Delhi High Court

इन बेटियों को नहीं मिलेगा पिता की संपत्ति में हिस्सा, हाईकोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला Delhi High Court

Delhi High Court: हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है जिसे सुनकर बहुत से लोग हैरान भी हैं और सोच में भी पड़ गए हैं। कोर्ट ने कहा है कि तलाकशुदा बेटी को अपने मर चुके पिता की प्रॉपर्टी में कोई हक नहीं मिलेगा। ये फैसला उस महिला की याचिका पर आया है जिसने कहा था कि उसके भाई और मां ने संपत्ति में हिस्सा नहीं दिया। कोर्ट का कहना है कि तलाकशुदा बेटी पिता पर आश्रित नहीं होती, इसलिए उसे संपत्ति में अधिकार नहीं है।

इस फैसले के बाद कई घरों में कानूनी अधिकार को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। बहुत सारे लोग अब ये समझने लगे हैं कि सिर्फ बेटी होना प्रॉपर्टी में हिस्सा पाने के लिए काफी नहीं होता, बल्कि आपकी वैवाहिक स्थिति और कानूनी आश्रितता भी मायने रखती है।

तलाकशुदा बेटी को संपत्ति में हिस्सा क्यों नहीं?

हाईकोर्ट ने साफ-साफ कहा कि तलाकशुदा महिला अपने पूर्व पति से गुज़ारा भत्ता मांग सकती है, इसलिए वह अपने पिता की संपत्ति में हिस्सेदारी की हकदार नहीं है। अदालत का मानना है कि तलाक के बाद महिला का सहारा उसका पति होता है, न कि उसके माता-पिता। अगर पति से गुजारा भत्ता नहीं मिल रहा, तो उसके लिए कानून में अलग व्यवस्था है।

इसका मतलब ये है कि अगर कोई महिला तलाकशुदा है तो वो सीधे पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मांग सकती। उसे पहले पति से भत्ता लेने की कोशिश करनी चाहिए। कोर्ट ने ये भी कहा कि सिर्फ तलाक होना ये नहीं बताता कि महिला बेसहारा है।

अविवाहित और विधवा बेटियों के लिए क्या नियम हैं?

अविवाहित या विधवा बेटी अगर किसी पर आश्रित है और खुद की आमदनी नहीं है, तो वह अपने पिता की संपत्ति में हिस्सा पाने की अधिकारी होती है। अदालत ने माना कि ऐसी बेटियाँ जिनके पास रहने, खाने या कमाने का कोई जरिया नहीं है, उन्हें कानून के अनुसार संपत्ति में हक मिलना चाहिए।

यह कानून इसलिए बनाया गया है ताकि समाज में ऐसी बेटियों को सहारा मिल सके जो अपने माता-पिता पर ही निर्भर होती हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि विधवा या अविवाहित बेटियाँ कई बार पूरी तरह से घर के ऊपर ही निर्भर होती हैं, इसलिए उन्हें अलग नजरिए से देखा जाना चाहिए।

तलाकशुदा बेटी की याचिका का क्या हुआ?

इस मामले में एक तलाकशुदा महिला ने कोर्ट में दावा किया कि उसके पिता की मौत के बाद उसकी माँ और भाई ने उसे संपत्ति से वंचित कर दिया। महिला ने कहा कि पहले उसे कुछ पैसे दिए जा रहे थे लेकिन बाद में वो भी बंद कर दिए गए। उसने बताया कि उसके पति ने एकतरफा तलाक दे दिया था और उसके बाद उसका कोई पता नहीं चला।

महिला का कहना था कि उसे न तो पति से भत्ता मिला, न ही परिवार ने उसका साथ दिया। लेकिन कोर्ट ने कहा कि चूंकि कानून में तलाकशुदा बेटी का जिक्र नहीं है, इसलिए वो पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मांग सकती। यह फैसला स्पष्ट करता है कि कानून में जो लिखा है, उसी के आधार पर न्याय होगा।

अदालत का निष्कर्ष और कानूनी आधार

कोर्ट ने यह फैसला हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 21 के आधार पर सुनाया। इस धारा में उन नौ रिश्तों का जिक्र किया गया है जो माता-पिता की संपत्ति में हिस्सा मांग सकते हैं। लेकिन तलाकशुदा बेटी का इसमें कोई जिक्र नहीं है। इसलिए कोर्ट ने कहा कि महिला की याचिका कानून के दायरे में नहीं आती।

जजों की बेंच ने कहा कि कानून की सीमाओं को परिस्थितियों के आधार पर बदला नहीं जा सकता। ये बात इसलिए कही गई क्योंकि याचिकाकर्ता महिला ने कोर्ट से भावनात्मक सहानुभूति की अपील की थी। लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कानून भावना से नहीं, नियम से चलता है।

भविष्य में असर और समाज में चर्चा

इस फैसले से यह तो साफ हो गया है कि हर महिला को संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलेगा, खासकर तब जब वह तलाकशुदा है और पति से भत्ता पाने की स्थिति में है। कोर्ट ने ये भी कहा कि ऐसी स्थिति में महिला को कानून का सहारा लेना चाहिए और अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता मांगना चाहिए।

यह फैसला आने वाले समय में ऐसे कई मामलों की दिशा तय करेगा। समाज में इसे लेकर खूब चर्चा हो रही है। कुछ लोग इस फैसले को न्यायसंगत मानते हैं तो कुछ इसे महिला विरोधी बता रहे हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि कानून के अनुसार ही निर्णय लिया गया है।

कानून को जानना और समझना ज़रूरी है

इस केस ने यह साबित कर दिया है कि हमें कानून की जानकारी रखना कितना जरूरी है, खासकर परिवार और संपत्ति से जुड़े मामलों में। अगर कोई महिला तलाकशुदा है तो उसे यह जानना चाहिए कि वो किस स्थिति में संपत्ति में हकदार हो सकती है और किसमें नहीं।

आज के समय में जब परिवार में जायदाद के झगड़े आम हो गए हैं, यह फैसला एक मिसाल की तरह है। बेटियों को भी अपने अधिकारों के बारे में सही जानकारी होनी चाहिए ताकि वे किसी भ्रम में न रहें।

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