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EV और ऑटो सेक्टर पर संकट: रेयर-अर्थ मैगनेट की कमी से रुक सकता है उत्पादन

EV News: अब तक इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर जितना जोश दिखाई दे रहा था, उतनी ही तेज़ी से इस सेक्टर में एक नया संकट खड़ा होता दिख रहा है। ये संकट किसी और चीज़ का नहीं बल्कि रेयर-अर्थ मैगनेट की भारी कमी का है। ये वही मैगनेट हैं जो इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EVs) के मोटर और अन्य हाई-टेक उपकरणों में सबसे जरूरी पार्ट होते हैं।

भारत समेत दुनियाभर की EV कंपनियां और पारंपरिक ऑटो निर्माता इस समय चिंता में हैं क्योंकि अगर ये किल्लत आगे भी जारी रही तो गाड़ियों का उत्पादन रुक सकता है, दाम बढ़ सकते हैं और ग्राहकों को इंतज़ार करना पड़ सकता है।

रेयर-अर्थ मैगनेट क्या हैं और क्यों हैं इतने जरूरी

 

रेयर-अर्थ मैगनेट यानी दुर्लभ तत्वों से बने चुम्बक, जो अपनी ताकत और टिकाऊपन के लिए जाने जाते हैं। ये मैगनेट खासतौर पर नियोडाइमियम (Neodymium) और प्रासियोडाइमियम (Praseodymium) जैसे तत्वों से बनाए जाते हैं। इनका इस्तेमाल EVs की मोटर, विंड टरबाइन, मोबाइल फोन, मेडिकल डिवाइस और सैन्य उपकरणों तक में होता है।

एक इलेक्ट्रिक गाड़ी में इस्तेमाल होने वाली मोटर के लिए बेहद सशक्त मैगनेट चाहिए होता है, जो हल्का भी हो और गर्मी में भी काम करे। यही वजह है कि इन रेयर-अर्थ मैगनेट्स की मांग पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़ी है, लेकिन सप्लाई उस हिसाब से नहीं बढ़ पाई।

चीन पर अत्यधिक निर्भरता बन रही है खतरा

दुनियाभर में रेयर-अर्थ मटेरियल्स का सबसे बड़ा उत्पादक देश चीन है, जो कुल वैश्विक उत्पादन का लगभग 60-70% हिस्सा अकेले सप्लाई करता है। चीन की नीतियों और एक्सपोर्ट कंट्रोल के चलते अब यह संकट और गहरा गया है।

 

हाल ही में चीन ने कुछ रेयर-अर्थ मटेरियल्स के एक्सपोर्ट पर नई शर्तें लगाई हैं। इससे जापान, अमेरिका, यूरोप और भारत जैसे देशों में सप्लाई चेन प्रभावित हो रही है। भारत भी इन कच्चे माल के लिए चीन पर काफी हद तक निर्भर है, जिससे घरेलू EV कंपनियों के लिए संकट बढ़ गया है।

EV उत्पादन पर सीधा असर दिखने लगा है

रेयर-अर्थ मैगनेट्स की कमी का असर अब प्रत्यक्ष रूप से दिखने लगा है। कई इलेक्ट्रिक व्हीकल कंपनियों ने मोटर सप्लाई में देरी की बात मानी है, जिसके चलते प्रोडक्शन शेड्यूल गड़बड़ाया है।

कुछ कंपनियां बैकअप सप्लायर्स की तलाश में हैं, जबकि कुछ वैकल्पिक तकनीकों पर काम कर रही हैं, लेकिन इन सबमें वक्त लगेगा। इससे कारों और स्कूटरों की डिलीवरी में देरी होगी और कीमतों में भी इजाफा हो सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर जल्द कोई ठोस समाधान नहीं निकाला गया तो भारत में EV सेक्टर की ग्रोथ को झटका लग सकता है, जो अभी शुरुआती तेजी में है।

 

भारत सरकार और कंपनियों की रणनीति

भारत सरकार इस संकट को समझ चुकी है और इसे दूर करने के लिए कुछ कदम उठा रही है। केंद्र सरकार ने क्रिटिकल मटेरियल्स की डोमेस्टिक माइनिंग और रिसायक्लिंग यूनिट्स पर जोर देना शुरू किया है। इसके साथ ही जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देशों के साथ मिलकर रणनीतिक भंडारण और सप्लाई समझौते की कोशिशें भी चल रही हैं।

कंपनियां भी अब चीन के विकल्प तलाश रही हैं और भारत में ही मैगनेट मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही हैं। कुछ स्टार्टअप्स रेयर-अर्थ मैगनेट के रिसायक्लिंग पर फोकस कर रहे हैं, ताकि पुराने उपकरणों से इन जरूरी तत्वों को फिर से निकाला जा सके।

भविष्य की राह क्या हो सकती है

 

अगर देखा जाए तो रेयर-अर्थ मैगनेट्स की यह कमी सिर्फ EV सेक्टर ही नहीं, बल्कि पूरी तकनीकी दुनिया को प्रभावित कर सकती है। इसलिए लॉन्ग टर्म में यह जरूरी हो गया है कि भारत जैसे देश आत्मनिर्भर बनें। सरकार को चाहिए कि वह न केवल खनन और मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा दे, बल्कि ऐसी वैकल्पिक टेक्नोलॉजी में निवेश करे जो बिना रेयर-अर्थ मैगनेट्स के काम कर सके। उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि यह संकट एक तरह से अवसर भी है, जो भारत को ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनने का मौका दे सकता है—अगर सही नीतियां और निवेश समय पर किए जाएं।

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