पेंटर बना डॉक्टर: मध्य प्रदेश के जबलपुर में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां एक पेंटर ने अपने दोस्त की पहचान चुराकर डॉक्टर बनकर सात साल तक मरीजों का इलाज किया। यह घोटाला तब उजागर हुआ जब एक महिला की इलाज के दौरान मौत हो गई और उसके बेटे ने जांच शुरू की। इस घटना ने पूरे शहर को हिला दिया और अस्पतालों में डॉक्टरों की जांच को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। लोगों में डर और अविश्वास की भावना बढ़ गई है। पूरे मामले ने स्वास्थ्य व्यवस्था पर एक बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है। अब यह सवाल उठता है कि सिस्टम की जांच प्रक्रिया कितनी कमजोर है। आम जनता में भी इस घटना को लेकर आक्रोश बढ़ता जा रहा है।
महिला की मौत से खुला राज
सितंबर 2024 में शांति देवी महावर नामक महिला को जबलपुर के मार्बल सिटी अस्पताल में भर्ती कराया गया। उनके बेटे, रेलवे अधिकारी मनोज कुमार महावर, ने उन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया था। इलाज के दौरान शांति देवी की मौत हो गई। इसके बाद, मनोज ने उनकी मेडिकल रिपोर्ट्स की जांच की और पाया कि रिपोर्ट्स में डॉक्टर ब्रिजराज उइके का नाम दर्ज है।
ये नाम हर रिपोर्ट में प्रमुखता से दर्ज था, जिससे यह जाहिर होता था कि वही इलाज कर रहे थे। इस मौत ने एक बड़े फर्जीवाड़े की परतें खोलीं। मनोज का संदेह बढ़ता गया और उन्होंने खुद तहकीकात का फैसला किया। उन्होंने यह जानने की ठानी कि आखिर उनकी मां की जान कैसे गई। एक बेटे की जिद ने पूरे मामले की परतें खोल दीं।
डॉक्टर की पहचान पर सवाल
मनोज ने अस्पताल से डॉक्टर ब्रिजराज उइके से मिलने की मांग की, लेकिन अस्पताल प्रबंधन ने टालमटोल करना शुरू कर दिया। इससे मनोज को शक हुआ और उन्होंने खुद जांच शुरू की। उन्होंने अस्पताल के कर्मचारियों से पूछताछ की और अंततः ब्रिजराज उइके को ढूंढ निकाला। इस बीच अस्पताल ने कोई स्पष्ट जानकारी देने से इनकार किया, जिससे मामला और भी संदिग्ध बन गया।
मनोज की सतर्कता और धैर्य ने पूरे घोटाले को सामने लाने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने सच्चाई सामने लाकर सिस्टम की पोल खोल दी। अगर मनोज पीछे हट जाते, तो यह फर्जीवाड़ा चलता रहता। एक जागरूक नागरिक ने सबक सिखाया।
“मैं डॉक्टर नहीं, पेंटर हूं”
जब मनोज ने ब्रिजराज उइके से मुलाकात की, तो उन्होंने बताया कि वे डॉक्टर नहीं, बल्कि पेंटर हैं। उन्होंने यह भी बताया कि अस्पताल में जो फोटो डॉक्टर के रूप में लगी थी, वह उनके स्कूल के दोस्त सतीन्द्र कुमार की थी, जिसने उनकी पहचान चुराकर एमबीबीएस की पढ़ाई की और डॉक्टर बन गया। यह सुनकर मनोज हैरान रह गए और उन्होंने तुरंत प्रशासन से इसकी शिकायत की।
यह खुलासा अस्पताल के कामकाज पर एक बड़ा सवाल बनकर खड़ा हो गया। यह बात सुनकर हर कोई स्तब्ध रह गया और चिंता में डूब गया। पेंटर के नाम पर इलाज कराना एक भयानक कल्पना बन गई। स्वास्थ्य सेवाओं पर भरोसा अब डगमगाने लगा है।
फर्जी दस्तावेजों से बना डॉक्टर
