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India Crime News: सिर्फ ₹10 हजार में जेल से रिहाई कराता था ये गैंग, पुलिस जांच में हुआ बड़ा खुलासा

India Crime News: जिस सिस्टम पर कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी होती है, वहां अगर कोई गैंग महज ₹10 हजार में जेल से रिहाई का जुगाड़ करवा दे, तो सोचिए हालात क्या होंगे। ऐसा ही एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने न सिर्फ पुलिस को सकते में डाल दिया बल्कि पूरे प्रशासन की नींद उड़ा दी है। उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में सक्रिय यह गैंग ऐसे लोगों को टारगेट करता था जो छोटी-मोटी धाराओं में जेल चले जाते थे। फिर इस गैंग के लोग परिजनों से संपर्क कर ₹10 से ₹20 हजार लेकर नकली दस्तावेजों, झूठे जमानती, और फर्जी वकीलों की मदद से आरोपी को कुछ ही दिनों में जेल से बाहर निकाल देते थे।

कैसे चलता था रिहाई का गोरखधंधा

जांच में सामने आया है कि ये गैंग थानों के बाहर और कोर्ट परिसरों के पास घूमने वाले लोगों को अपनी टीम में शामिल करता था। इनका नेटवर्क इतना मजबूत था कि एक आरोपी के जेल जाते ही कुछ ही घंटों में उसके परिवार तक गैंग का आदमी पहुंच जाता था।

 

वो खुद को वकील या किसी सरकारी कर्मचारी का आदमी बताता और कहता कि कुछ पैसा देने पर जल्दी जमानत करवा देगा। फिर ₹10 से ₹20 हजार में पूरा मामला निपटाया जाता। दस्तावेज जाली होते, गारंटी देने वाला फर्जी होता और कोर्ट में पेशी तक की कहानी बनाकर आरोपी को जेल से बाहर निकाला जाता।

जमानत में इस्तेमाल होते थे फर्जी दस्तावेज

गैंग के पास पहले से तैयार फर्जी आधार कार्ड, वोटर ID, जमानतदार के पते और पहचान के कागज रहते थे। आरोपी को जमानत दिलाने के लिए ये कागजात कोर्ट में पेश किए जाते थे और कई बार तो जज और सरकारी वकील तक को शक नहीं होता था।

गैंग के सदस्य कोर्ट स्टाफ से मिलकर पेशी के तारीख में भी गड़बड़ी कर देते थे ताकि मामला जल्दी निपट जाए। बाद में जब असली जांच होती या पुलिस वेरिफिकेशन की जरूरत पड़ती तो पता चलता कि जिस व्यक्ति ने जमानत दी थी वो तो है ही नहीं, और दस्तावेज फर्जी थे।

 

पुलिस को कैसे हुआ गैंग का पता

इस गैंग का भंडाफोड़ तब हुआ जब एक केस में जमानत देने वाले की पुलिस वेरिफिकेशन के दौरान कोई पहचान नहीं मिली। पुलिस ने जब जांच शुरू की तो पता चला कि ऐसा मामला अकेला नहीं है। कुछ ही दिनों में तीन से चार केस सामने आए जिसमें फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल कर आरोपियों को जेल से बाहर निकाला गया था।

जांच गहराई में गई तो पूरे रैकेट का पर्दाफाश हुआ। पुलिस ने कई गैंग के सदस्यों को पकड़ा और उनसे पूछताछ में सामने आया कि इस धंधे में लोअर कोर्ट के क्लर्क, कुछ प्राइवेट वकील और एक दो सस्पेंडेड पुलिसकर्मी भी शामिल थे।

क्या कहता है कानून और प्रशासन

भारतीय दंड संहिता (IPC) में ऐसे मामलों के लिए धोखाधड़ी, सरकारी दस्तावेजों की जालसाजी और न्याय प्रक्रिया में बाधा डालने जैसी धाराएं लगती हैं। पकड़े गए गैंग के सदस्यों पर भी इन्हीं धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज हुआ है और उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजा गया है।

 

प्रशासन की ओर से कहा गया है कि अब हर जमानती की वेरिफिकेशन प्रक्रिया को और सख्त किया जाएगा। साथ ही कोर्ट में पेश होने वाले दस्तावेजों की डिजिटल सत्यापन प्रणाली भी शुरू करने पर विचार हो रहा है ताकि इस तरह की धोखाधड़ी दोबारा न हो।

समाज पर असर और जरूरी चेतावनी

इस घटना ने एक बार फिर से दिखा दिया है कि कैसे सिस्टम की छोटी-छोटी खामियों का फायदा उठाकर लोग पूरे कानून को ठेंगा दिखा सकते हैं। यह न केवल पुलिस की साख को चोट पहुंचाता है बल्कि कोर्ट के फैसलों पर भी सवाल उठाता है।

सामान्य जनता को भी अब सतर्क रहने की जरूरत है। अगर कोई भी व्यक्ति जेल से जमानत दिलाने के नाम पर पैसा मांगता है या बिना किसी वकील की मदद के केस निपटाने का दावा करता है, तो तुरंत पुलिस को सूचना दें। ऐसी घटनाएं सिर्फ उन लोगों को फायदा पहुंचाती हैं जो अपराध करके भी सजा से बच जाते हैं, और सिस्टम को बदनाम करते हैं।

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