High Court: सरकारी नौकरी करने वाले कर्मचारियों के लिए तबादला एक गंभीर और संवेदनशील मुद्दा होता है। कर्मचारी अक्सर अपने मनपसंद स्थान पर काम करने की उम्मीद रखते हैं, और जब उन्हें अपनी पसंद की जगह से हटाया जाता है या इच्छित स्थान पर नहीं भेजा जाता, तो कई बार इसका असर उनके निजी और पेशेवर जीवन पर भी पड़ता है। ऐसे में तबादलों को लेकर अदालतों में कई मामले पहुंचते हैं। हाल ही में राजस्थान हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है जो सरकारी कर्मचारियों के तबादलों से जुड़ी नीतियों को लेकर काफी स्पष्टता लाता है।
यह मामला दुर्गापुरा स्थित कृषि अनुसंधान संस्थान से जुड़ा हुआ है, जहां कीट विज्ञान विभाग में कार्यरत सहायक प्रोफेसरों ने अपने तबादलों के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने याचिका में कहा कि वे लंबे समय से इस संस्थान में काम कर रहे हैं और सरकार द्वारा तबादलों पर लगाई गई रोक के बावजूद उनका ट्रांसफर कर दिया गया है, जो कि नियमों के विरुद्ध है।
सरकारी आदेशों की अनदेखी का आरोप
याचिका दायर करने वाले कर्मचारियों ने अपने पक्ष में तर्क देते हुए कहा कि राजस्थान सरकार ने जनवरी 2023 में सभी विभागों, निगमों और स्वायत्तशासी संस्थानों के कर्मचारियों के तबादलों पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी। इसके बावजूद उनका तबादला किया जाना सरकार के आदेशों का सीधा उल्लंघन है।
उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने अक्टूबर 2020 से ही इस संस्थान में काम करना शुरू किया है और नियमों के अनुसार, पांच साल की सेवा पूरी किए बिना तबादला नहीं किया जा सकता। यानी अभी उनका ट्रांसफर नियमों के विरुद्ध किया गया है। कर्मचारियों ने यह भी आरोप लगाया कि इस प्रकार का निर्णय उनकी योजनाओं और निजी जीवन पर असर डाल रहा है, इसलिए इसे निरस्त किया जाना चाहिए।
सरकार ने स्पष्ट किया विवि पर लागू नहीं होता आदेश
इस मामले में कृषि विश्वविद्यालय की ओर से पेश हुए अधिवक्ता ने पूरी तरह से याचिकाकर्ताओं की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि कृषि विवि एक स्वायत्तशासी संस्था है और उस पर राज्य सरकार के तबादला रोकने के आदेश लागू नहीं होते। उन्होंने यह भी बताया कि राज्य सरकार ने खुद इस विषय में पत्र जारी कर यह स्पष्ट किया है कि तबादले पर लगी रोक कृषि विश्वविद्यालय जैसे स्वायत्तशासी संस्थानों के कर्मचारियों पर लागू नहीं होती।
यानी विवि प्रशासन को अपने स्तर पर निर्णय लेने का पूरा अधिकार है। विवि के अधिवक्ता ने यह भी कहा कि सहायक प्रोफेसर लंबे समय से इस संस्था में काम कर रहे हैं और उनके तबादले का निर्णय विवि की प्रशासनिक नीति के अनुसार लिया गया है, न कि किसी व्यक्तिगत द्वेष के कारण।
कुलपति को मिला तबादले का पूर्ण अधिकार
विवि के वकील ने कोर्ट में यह भी तर्क दिया कि याचिकाकर्ता करीब 30 वर्षों से विभिन्न पदों पर विवि में सेवा दे रहे हैं और इस स्थिति में विवि के कुलपति को यह पूरा अधिकार है कि वह प्रशासनिक आवश्यकता अनुसार किसी भी कर्मचारी का तबादला कर सकते हैं।
इस बात को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की ओर से लगाई गई याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि सहायक प्रोफेसरों को तबादले के आदेशों का पालन करते हुए नए पदस्थ स्थान पर कार्यभार ग्रहण करना होगा। कोर्ट ने इस फैसले के साथ यह भी स्पष्ट किया कि कर्मचारियों को यह अधिकार नहीं है कि वे अपनी सुविधा के अनुसार किसी एक ही स्थान पर कार्यरत रहने का दावा करें।
तबादला सरकारी अधिकार, कोर्ट का दखल नहीं जरूरी
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यह टिप्पणी भी की कि किसी सरकारी या स्वायत्तशासी संस्था के कार्यों में कोर्ट को बेवजह हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, खासकर तब, जब वह संस्था प्रशासनिक व्यवस्था को बेहतर करने के उद्देश्य से निर्णय ले रही हो। कोर्ट ने कहा कि कर्मचारी के तबादले की प्रक्रिया यदि नियमों के अनुसार की गई हो और उसमें किसी प्रकार की अनियमितता या पक्षपात न हो, तो न्यायालय को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। हां, अगर तबादला किसी दुर्भावना या व्यक्तिगत द्वेष के तहत किया गया हो, या उसमें किसी कानूनी नियम का उल्लंघन हो रहा हो, तभी उस पर विचार किया जा सकता है।
राजस्थान हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि कर्मचारियों को तुरंत नए स्थान पर कार्यभार ग्रहण करना चाहिए और यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, तो कृषि विश्वविद्यालय प्रशासन उनके खिलाफ विभागीय या अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकता है।
अंत में कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि चूंकि कृषि विश्वविद्यालय एक स्वायत्त संस्था है, इसलिए इस पर राज्य सरकार की तबादला नीति लागू नहीं होती। राज्य सरकार का हस्तक्षेप केवल वित्तीय मामलों में सीमित है। यह निर्णय उन सरकारी और स्वायत्तशासी संस्था के कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है, जो अक्सर तबादले को लेकर कोर्ट का रुख करते हैं। अब यह साफ हो गया है कि जब तक तबादला नियमों के तहत किया गया है, तब तक कर्मचारियों को उसका पालन करना होगा और कोर्ट इस मामले में दखल नहीं देगा।