RBI के सख्त नियम: आज के समय में लोन लेना आम बात हो गई है, चाहे वो घर बनाने के लिए हो, बच्चों की पढ़ाई के लिए या फिर छोटे-मोटे व्यापार को चलाने के लिए। बैंक और NBFCs आसानी से लोन दे भी देती हैं, लेकिन जब लोन की EMI समय पर नहीं चुकाई जाती, तो वही सुविधा बड़ी परेशानी में बदल जाती है। इन दिनों सोशल मीडिया पर कई अफवाहें चल रही हैं कि लोन नहीं चुकाने पर सीधे जेल हो सकती है, या बैंकों के लोग जबरदस्ती घर में घुसकर सामान उठा ले जाते हैं। लेकिन क्या ये सब सच है? क्या वाकई RBI ने ऐसे कोई आदेश दिए हैं? इस लेख में हम आपको बताएंगे कि RBI के नियम क्या कहते हैं और लोन डिफॉल्ट की स्थिति में क्या-क्या कानूनी कदम उठाए जा सकते हैं।
लोन डिफॉल्ट का मतलब और इसकी शुरुआत कैसे होती है
जब कोई व्यक्ति बैंक से लोन लेता है, तो उसे एक निश्चित समय तक EMI यानी मासिक किस्त चुकानी होती है। यदि तीन महीने तक लगातार EMI नहीं दी जाती, तो उस व्यक्ति को ‘लोन डिफॉल्टर’ माना जाता है। बैंक उस खाते को ‘NPA’ यानी Non-Performing Asset घोषित कर देती है। इसके बाद रिकवरी की प्रक्रिया शुरू होती है, लेकिन यह प्रक्रिया भी कानून के दायरे में ही होती है।
बहुत से लोग सोचते हैं कि अगर वे एक दो EMI मिस कर गए तो सीधे केस हो जाएगा या पुलिस पकड़ लेगी। लेकिन ऐसा नहीं है। बैंक पहले नोटिस भेजती है, बातचीत का प्रयास करती है और कई बार ग्राहक को समय भी देती है। पर अगर फिर भी भुगतान नहीं होता, तब कानूनी प्रक्रिया अपनाई जाती है।
RBI की गाइडलाइंस और बैंक की जिम्मेदारियां
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने बैंकों को लोन रिकवरी के लिए कुछ साफ-साफ नियम दिए हैं। बैंक किसी भी ग्राहक को मानसिक दबाव नहीं डाल सकती, धमका नहीं सकती और जबरदस्ती वसूली नहीं कर सकती। रिकवरी एजेंट्स को भी प्रशिक्षित किया जाता है और उन पर निगरानी रखी जाती है।
अगर कोई रिकवरी एजेंट बदसलूकी करता है या धमकाता है, तो ग्राहक इसकी शिकायत सीधे बैंक या फिर RBI को कर सकता है। आरबीआई का साफ निर्देश है कि ग्राहकों की गोपनीयता बनी रहनी चाहिए और उन्हें मानसिक या सामाजिक रूप से परेशान नहीं किया जा सकता।
कानूनी प्रक्रिया: कब भेजा जाता है नोटिस और क्या होता है आगे
अगर ग्राहक लंबे समय तक लोन नहीं चुका पाता, तो सबसे पहले बैंक उसे लीगल नोटिस भेजती है। आमतौर पर यह नोटिस SARFAESI Act के तहत होता है, जिसमें बैंक यह चेतावनी देती है कि अगर कुछ दिनों में भुगतान नहीं किया गया, तो संपत्ति को जब्त किया जा सकता है। यह प्रक्रिया केवल सिक्योर लोन जैसे होम लोन या वाहन लोन में ही लागू होती है।
यदि फिर भी भुगतान नहीं होता, तो बैंक संपत्ति की नीलामी का कदम उठा सकती है। लेकिन यह सब कुछ कोर्ट और कानून के नियमों के तहत होता है। ग्राहक के पास हमेशा यह मौका रहता है कि वह बैंक से बातचीत करके समय मांगे या समाधान निकाले।
क्या लोन न चुकाने पर जेल हो सकती है?
यह सबसे बड़ी गलतफहमी है जो अक्सर लोगों में होती है। सिर्फ लोन नहीं चुकाने पर किसी को जेल नहीं भेजा जा सकता। यह एक सिविल मामला होता है, क्रिमिनल नहीं। हां, अगर किसी ने जानबूझकर फर्जी दस्तावेज देकर लोन लिया है या धोखाधड़ी की है, तब मामला आपराधिक हो सकता है। पर केवल भुगतान में देरी या असमर्थता की स्थिति में जेल नहीं होती।
इसका मतलब ये है कि अगर आपकी माली हालत खराब है और आप बैंक से बातचीत करते हैं, तो आपको समाधान मिल सकता है। आप लोन को रीस्ट्रक्चर करवा सकते हैं, किस्तें कम करवा सकते हैं या कुछ महीनों की मोहलत भी पा सकते हैं।
ग्राहक के अधिकार और समाधान के रास्ते
हर ग्राहक को यह जानना जरूरी है कि बैंक या कोई एजेंसी आपको धमका नहीं सकती। आप चाहें तो बैंक से शिकायत कर सकते हैं, बैंकिंग ओम्बड्समैन के पास जा सकते हैं या फिर उपभोक्ता अदालत में केस कर सकते हैं। इसके अलावा बैंक खुद भी लोन सेटलमेंट, लोन मोरेटोरियम और ईएमआई पुनर्गठन जैसे विकल्प देती है।
अगर आप खुद पहल करते हैं और बैंक को अपनी स्थिति साफ बताते हैं, तो बैंक भी समझदारी दिखाता है। यही वजह है कि बहुत से लोग बिना कोर्ट-कचहरी के ही अपनी समस्या का हल निकाल लेते हैं। याद रखिए, बैंकों का मकसद संपत्ति छीनना नहीं होता, बल्कि लोन की रकम वापस पाना होता है।
Disclaimer: यह लेख जानकारी देने के उद्देश्य से लिखा गया है। कृपया किसी कानूनी निर्णय से पहले बैंक या वित्तीय सलाहकार से संपर्क करें। यहां दी गई जानकारी विश्वसनीय स्रोतों पर आधारित है।