Auto News India : भारत की ऑटो इंडस्ट्री में पिछले कुछ महीनों से ऐसी सुस्त रफ्तार देखने को मिल रही है, जैसी लंबे समय से नहीं देखी गई थी। एक ओर जहां कार कंपनियों ने भारी मात्रा में गाड़ियाँ डीलरशिप पर भेज दी हैं, वहीं दूसरी ओर ग्राहक खरीदारी से पीछे हट रहे हैं। इसका नतीजा ये हुआ है कि देशभर में कारों का ₹52,000 करोड़ से ज्यादा का इन्वेंट्री स्टॉक खड़ा हो गया है, जो न सिर्फ कंपनियों बल्कि डीलरों के लिए भी चिंता की वजह बनता जा रहा है।
जब सड़क पर गाड़ियाँ दिखती हैं, तो लगता है कि बिक्री अच्छी चल रही है। लेकिन अंदरूनी रिपोर्ट कुछ और ही बयां कर रही है। कंपनियों की सेल्स रिपोर्ट और डीलर नेटवर्क से मिले आंकड़े बताते हैं कि गाड़ियाँ सिर्फ शोरूम तक पहुंच रही हैं, ग्राहक के घर तक नहीं।
इन्वेंट्री जमा होने का मुख्य कारण
मार्केट जानकारों के अनुसार, सबसे बड़ा कारण है बढ़ती कीमतें और बैंकों की ओर से कड़े फाइनेंस नियम। बीते एक साल में कारों के दामों में कई बार इजाफा हुआ है। ऊपर से आरबीआई द्वारा रेपो रेट न घटाए जाने की वजह से लोन महंगे हो गए हैं। इससे मिडल क्लास और लोअर मिडल क्लास परिवारों का बजट बिगड़ गया है।
इन वजहों से लोग अब कार खरीदने का फैसला टाल रहे हैं। फेस्टिव सीजन से पहले कंपनियों ने बड़े पैमाने पर प्रोडक्शन कर डीलरशिप पर भेजा था, लेकिन मांग न आने से अब गाड़ियाँ शोरूम में ही धूल खा रही हैं।
डीलरशिप पर बढ़ता दबाव
कार डीलर अब दोहरी मार झेल रहे हैं। एक तरफ इन्वेंट्री रखने का खर्च बढ़ रहा है, दूसरी तरफ बैंकों का ब्याज और गाड़ियों की मेंटेनेंस लागत उन्हें खा रही है। कई डीलर ऐसे हैं जिनके पास 45 से 60 दिन से ज्यादा पुरानी गाड़ियाँ स्टॉक में पड़ी हैं, जिनकी डिप्रिसिएशन वैल्यू भी बढ़ती जा रही है।
उधर कंपनियाँ लगातार प्रेशर बना रही हैं कि नई गाड़ियाँ लें, टारगेट पूरा करें, जबकि पुरानी गाड़ियाँ बिक ही नहीं रहीं। इससे डीलरशिप की आर्थिक स्थिति पर भी असर पड़ रहा है और कुछ छोटे डीलर इसे लंबे समय तक नहीं झेल पाएंगे।
बिक्री की गिरावट और सेगमेंट वाइज स्थिति
SIAM (Society of Indian Automobile Manufacturers) की रिपोर्ट बताती है कि एंट्री लेवल हैचबैक और मिड सेगमेंट कारों की बिक्री में सबसे ज़्यादा गिरावट आई है। इन सेगमेंट्स में पहले सबसे ज़्यादा ग्राहक आते थे, लेकिन अब वही वर्ग महंगाई और फाइनेंस की मार से परेशान है।
SUV और लग्ज़री सेगमेंट में कुछ हद तक स्थिरता है क्योंकि इस वर्ग के खरीदारों की जेब पर उतना असर नहीं पड़ता, लेकिन वहां भी ग्रोथ की रफ्तार थमी है। कुल मिलाकर बाजार में ग्राहकों का मूड “अभी नहीं, बाद में” वाला बना हुआ है।
कंपनियों की रणनीति और अगला कदम
कंपनियाँ इस इन्वेंट्री प्रेशर को देखते हुए अब प्रोडक्शन स्लोडाउन की ओर बढ़ रही हैं। मारुति, टाटा, महिंद्रा जैसी कंपनियों ने कुछ प्लांट्स में उत्पादन को सीमित कर दिया है, ताकि मांग के हिसाब से सप्लाई हो।
इसके साथ ही नए ऑफर, फेस्टिव डिस्काउंट और एक्सचेंज बोनस जैसी योजनाओं पर भी काम हो रहा है। लेकिन कंपनियों को यह भी समझ आ रहा है कि सिर्फ डिस्काउंट से ही गाड़ी नहीं बिकेगी। ग्राहक की क्रय शक्ति को समझना अब ज़रूरी हो गया है।
आगे क्या हो सकता है बाजार का हाल
अगले कुछ महीनों में अगर ब्याज दरों में राहत मिलती है और महंगाई थोड़ी काबू में आती है, तो कार बाजार फिर से रफ्तार पकड़ सकता है। लेकिन फिलहाल के हालात को देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि ऑटो इंडस्ट्री फिलहाल ट्रैफिक जाम में फंसी हुई है।
अगर कंपनियाँ उत्पादन और सप्लाई को बैलेंस नहीं कर पाईं, तो यह ₹52,000 करोड़ का स्टॉक और बढ़ सकता है। और इसका असर सिर्फ कंपनियों पर ही नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था पर भी दिख सकता है क्योंकि ऑटो सेक्टर बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार भी देता है।
Disclaimer:
यह लेख आधिकारिक रिपोर्ट्स और सार्वजनिक जानकारी पर आधारित है। इसमें दी गई जानकारी में किसी भी नीति या योजना का अंतिम दावा नहीं किया गया है। पाठक किसी निवेश या निर्णय से पहले विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।