cheque bounce case: भारतीय कानून में चेक बाउंस होना एक गंभीर अपराध माना गया है। अगर किसी का चेक बाउंस होता है, तो उसके खिलाफ न्यायालय में केस दर्ज कराया जा सकता है। इसमें आरोपी को जुर्माने के साथ-साथ जेल की सजा का भी प्रावधान है। इसके कारण लेन-देन में पारदर्शिता और जिम्मेदारी बनाए रखना अनिवार्य होता है।
इस नियम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि लोग चेक जारी करते समय अपनी बैंक बैलेंस स्थिति को गंभीरता से देखें। अगर चेक बाउंस होने पर भुगतान नहीं किया जाता, तो शिकायतकर्ता आरोपी के खिलाफ न्यायालय में केस दायर कर सकता है।
चेक बाउंस पर सजा का प्रावधान
चेक बाउंस केस में भारतीय नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 लागू होती है। इस धारा के तहत दोषी पाए जाने पर आरोपी को दो साल तक की जेल या दोगुने जुर्माने की सजा हो सकती है। यह सजा अदालत के विवेक पर निर्भर करती है कि परिस्थिति और मामले की गंभीरता के आधार पर क्या निर्णय लिया जाए।
यदि चेक बाउंस होने के बाद आरोपी समय पर भुगतान कर देता है तो सजा से राहत मिल सकती है। लेकिन अगर आरोपी जानबूझकर भुगतान नहीं करता, तो अदालत सख्त निर्णय ले सकती है। इसलिए समय पर भुगतान करना आरोपी के लिए फायदेमंद होता है।
भुगतान के लिए मिलने वाला समय
चेक बाउंस होने पर शिकायतकर्ता को सबसे पहले बैंक से लिखित में बाउंस का कारण बताने वाला मेमो लेना होता है। इसके बाद शिकायतकर्ता को चेक जारी करने वाले को 30 दिनों के अंदर नोटिस भेजना होता है। नोटिस मिलने के बाद आरोपी को 15 दिनों के अंदर भुगतान करने का समय दिया जाता है।
यदि 15 दिनों में भुगतान नहीं होता है, तो शिकायतकर्ता 30 दिनों के भीतर अदालत में केस दायर कर सकता है। इस प्रक्रिया में समय का विशेष ध्यान रखना जरूरी होता है ताकि शिकायतकर्ता का केस समय रहते न्यायालय में पंहुच सके।
जुर्माने और भुगतान की प्रक्रिया
अगर अदालत में केस साबित हो जाता है तो आरोपी को जुर्माना भरने के साथ ही बाउंस की गई रकम का भुगतान करना होता है। कई मामलों में अदालत बाउंस हुई रकम का दोगुना तक जुर्माना लगाने का अधिकार रखती है। इस प्रक्रिया में अदालत भुगतान की समय सीमा भी तय कर सकती है।
अदालत द्वारा तय किए गए समय में भुगतान नहीं करने पर आरोपी की संपत्ति की कुर्की भी की जा सकती है। इससे शिकायतकर्ता को बकाया रकम की वसूली का रास्ता मिल जाता है। इस नियम का पालन करना सभी के लिए अनिवार्य होता है ताकि लेन-देन में पारदर्शिता बनी रहे।
चेक बाउंस के कानूनी महत्व
चेक बाउंस के मामलों में अदालत सख्ती से निर्णय लेती है ताकि वित्तीय व्यवस्था में अनुशासन बना रहे। यह कानून उन लोगों के लिए चेतावनी है जो बिना पर्याप्त बैलेंस के चेक जारी करते हैं। इससे बैंकिंग सिस्टम में पारदर्शिता और अनुशासन बनाए रखने में मदद मिलती है। अगर आप किसी को चेक देते हैं, तो यह सुनिश्चित कर लें कि आपके खाते में पर्याप्त राशि हो। इससे ना केवल आपका सम्मान बचता है बल्कि कानूनी कार्यवाही से भी बचा जा सकता है। समय पर भुगतान और जागरूकता से चेक बाउंस के मामलों को रोका जा सकता है।