जांच में सामने आया कि सतीन्द्र कुमार ने ब्रिजराज उइके की 10वीं और 12वीं की मार्कशीट्स पर अपनी फोटो चिपकाकर मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लिया। उसने अनुसूचित जनजाति के कोटे का लाभ उठाकर एमबीबीएस की डिग्री हासिल की और सात साल तक डॉक्टर बनकर मरीजों का इलाज करता रहा।
इस दौरान न तो किसी ने शक किया, न ही उसके डॉक्यूमेंट्स की गहन जांच हुई। यह पूरा मामला सिस्टम में भारी लापरवाही को दर्शाता है। सतीन्द्र ने जालसाजी की हर हद पार कर दी थी। प्रशासन की लापरवाही ने इस फर्जी डॉक्टर को खुली छूट दे दी। अब आम लोगों को सतर्क रहना होगा।
पुलिस में शिकायत और जांच
इस खुलासे के बाद, मनोज महावर ने ओमती पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े के आरोप में एफआईआर दर्ज की और मामले की जांच शुरू की। पुलिस अब यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि सतीन्द्र ने कैसे विभिन्न जांच प्रक्रियाओं को चकमा देकर डॉक्टर बन गया। मामले में कई अधिकारियों की भूमिका की भी जांच की जा रही है।
दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की उम्मीद जताई जा रही है। पुलिस की जांच से और भी बड़े राज सामने आ सकते हैं। यह मामला अब राज्य स्तर पर चर्चा का विषय बन चुका है। सभी की निगाहें जांच रिपोर्ट पर टिकी हैं।
स्वास्थ्य विभाग की चुप्पी
इस मामले में स्वास्थ्य विभाग की ओर से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि, स्थानीय लोग और सामाजिक कार्यकर्ता इस घोटाले की गहन जांच और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
यह चुप्पी प्रशासन की निष्क्रियता को उजागर करती है। लोगों में इस बात को लेकर आक्रोश है कि इतने बड़े घोटाले पर भी विभाग चुप बैठा है। आम नागरिकों का भरोसा अब टूटता नजर आ रहा है। अगर अब भी विभाग नहीं जागा, तो ऐसे मामले फिर सामने आ सकते हैं। शासन की जवाबदेही अब सवालों के घेरे में है।
डामोह अस्पताल घोटाले से समानता
यह मामला डामोह के मिशन अस्पताल में हुए घोटाले से मिलता-जुलता है, जहां एक फर्जी डॉक्टर ने सात मरीजों की जान ले ली थी। इन दोनों मामलों ने राज्य में अस्पतालों की निगरानी और सत्यापन प्रक्रियाओं पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इन घटनाओं से साफ हो गया है कि सिस्टम में कई खामियां हैं जिन्हें तुरंत ठीक करने की जरूरत है। वरना भविष्य में और भी जानें जा सकती हैं। यह सिलसिला अगर नहीं रुका तो गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। एक के बाद एक मामले सामने आना चिंता का विषय है। जिम्मेदारों की जवाबदेही तय करना जरूरी है।
यह घटना न केवल एक व्यक्ति की धोखाधड़ी की कहानी है, बल्कि यह हमारे स्वास्थ्य प्रणाली की कमजोरियों को भी उजागर करती है। यह आवश्यक है कि अस्पतालों में डॉक्टरों की नियुक्ति से पहले उनकी शैक्षणिक और पेशेवर पृष्ठभूमि की पूरी जांच की जाए, ताकि भविष्य में ऐसे घोटालों से बचा जा सके। इस मामले ने यह सिखाया है कि केवल डिग्री नहीं, सत्यापन भी जरूरी है।
हर नागरिक को सजग रहना चाहिए और ऐसे मामलों को उजागर करना चाहिए। प्रशासन को भी अब जागना होगा और व्यवस्था में सुधार करना होगा। जागरूकता और सतर्कता से ही ऐसे मामलों को रोका जा सकता है। यह घटना एक चेतावनी है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।