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Politics News: चिराग पासवान के पास बिहार में बड़ा मौका, लेकिन बीजेपी का भरोसा बनाना चुनौती

Politics News: बिहार की राजनीति एक बार फिर उस मोड़ पर है जहां हर कदम पर संभावनाएं हैं और हर संभावना के पीछे सियासी गणित छुपा है। ऐसे वक्त में चिराग पासवान का नाम फिर से चर्चा में है। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता और दिवंगत नेता रामविलास पासवान के बेटे चिराग के सामने अब मौका है खुद को साबित करने का खासकर 2025 के विधानसभा चुनाव और उससे पहले लोकसभा चुनाव 2024 के लिहाज़ से।

लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या बीजेपी को चिराग पासवान पर भरोसा है? क्या वो उन्हें एनडीए के मजबूत स्तंभ के तौर पर देखती है, या फिर उन्हें बस परिस्थितियों के हिसाब से इस्तेमाल करने लायक समझती है?

एनडीए में चिराग की अहमियत बढ़ी है

बिहार में जेडीयू और बीजेपी के रिश्तों में दरार के बाद एनडीए की जो सूरत बनी है, उसमें चिराग पासवान एक अहम चेहरा बनकर उभरे हैं। उनकी पार्टी ने भले ही पिछले विधानसभा चुनावों में ज्यादा सीटें ना जीती हों, लेकिन उनका वोट ट्रांसफर कराने का दम दिखा।

 

चिराग ने खुद को “मोदी का हनुमान” बताकर एक मजबूत संदेश देने की कोशिश की थी कि वो बीजेपी के साथ खड़े हैं, भले ही जेडीयू से उनका विरोध हो। यही स्टैंड अब उन्हें एक बार फिर भाजपा के करीब लाता दिख रहा है। एनडीए में अब जब सीटों की हिस्सेदारी और रणनीति पर बात होगी, तो चिराग की भूमिका को नज़रअंदाज करना मुश्किल होगा।

चिराग की लोकप्रियता और सीमाएं

चिराग पासवान युवाओं और दलित मतदाताओं के बीच एक खास अपील रखते हैं। रामविलास पासवान की विरासत उन्हें एक मजबूत राजनीतिक आधार देती है, खासकर दलित वोट बैंक में।

लेकिन यहीं उनकी सीमाएं भी शुरू होती हैं। उनके पास ना तो संगठन का मजबूत ढांचा है और ना ही ऐसे चेहरे जो हर इलाके में उनके लिए जमीन पर काम करें। कई जगहों पर उनकी पार्टी अब भी व्यक्तिगत छवि पर टिकी हुई है।

बीजेपी जैसी पार्टी, जो चुनावी मशीनरी में माहिर है, वो ऐसे साथी की तलाश में होती है जो हर सीट पर खुद को साबित कर सके। चिराग का असर फिलहाल सीमित सीटों तक ही है, और बीजेपी को इस बात का अंदाजा है।

 

बीजेपी की रणनीति और भरोसे की बात

बीजेपी बिहार में अब उस मोड़ पर है जहां उसे नए गठबंधन की ज़रूरत है। नीतीश कुमार के अलग होने के बाद बीजेपी को ऐसे चेहरों की तलाश है जो ना सिर्फ वोट दिला सकें, बल्कि संगठनात्मक मजबूती भी दें।

चिराग पासवान इस तस्वीर में फिट तो बैठते हैं लेकिन उनके साथ जुड़ी अनिश्चितताएं बीजेपी को सावधान भी करती हैं। बीजेपी को भरोसा तभी होगा जब चिराग स्पष्ट रूप से सीटों की मांग के बजाय जीत के फार्मूले पर बात करेंगे।

बीजेपी को चिराग से यह उम्मीद है कि वो पार्टी के बड़े नेतृत्व के सामने समर्पण भाव से खड़े हों, ताकि चुनावी तालमेल और सीट बंटवारे में विवाद की गुंजाइश न बचे।

जनता के बीच चिराग की पकड़ और परख

बिहार में जनता आज भी चिराग को उनके पिता रामविलास की नजर से देखती है। लेकिन अब वक्त बदल गया है। जनता को अब ठोस नतीजे चाहिए, सिर्फ भावनाओं से वोट नहीं मिलते। चिराग को अपने भाषणों से आगे बढ़कर जमीनी हकीकत पर उतरना होगा। गांव-देहात की राजनीति में दलितों के बीच अपनी पकड़ मज़बूत करनी होगी और अपनी पार्टी के नेताओं को सक्रिय करना होगा। अगर वो ये कर पाते हैं, तो बीजेपी को भी ये समझ में आएगा कि चिराग सिर्फ चेहरा नहीं, बल्कि रणनीतिक साथी भी बन सकते हैं।

 

राजनीति में भरोसा धीरे-धीरे बनता है

राजनीति में कोई भी रिश्ता स्थायी नहीं होता, भरोसे का रिश्ता भी वक्त के साथ बनता है। चिराग पासवान के पास मौका है कि वो बिहार में न सिर्फ अपने लिए, बल्कि एनडीए के लिए भी मजबूत विकल्प साबित हों। बीजेपी को अगर लगेगा कि चिराग सीट जीत सकते हैं, वोट ट्रांसफर करा सकते हैं, और विपक्ष के लिए चुनौती बन सकते हैं। तभी वो उन्हें पूरी ताकत से साथ लेगी। वरना राजनीति में दूरी बनाए रखना भी एक रणनीति होती है। अभी चिराग को नतीजों से ज़्यादा भरोसे का माहौल बनाना होगा। जनता के बीच भी और बीजेपी के नेताओं के बीच भी।

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