Tenant Rights : आजकल बड़े शहरों से लेकर छोटे कस्बों तक किराए पर रहने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। नौकरी या पढ़ाई के सिलसिले में लोग अपने गांव-घर छोड़कर शहरों की तरफ रुख करते हैं, जहां किराए का घर ही उनका एकमात्र ठिकाना बनता है। लेकिन जैसे-जैसे किराएदारों की संख्या बढ़ रही है, वैसे-वैसे मकान मालिकों की मनमानी भी बढ़ती जा रही है।
अब आम बात हो गई है कि कुछ ही महीनों में मकान मालिक किराया बढ़ाने की मांग करने लगते हैं, जिससे किराए पर रहने वाले लोगों को काफी तनाव और परेशानी का सामना करना पड़ता है। ऐसे हालात में किराएदारों को यह जानना बेहद जरूरी हो गया है कि उनके क्या-क्या अधिकार हैं और कब मकान मालिक किराया बढ़ा सकता है। इसके लिए कानून में साफ-साफ नियम तय किए गए हैं।
किराया बढ़ाने के लिए कानून में तय हैं नियम
हर मकान मालिक को किराया बढ़ाने का मन तो होता है, लेकिन वो इसे अपनी मर्जी से नहीं कर सकता। किराया बढ़ाने के लिए कुछ कानूनी प्रावधान और नियम बनाए गए हैं, जिनका पालन करना मकान मालिक के लिए जरूरी होता है। यदि कोई मकान मालिक इन नियमों को नजरअंदाज कर किराया बढ़ाता है, तो वह गैरकानूनी होता है और उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की जा सकती है।
हर राज्य में किराया बढ़ाने को लेकर अलग-अलग नियम हैं, जो किराएदारों की सुरक्षा के लिए बनाए गए हैं। मकान मालिक को अगर किराया बढ़ाना है, तो उसे पहले से नोटिस देना होता है और कुछ राज्यों में तो बढ़ोतरी की सीमा भी तय की गई है, जिससे किराएदारों पर बोझ न बढ़े।
एग्रीमेंट में तय शर्तें और किराए में बढ़ोतरी की सीमा
जब कोई व्यक्ति किसी मकान को किराए पर लेता है, तो अधिकतर मामलों में एक लीगल एग्रीमेंट साइन किया जाता है, जो आमतौर पर 11 महीने या 1 साल के लिए होता है। इस एग्रीमेंट में किराए से संबंधित कई नियम लिखे होते हैं, जैसे कि कितने समय के बाद और कितने प्रतिशत किराया बढ़ेगा। यदि इस एग्रीमेंट में यह साफ लिखा हो कि हर साल किराया 10% तक बढ़ाया जाएगा, तो मकान मालिक उसी आधार पर किराया बढ़ा सकता है। लेकिन अगर एग्रीमेंट में ऐसा कोई जिक्र नहीं है, तो किराया बढ़ाना गैरकानूनी होगा। मकान मालिक इस अवधि के दौरान किसी भी हाल में किराया नहीं बढ़ा सकता जब तक कि किरायेदार खुद इसे मानने को तैयार न हो। इसलिए किराया शुरू करने से पहले एग्रीमेंट की शर्तें ध्यान से पढ़नी चाहिए।
अलग-अलग राज्यों के किराया कानून
भारत के अलग-अलग राज्यों में किराया बढ़ाने के अपने-अपने नियम हैं, जो किराएदारों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। जैसे कि महाराष्ट्र में 31 मार्च 2000 से महाराष्ट्र रेंट कंट्रोल एक्ट लागू है, जिसके तहत मकान मालिक सालाना केवल 4 प्रतिशत ही किराया बढ़ा सकता है। अगर वह किसी तरह की मरम्मत या सुधार कार्य करवाता है, तो वह किराया बढ़ा सकता है, लेकिन यह बढ़ोतरी मरम्मत की कुल लागत के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती।
वहीं, दिल्ली की बात करें तो यहां 2009 में लागू हुआ रेंट कंट्रोल एक्ट किराएदारों को मकान मालिक की मनमानी से बचाता है। इस कानून के तहत मकान मालिक हर साल सिर्फ 7 प्रतिशत तक ही किराया बढ़ा सकता है। यह नियम किराएदार को बिना किसी आर्थिक दबाव के लंबे समय तक सुरक्षित तरीके से रहने का अधिकार देता है।
किराएदारों की सुरक्षा के लिए जरूरी कदम
मकान मालिक की मनमानी से बचने के लिए किराएदारों को भी कुछ जरूरी सावधानियां बरतनी चाहिए। सबसे पहले तो किराए का घर लेने से पहले रेंट एग्रीमेंट जरूर करवाएं और उसमें किराया, समयावधि, किराया बढ़ोतरी से संबंधित शर्तें साफ-साफ लिखवाएं। इससे भविष्य में किसी तरह की गलतफहमी नहीं होगी और अगर मकान मालिक नियमों के खिलाफ जाकर किराया बढ़ाने की कोशिश करता है तो आप कानूनी तरीके से उसका विरोध कर सकते हैं।
साथ ही अगर मकान मालिक बिना नोटिस दिए किराया बढ़ाता है, तो संबंधित विभाग या प्राधिकरण में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। इन सभी उपायों से किराएदार खुद को सुरक्षित रख सकता है और मकान मालिक की मनमानी से बच सकता है।