। इस फैसले से यह साफ हो गया है कि ट्रांसफर सरकारी नौकरी का हिस्सा है और इसे चुनौती देना केवल उसी स्थिति में संभव है जब यह पूरी तरह मनमानी और बदले की भावना से किया गया हो।
यह फैसला उस केस में आया जिसमें एक कर्मचारी का ट्रांसफर हुआ था और उसने हाईकोर्ट से उस आदेश को रद्द करवाया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को पलटते हुए कहा कि ट्रांसफर पर रोक लगाने के लिए केवल ‘असहमति’ या ‘अपनी सुविधा’ का तर्क देना पर्याप्त नहीं है।
ट्रांसफर को चुनौती देने के लिए चाहिए ठोस आधार
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी स्पष्ट किया कि सरकारी सेवा में ट्रांसफर कोई सजा नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक जरूरतों का हिस्सा है। यदि कोई कर्मचारी ट्रांसफर के आदेश को केवल इस आधार पर चुनौती देता है कि वह निजी तौर पर असहज है या उसे घर से दूर भेजा जा रहा है, तो यह कोर्ट में मान्य नहीं होगा।
कोर्ट ने यह भी कहा कि जब तक यह साबित न हो कि ट्रांसफर राजनीतिक दबाव, भ्रष्टाचार या निजी दुर्भावना से किया गया है, तब तक कोर्ट इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा। ट्रांसफर पर सवाल तभी उठ सकते हैं जब उसमें नियमों का सीधा उल्लंघन हो।
प्रशासनिक व्यवस्था की मजबूती के लिए जरूरी है ट्रांसफर नीति
फैसले में जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने कहा कि सरकार के किसी भी विभाग को सुचारु रूप से चलाने के लिए ट्रांसफर एक महत्वपूर्ण साधन है। इससे प्रशासन में संतुलन बना रहता है और कर्मचारी एक ही जगह लंबे समय तक रहकर व्यक्तिगत लाभ नहीं उठा पाते।
कोर्ट ने यह भी माना कि कुछ मामलों में ट्रांसफर नीति का दुरुपयोग हुआ है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हर ट्रांसफर गलत है। ट्रांसफर में पारदर्शिता और समानता होनी चाहिए, लेकिन उसका विरोध केवल असुविधा के आधार पर नहीं किया जा सकता।
हाईकोर्ट का आदेश क्यों पलटा गया
इस केस में एक सरकारी कर्मचारी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी कि उसका ट्रांसफर उसकी सहमति के बिना और पारिवारिक जिम्मेदारियों की अनदेखी करते हुए किया गया है। हाईकोर्ट ने उस याचिका को सही मानते हुए ट्रांसफर आदेश रद्द कर दिया था।
लेकिन जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, तो वहां स्पष्ट किया गया कि व्यक्तिगत कठिनाइयाँ ट्रांसफर रोकने का आधार नहीं बन सकतीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए था, क्योंकि ट्रांसफर नियमों के तहत और सक्षम अधिकारी द्वारा किया गया था।
इस फैसले का कर्मचारियों पर क्या असर होगा
इस फैसले से सरकारी विभागों में एक मजबूत संदेश गया है कि ट्रांसफर से जुड़ी शिकायतें तभी मान्य होंगी जब वे नियमों के उल्लंघन पर आधारित हों। अब कर्मचारी सिर्फ अपनी सुविधा या पारिवारिक स्थिति का हवाला देकर ट्रांसफर रुकवाने की उम्मीद नहीं कर सकते।
वहीं, सरकार को भी अब ट्रांसफर के आदेश पारदर्शी तरीके से करने होंगे ताकि किसी तरह का शक न रह जाए। फैसले के बाद अब ट्रांसफर पर कोर्ट की शरण लेने वालों की संख्या में कमी आने की उम्मीद है।