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सरकारी कर्मचारियों के ट्रांसफर के मामले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, हाईकोर्ट का निर्णय पलटा: Supreme Court

Supreme Court: अगर आप सरकारी कर्मचारी हैं तो ये खबर आपके लिए बहुत जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में सरकारी कर्मचारियों के ट्रांसफर से जुड़ा एक अहम फैसला सुनाया है, जिसमें उसने हाईकोर्ट के एक पुराने फैसले को पलट दिया है। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि अगर कोई कर्मचारी अपनी मर्जी से किसी दूसरी जगह ट्रांसफर होना चाहता है, तो उसे जनहित के तहत ट्रांसफर नहीं माना जाएगा और उसकी वरिष्ठता नई जगह पर नहीं रखी जाएगी। इस फैसले से सरकारी कर्मचारियों की ट्रांसफर प्रक्रिया पर बड़ा असर पड़ने वाला है।

स्वेच्छा से ट्रांसफर को नहीं माना जाएगा जनहित

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर कोई कर्मचारी अपने इच्छानुसार ट्रांसफर के लिए आवेदन करता है, तो उसे जनहित में ट्रांसफर नहीं माना जाएगा। इसके अलावा, ऐसे कर्मचारी नई पोस्टिंग पर अपनी पुरानी वरिष्ठता का दावा नहीं कर सकेंगे। यानि कि अपनी मर्जी से ट्रांसफर मांगने वाले कर्मचारी को नई जगह पर सबसे जूनियर माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने कर्नाटक हाई कोर्ट के एक मामले की सुनवाई के दौरान ये फैसला दिया।

 

कोर्ट ने यह भी कहा कि नई जगह पर पहले से काम कर रहे कर्मचारियों के हितों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। बिना किसी पब्लिक या जनहित के कर्मचारियों के अधिकारों में बदलाव नहीं किया जा सकता। इसलिए, जो कर्मचारी स्वेच्छा से ट्रांसफर लेते हैं, उन्हें अपनी पुरानी सीनियरिटी नहीं मिलेगी ताकि अन्य कर्मचारियों के अधिकारों का हनन न हो।

मामला क्या था?

यह मामला कर्नाटक से जुड़ा हुआ है। एक स्टाफ नर्स जो मेडिकल कारणों से फर्स्ट डिवीजन असिस्टेंट (FDA) के पद पर ट्रांसफर चाहती थीं। उनकी बीमारी की पुष्टि मेडिकल बोर्ड ने भी की थी। नर्स ने ट्रांसफर के समय लिखित में कहा था कि उन्हें नई जगह सबसे नीचे रखा जाए। कर्नाटक सरकार ने 1989 में उनका ट्रांसफर मंजूर कर लिया और उनकी सीनियरिटी 1989 से मान ली। लेकिन नर्स ने 2007 में इस फैसले को चुनौती दी और कहा कि उनकी सीनियरिटी 1979 से होनी चाहिए, जब वह पहली बार नौकरी में आई थीं।

 

कर्नाटक प्रशासनिक ट्रिब्यूनल और हाई कोर्ट ने इस नर्स के पक्ष में फैसला सुनाया था। उन्होंने एक पुराने केस ‘स्टेट ऑफ कर्नाटक बनाम के. सीतारामुलु (2010)’ को आधार बनाकर कहा था कि मेडिकल कारणों से हुए ट्रांसफर को जनहित में माना जाता है और इसलिए उनकी पुरानी सीनियरिटी बनी रहेगी।

सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का फैसला पलटा

राज्य सरकार ने कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले से असंतोष जताते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने इस अपील को मंजूरी देते हुए हाई कोर्ट के फैसले को उलट दिया। न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने कहा कि नर्स ने स्वेच्छा से ट्रांसफर मांगा था और उन्होंने नई पोस्टिंग पर सबसे कनिष्ठ रहने के लिए भी सहमति दी थी। इसलिए वह अपनी पुरानी नियुक्ति तिथि से सीनियरिटी का दावा नहीं कर सकतीं। ऐसा करने से नई जगह के बाकी कर्मचारियों के साथ अन्याय होगा। कोर्ट ने कहा कि ट्रिब्यूनल और हाई कोर्ट ने यह गलती की कि वे स्वेच्छा से हुए ट्रांसफर को जनहित वाला मान बैठे।

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि नर्स की सीनियरिटी 1989 से मानी जाएगी, न कि 1979 से, जब उसने पहली बार नौकरी शुरू की थी।

 

सरकारी कर्मचारियों के लिए इसका क्या मतलब है?

इस फैसले का असर अब सभी सरकारी कर्मचारियों पर पड़ेगा। जिन कर्मचारियों ने अपनी मर्जी से ट्रांसफर के लिए आवेदन किया है, वे अपनी पुरानी सीनियरिटी नहीं रख पाएंगे। उन्हें नई जगह पर सबसे जूनियर माना जाएगा, चाहे वे कितने भी साल पहले से नौकरी कर रहे हों। यह फैसला यह सुनिश्चित करता है कि नई जगह के कर्मचारी, जो पहले से वहां काम कर रहे हैं, उनके अधिकारों और वरिष्ठता का सम्मान किया जाए।

इसके साथ ही, यह आदेश सरकारी कर्मचारियों को यह भी स्पष्ट कर देता है कि अगर वे स्वयं की मर्जी से ट्रांसफर चाहते हैं, तो इसके नतीजे में उन्हें वरिष्ठता में नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसलिए ट्रांसफर के मामले में अब और सावधानी बरतनी होगी।

 

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सरकारी कर्मचारियों के ट्रांसफर के नियमों को और सख्त और स्पष्ट करता है। अब जनहित में ट्रांसफर और स्वेच्छा से ट्रांसफर में फर्क साफ हो गया है। जो कर्मचारी स्वेच्छा से ट्रांसफर का विकल्प चुनेंगे, उन्हें अपनी सीनियरिटी नई जगह पर खोनी पड़ेगी। यह फैसला कर्मचारियों के अधिकारों के साथ-साथ नई जगह के कर्मचारियों के हितों का भी समुचित संरक्षण करता है। अगर आप भी सरकारी कर्मचारी हैं, तो यह फैसला आपके लिए बेहद महत्वपूर्ण है और ट्रांसफर के फैसले से पहले इसे ध्यान से समझना जरूरी है।

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