Shubman Gill

Shubman Gill: कैसे बने शुभमन गिल टेस्ट टीम के कप्तान? जानिए अंदर की पूरी कहानी

Shubman Gill: शुबमन गिल का टेस्ट कप्तान बनना कोई सामान्य बात नहीं है। यह न तो एक लंबे समय से प्लान किया गया फैसला था और न ही कोई पहले से तयशुदा उत्तराधिकारी की ताजपोशी। पिछले साल तक उन्हें टेस्ट टीम से बाहर करने की बात हो रही थी, और इसी साल की शुरुआत में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज़ में मेलबर्न टेस्ट में वह ड्रिंक्स सर्व कर रहे थे। लेकिन विराट कोहली और रोहित शर्मा के संन्यास लेने के बाद और जसप्रीत बुमराह, केएल राहुल और ऋषभ पंत जैसे अन्य दावेदारों पर चयनकर्ताओं का भरोसा ना होने के चलते, 24 वर्षीय गिल को टीम इंडिया की टेस्ट कप्तानी सौंप दी गई।

कैसे बना गिल को कप्तान बनाना मजबूरी से मौका

2024 की इंग्लैंड के खिलाफ घरेलू सीरीज़ में गिल की फॉर्म गिरती नज़र आई थी और वह लगभग टीम से बाहर हो ही गए थे। लेकिन फिर उन्होंने खुद को संभाला और एक शानदार वापसी की। बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी में, जब सिडनी टेस्ट के लिए रोहित शर्मा ने खुद को बाहर किया, तब गिल को मौका मिला। उस टेस्ट में जो उन्होंने किया, वही शायद उनकी कप्तानी की ओर पहला कदम था।

 

आईपीएल में हालात गिल के पक्ष में रहे। एलएसजी के कप्तान पंत की टीम फ्लॉप रही, और दिल्ली कैपिटल्स में जब कप्तान अक्षर पटेल चोटिल हुए तो केएल राहुल को कप्तानी नहीं दी गई। राहुल को तो पिछली घरेलू सीरीज़ में एक टेस्ट के बाद ही ड्रॉप कर दिया गया था, जब भारत को न्यूज़ीलैंड से हार का सामना करना पड़ा था। जडेजा, जो अब सबसे सीनियर खिलाड़ी हैं, उन्हें कप्तानी देने का विचार कभी गंभीरता से नहीं किया गया, खासकर तब जब एमएस धोनी ने आईपीएल में एक बार फिर जडेजा की जगह खुद को कप्तान बना लिया।

आईपीएल में कप्तानी के गुण: रवि शास्त्री से लेकर ईशांत तक की राय

गिल की आईपीएल कप्तानी में जो बात ध्यान खींचती है, वो है उनकी “प्रतिस्पर्धात्मक भावना”, जैसा कि सुनील गावस्कर ने कहा। वहीं रवि शास्त्री के अनुसार गिल का संयम और स्थिरता काबिल-ए-तारीफ है। गुजरात टाइटंस के ड्रेसिंग रूम में मौजूद ईशांत शर्मा, आशीष नेहरा और पार्थिव पटेल ने गिल के लीडरशिप स्टाइल पर रोशनी डाली।

ईशांत ने एक वाकये का ज़िक्र किया जब टाइमआउट के दौरान गिल ने किसी खास गेंदबाज़ी योजना की बात की, लेकिन नेहरा ने उन्हें समझाया कि सबसे पहले गेंदबाज़ की सोच और निर्णय को तवज्जो दी जानी चाहिए। एक अच्छे कप्तान को गेंदबाज़ का कप्तान होना चाहिए। अगर वो योजना ना चले, तब प्लान बी। ईशांत मानते हैं कि गिल अब कप्तानी के बारे में बहुत कुछ सीख रहे हैं, और आने वाले समय में उनका असर और भी दिखेगा।

पार्थिव पटेल की भी एक अहम बात सामने आई: “गिल युवाओं के साथ बेहतरीन तालमेल रखते हैं। वो ज़्यादा बोलते नहीं हैं, लेकिन जब बोलते हैं तो टीम सुनती है।”

 

