Tenants Rights: किराये पर मकान लेना हर किसी के लिए एक बड़ा फैसला होता है, लेकिन कई बार लोगों को यह डर भी सताता है कि कहीं मकान मालिक मनमानी न करने लगे। खासकर तब जब किरायेदार को बिना किसी वजह के समय से पहले घर खाली करने को कह दिया जाए। ऐसे में किरायेदारों को अपने अधिकारों की जानकारी होना बेहद जरूरी हो जाता है। नोएडा के सेक्टर 34 में रहने वाली स्नेहा के साथ ऐसा ही हुआ।
उन्होंने किराये पर एक मकान लिया, जिसमें मालिक ने बताया कि घर में नया इन्वर्टर, गीजर और आरओ लगाया गया है। लेकिन घर में शिफ्ट होने के सिर्फ तीन दिन बाद ही इन्वर्टर और आरओ खराब हो गए। इससे साफ हो गया कि उपकरण पुराने थे और मालिक ने झूठ बोला था। इसके बाद स्नेहा और मकान मालिक के बीच विवाद शुरू हो गया। फिर कुछ समय बाद, मालिक ने उन्हें एग्रीमेंट के बावजूद सिर्फ 6 महीने में ही घर खाली करने को कह दिया। अब सवाल ये उठता है कि क्या ऐसा करना सही है? क्या 11 महीने का एग्रीमेंट होते हुए भी मकान मालिक मनमानी कर सकता है?
रेंट एग्रीमेंट में लिखी शर्तों को अच्छे से समझें
देश के टॉप शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, पुणे या बेंगलुरु में किराया एक बड़ा आमदनी का जरिया बन चुका है। लोग अपने फ्लैट या मकान को किराये पर देकर हर महीने अच्छी खासी कमाई करते हैं। लेकिन अक्सर ऐसा देखा गया है कि रेंट एग्रीमेंट में बस आम बातें ही लिखी होती हैं, जिनसे कोई भी पक्ष मुसीबत में आ सकता है।
दिल्ली हाई कोर्ट के वकील निशांत राय बताते हैं कि कई बार मकान मालिक बिना कोई साफ शर्त रखे ही किराये का सौदा कर लेते हैं, जिससे आगे विवाद की स्थिति बनती है। यही कारण है कि अब दिल्ली-एनसीआर समेत कई शहरों में लिखित एग्रीमेंट का चलन बढ़ गया है। रेंट एग्रीमेंट एक कानूनी कागज होता है, जिसमें किरायेदार और मालिक दोनों की सहमति से नियम तय होते हैं, और दोनों को उन नियमों का पालन करना जरूरी होता है।
11 महीने से पहले घर खाली करवाने की सच्चाई
अगर किराये के एग्रीमेंट में साफ-साफ 11 महीने की अवधि लिखी है, तो उस समय तक किरायेदार को वहां रहने का पूरा हक होता है। इस दौरान मालिक न तो बिना किसी ठोस वजह के किराया बढ़ा सकता है और न ही किरायेदार को अचानक निकाल सकता है। हालांकि अगर किसी कारणवश मालिक को घर खाली करवाना है, तो उसे एग्रीमेंट में दिए गए नोटिस पीरियड के हिसाब से किरायेदार को समय देना होता है।
इस दौरान किरायेदार को अपना पक्ष रखने और फैसले के खिलाफ आवाज उठाने का पूरा हक है। अगर एग्रीमेंट में कार्यकाल तय है, तो दोनों पक्ष उस समय के लिए बंधे होते हैं। कोई भी एकतरफा फैसला बिना कानूनी प्रक्रिया के लागू नहीं किया जा सकता। जबरदस्ती बेदखली की स्थिति में किरायेदार न्यायिक सहायता भी ले सकता है।
पुलिस या कानून का सहारा ले सकते हैं किरायेदार
रेंट एग्रीमेंट में एक और जरूरी बात होती है जिसे ‘लॉक-इन पीरियड’ कहा जाता है। इसका मतलब होता है कि एक तय समय तक मकान मालिक और किरायेदार दोनों उस एग्रीमेंट को तोड़ नहीं सकते। यानी अगर लॉक-इन पीरियड 6 महीने का है, तो कोई भी पार्टी 6 महीने से पहले एग्रीमेंट खत्म करने का नोटिस नहीं दे सकती। हां, अगर इस दौरान कोई पक्ष एग्रीमेंट तोड़ता है, तो उस पर कानूनी कार्रवाई नहीं होती, लेकिन बाकी बची अवधि का किराया देना जरूरी होता है।
अगर किरायेदार के साथ धोखा हुआ है या मकान मालिक कोई सेवा देने से मना कर रहा है, तो किरायेदार पुलिस या अदालत की मदद ले सकता है। ऐसे मामलों में स्थानीय पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है। इसलिए कभी भी एग्रीमेंट पर दस्तखत करने से पहले उसमें लिखी हर शर्त को ध्यान से पढ़ें और समझें। खासतौर पर लॉक-इन पीरियड और नोटिस पीरियड को अच्छे से देखें।
रेंट एग्रीमेंट से जुड़े नियम और फायदे जानना जरूरी है
रेंट एग्रीमेंट सिर्फ एक कागज नहीं बल्कि कानूनी दस्तावेज होता है जो दोनों पक्षों को सुरक्षा देता है। इसमें साफ-साफ लिखा होता है कि किराया कितना होगा, कितने दिन में देना होगा, बिजली-पानी का बिल कौन भरेगा, और कितने नोटिस पर घर खाली करना होगा। इसके अलावा अगर कोई सेवाएं जैसे गीजर, इन्वर्टर या आरओ मकान मालिक दे रहा है, तो उनकी स्थिति भी इसमें दर्ज होनी चाहिए।
इससे बाद में कोई भी पक्ष झूठ नहीं बोल सकता। अगर एग्रीमेंट में सब कुछ ठीक तरह से लिखा गया है और दोनों ने उस पर साइन किया है, तो बाद में कोई भी मनमानी नहीं कर सकता। किरायेदारों को यह समझना होगा कि वे भी अपने हक के लिए आवाज उठा सकते हैं और कानून उनके साथ है।