Supreme Court: भारत में ज़मीन-जायदाद से जुड़े झगड़े आम होते जा रहे हैं, खासकर जब बात पैतृक संपत्ति की हो। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है, जिसमें कहा गया है कि अगर परिवार का मुखिया यानी पिता किसी ज़रूरी कानूनी कारण से पैतृक संपत्ति बेचता है, तो बेटा या कोई और हिस्सेदार उसे रोक नहीं सकता। यह फैसला पूरे देश के लिए एक मिसाल बन गया है, क्योंकि इससे यह स्पष्ट हुआ है कि पिता को भी कुछ परिस्थितियों में पूरा हक है कि वह परिवार की ज़मीन बेच सके।
कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने एक 54 साल पुराने केस में यह फैसला सुनाया। यह मामला साल 1964 का है, जब एक बेटे ने अपने पिता के खिलाफ कोर्ट में केस किया था। उसका कहना था कि उसके पिता ने पैतृक ज़मीन उसकी मंज़ूरी के बिना बेच दी है, जो कि गैरकानूनी है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि अगर संपत्ति की बिक्री कानूनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए की गई हो — जैसे कि कर्ज चुकाने, खेती की ज़मीन सुधारने या परिवार के भरण-पोषण के लिए — तो उसे चुनौती नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने इस बात को भी मान्यता दी कि ऐसे केस में पिता को संपत्ति बेचने का पूरा अधिकार होता है।
मामला क्या था?
यह केस पंजाब के लुधियाना का था, जहां एक व्यक्ति प्रीतम सिंह ने 1962 में अपने बेटे केहर सिंह की मंजूरी के बिना परिवार की 164 कनाल ज़मीन मात्र 19,500 रुपये में बेच दी थी। इस पर बेटे ने कोर्ट में केस दर्ज कर दिया और कहा कि यह ज़मीन उसकी पैतृक संपत्ति है, जिसे बिना उसकी इजाज़त बेचना अवैध है। ट्रायल कोर्ट ने बेटे के पक्ष में फैसला सुनाया, लेकिन अपील के दौरान कोर्ट ने पाया कि यह बिक्री कर्ज चुकाने और खेती की ज़मीन सुधारने के लिए की गई थी। बाद में हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने भी इसी फैसले को बरकरार रखा।
अनुच्छेद 254(2) के तहत पिता का अधिकार
भारतीय कानून के तहत, अनुच्छेद 254(2) यह कहता है कि परिवार का कर्ता (मुखिया) पैतृक संपत्ति को किसी कानूनी आवश्यकता के लिए बेच सकता है, रेहन रख सकता है या किसी भी प्रकार से उसका उपयोग कर सकता है। बस एक शर्त यह होती है कि यह कर्ज या ज़रूरत कोई अनैतिक या गैरकानूनी कार्य से जुड़ी न हो। इस केस में भी ऐसा ही हुआ था — पिता प्रीतम सिंह ने 1962 में लुधियाना की 164 कैनाल ज़मीन सिर्फ 19,500 रुपये में बेच दी थी ताकि वह पुराने कर्ज चुका सकें और खेती की ज़मीन को बेहतर बना सकें।
कैसे पलटा गया निचली अदालत का फैसला
जब बेटे केहर सिंह ने कोर्ट में मामला दायर किया, तो ट्रायल कोर्ट ने फैसला बेटे के पक्ष में दिया और जमीन की बिक्री को रद्द कर दिया। लेकिन अपील कोर्ट में यह फैसला पलट गया क्योंकि कोर्ट ने पाया कि ज़मीन की बिक्री कर्ज चुकाने के लिए हुई थी। इसके बाद मामला हाईकोर्ट पहुंचा और वहां भी यह फैसला बरकरार रखा गया। आखिर में जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, तो वहां भी यही कहा गया कि संपत्ति की बिक्री पूरी तरह से वैध थी, क्योंकि वह एक कानूनी आवश्यकता को पूरा करने के लिए की गई थी।
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कब-कब बेच सकते हैं पैतृक संपत्ति?
कोर्ट ने इस फैसले में यह भी साफ किया कि परिवार का मुखिया सिर्फ अपने फायदे के लिए नहीं, बल्कि कुछ खास परिस्थितियों में ही पैतृक संपत्ति बेच सकता है। ये कारण कुछ इस प्रकार हैं:
- परिवार पर चढ़ा कोई पुराना कर्ज चुकाने के लिए
- सरकारी देनदारी जैसे टैक्स या जुर्माना भरने के लिए
- परिवार के सदस्यों के लिए खाना, दवाई और ज़रूरी खर्चों के लिए
- बेटी या बेटे की शादी जैसे महत्वपूर्ण पारिवारिक कार्यों के लिए
- किसी पारिवारिक मुकदमे या आपराधिक मामले में खर्चों के लिए
इन कारणों से अगर संपत्ति बेची जाती है, तो वह पूरी तरह से वैध मानी जाती है। इसके खिलाफ कोर्ट में केस नहीं चलाया जा सकता।
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नया रास्ता दिखाता है यह फैसला
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल इस एक केस के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह लाखों लोगों के लिए एक मिसाल भी बन गया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि हर बार बेटा या दूसरा हिस्सेदार पिता को पैतृक संपत्ति बेचने से नहीं रोक सकता। अगर पिता कानूनी ज़रूरत के तहत संपत्ति बेच रहा है, तो उसे पूरा अधिकार है। इससे उन परिवारों को भी राहत मिलेगी जहां संपत्ति विवाद के चलते रिश्ते बिगड़ जाते हैं और कोर्ट-कचहरी में सालों खर्च हो जाते हैं।
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भारत जैसे देश में जहां पारिवारिक संपत्ति को लेकर विवाद आम हैं, वहां सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बेहद ज़रूरी था। इस फैसले से स्पष्ट हो गया है कि कानून हर पक्ष को सुनता है लेकिन अगर कोई कानूनी ज़रूरत हो तो परिवार का मुखिया भी संपत्ति का उपयोग कर सकता है। बेटे या अन्य वारिस को सिर्फ इस वजह से संपत्ति बिक्री का विरोध नहीं करना चाहिए कि वह उसका हिस्सा है। बल्कि यह समझना चाहिए कि परिवार की ज़रूरतें पहले आती हैं। अगर आप भी ऐसी किसी परिस्थिति में हैं, तो पहले कानूनी सलाह जरूर लें और अनावश्यक विवादों से बचें।