कोच आशीष नेहरा और सीखने की प्रक्रिया

आशीष नेहरा, जिन्होंने हार्दिक पांड्या और अब गिल को भी गढ़ा है, कहते हैं कि गिल थोड़े शर्मीले ज़रूर हैं, लेकिन सीखने की भूख उनमें बहुत ज़्यादा है। नेहरा ने कहा, “अगर गिल अगले 3-4 साल तक कप्तानी करते हैं और ज़मीन से जुड़े रहते हैं, तो उनकी सीमाएं आसमान तक होंगी।”

गुजरात टाइटंस के कोच गैरी कर्स्टन ने भी कहा था कि गिल इस ज़िम्मेदारी को निभाने के लिए बेहद इच्छुक हैं, लेकिन उन्हें सहारा देने की ज़रूरत है। गिल ने खुद भी बताया कि पिछले साल कुछ मैचों में वे कप्तानी के दबाव में अपनी बल्लेबाज़ी पर ध्यान नहीं दे पा रहे थे, तब नेहरा ने उन्हें समझाया कि बल्लेबाज़ी और कप्तानी को अलग रखो। यह सलाह उनके खेल में बड़ा बदलाव लाई।

कप्तान के तौर पर पहला इम्तिहान: सिडनी टेस्ट के दो अहम पल

जनवरी में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सिडनी टेस्ट में, जब वह रोहित के स्थान पर लौटे, तो पहली पारी में लंच से ठीक पहले उन्होंने नैथन लायन को डांस डाउन द ट्रैक करने की कोशिश की और बुरी तरह स्टंप हुए। तब स्टीव स्मिथ और बाकी खिलाड़ी स्लेजिंग कर रहे थे और गिल का जवाब एक गैर-जिम्मेदाराना शॉट था। दूसरी पारी में भी, उन्होंने मीडियम पेसर बो वेबस्टर के खिलाफ ऐसा ही दुस्साहसिक शॉट खेला और विकेट गंवा दिया।

ये दोनों घटनाएं गिल की अधूरी परिपक्वता और जल्दबाज़ी को दिखाती हैं, जो उन्हें आगे सुधारनी होगी। ये वही “छोटे लेकिन बड़े मौके” हैं जो कप्तानों को बड़ा बनाते हैं।

कोहली से तुलना गलत होगी

गिल की तुलना विराट कोहली से करना जल्दबाज़ी होगी। कोहली जब कप्तान बने तो ना केवल वो फॉर्म में थे बल्कि उनका व्यक्तित्व भी एक लीडर जैसा था। जब धोनी ने कप्तानी छोड़ी, तो किसी को हैरानी नहीं हुई। वहीं गिल की स्थिति अलग है – उन्हें अपनी जगह और छवि दोनों साबित करनी है।

भारतीय टेस्ट कप्तानों की श्रृंखला में देखें तो गिल की स्थिति उन कप्तानों से थोड़ी अलग है, जैसे कुंबले, द्रविड़, गांगुली या यहां तक कि तेंदुलकर तक, जिन्हें लेकर शुरुआत से ही उम्मीदें थीं। गिल शायद उतने तैयार नहीं हैं, लेकिन आज की परिस्थिति ने उन्हें उस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहां से उनका सफर शुरू होता है।

 

अभी अधूरा है, लेकिन संभावनाओं से भरा हुआ

शुबमन गिल अभी एक अधूरा कप्तान हैं – सीखते हुए, खुद को ढालते हुए, नई भूमिका को अपनाते हुए। लेकिन उनकी इच्छा, समझ और टीम के साथ उनका जुड़ाव बताता है कि अगर समय और सहारा मिला, तो वह भारतीय टेस्ट क्रिकेट को एक नई दिशा दे सकते हैं।

उनका नेतृत्व, खासकर इंग्लैंड जैसी मुश्किल परिस्थितियों में, ये तय करेगा कि वो एक तात्कालिक समाधान हैं या लंबी रेस का घोड़ा। समय गवाह बनेगा – क्या गिल खुद को परख पाएंगे या सिर्फ एक प्रयोग बनकर रह जाएंगे।

Scroll to Top