property knowledge: भारत में किरायेदारी को लेकर जितने भ्रम हैं, शायद ही किसी और चीज़ को लेकर होंगे। कई लोग सोचते हैं कि अगर कोई किरायेदार 10-20 साल तक एक मकान में रहा तो वह उस मकान का मालिक बन सकता है। इस सोच ने बहुत सारे मकान मालिकों की नींद उड़ा दी है। कुछ तो डर के मारे किराएदार ही नहीं रखते। लेकिन सच्चाई क्या है, कानून क्या कहता है, और मकान मालिक को क्या करना चाहिए, यह जानना आज के समय में बहुत जरूरी हो गया है।
किरायेदारी और कब्जे का फर्क समझना जरूरी है
कई बार लोग यह मान लेते हैं कि किसी भी प्रॉपर्टी पर अगर कोई लंबे समय तक रहा है, तो वह उसका मालिक बन सकता है। लेकिन ऐसा तभी होता है जब वो बिना किसी कानूनी करार के उस संपत्ति पर जबरन या खुले तौर पर कब्ज़ा करे और असली मालिक 12 साल तक उस पर कोई दावा न करे। इसे कानून की भाषा में “एडवर्स पजेशन” कहा जाता है। लेकिन अगर किरायेदार हर महीने किराया दे रहा है और मकान मालिक से उसका किरायेदारी का रिश्ता साफ है, तो वह चाहे 50 साल भी रहे, वह मकान का मालिक नहीं बन सकता।
किरायेदारी को मालिकाना हक नहीं माना जाता
भारत में किरायेदारी का कानून साफ-साफ कहता है कि जब तक कोई व्यक्ति किरायेदार के रूप में किसी मकान में रह रहा है और किराया दे रहा है, तब तक वह मालिकाना हक नहीं जता सकता। इसका मतलब यह हुआ कि जब तक मकान मालिक और किरायेदार के बीच किरायेदारी का रिश्ता बना हुआ है, तब तक कोई कब्जा या मालिकाना अधिकार का दावा नहीं बनता। कई बार लोग डर जाते हैं कि अगर कोर्ट में मामला गया तो किरायेदार मकान ले जाएगा, लेकिन ऐसा तभी होता है जब मालिक की तरफ से दस्तावेजों में गड़बड़ी हो या कोई लीगल प्रक्रिया समय पर न की गई हो।
दस्तावेज़ और एग्रीमेंट सबसे बड़ा हथियार
कोई भी मकान मालिक अगर अपने किरायेदार से लिखित किरायानामा (रेंट एग्रीमेंट) बनवाकर रखता है, और उसे हर 11 महीने में रिन्यू करता है, तो फिर किरायेदार का मालिक बनने का कोई चांस नहीं होता। कानून में लिखा गया है कि अगर कोई किरायेदार मालिक की मर्जी से मकान में रह रहा है, किराया दे रहा है और समय-समय पर उसका रेंट एग्रीमेंट रिन्यू हो रहा है, तो वह किसी भी हालत में संपत्ति पर दावा नहीं कर सकता। कई केस में जब मालिकों ने किरायानामा नहीं बनाया, सालों तक किराया नकद लिया और सबूत नहीं रखा, तब कोर्ट में मामला उनके खिलाफ गया।
कब्जे का दावा तभी बनता है जब मालिक निष्क्रिय हो जाए
एडवर्स पजेशन या कब्जे का कानून यह कहता है कि अगर कोई व्यक्ति 12 साल तक किसी प्रॉपर्टी पर बिना विरोध के, लगातार और खुले तौर पर कब्जा कर लेता है, और उस दौरान असली मालिक कोई कानूनी कार्यवाही नहीं करता, तो उस कब्जेदार को प्रॉपर्टी का मालिक मान लिया जाता है। लेकिन किरायेदार के केस में यह लागू नहीं होता, क्योंकि वह मालिक की अनुमति से ही वहाँ रह रहा होता है। अगर कोई किरायेदार बाद में कब्जा कर भी ले, तो भी मालिक के पास कोर्ट जाने का पूरा हक रहता है।
मकान मालिकों को क्या सावधानी रखनी चाहिए
मकान मालिकों को सबसे जरूरी बात यह समझनी चाहिए कि कानून उनके साथ है, लेकिन लापरवाही की सजा कभी-कभी भारी पड़ सकती है। हमेशा किरायानामा बनवाएं, उसमें किराया, तारीख और रहने की अवधि साफ लिखें। किराए का भुगतान बैंक से या रसीद के जरिए लें ताकि सबूत रहे। अगर किरायेदार तय समय से ज्यादा रुके तो तुरंत कानूनी नोटिस भेजें। यह छोटी-छोटी सावधानियां आगे चलकर मकान पर किसी भी तरह के गलत दावे से बचा सकती हैं।
भारत में कानून बहुत कुछ कहता है लेकिन आम लोग जानकारी के बिना डर या गलतफहमी में जीते हैं। किरायेदार चाहे कितने भी साल किसी मकान में रहे, जब तक वो किराया दे रहा है और मकान मालिक की इजाजत से रह रहा है, वह उस मकान का मालिक नहीं बन सकता। लेकिन मकान मालिक को भी समय पर रेंट एग्रीमेंट बनवाना और सभी रिकॉर्ड रखना जरूरी है। इस फैसले से जुड़ी कई मिसालें देश की अदालतों में मौजूद हैं, जो साफ बताती हैं कि कानून मालिक के साथ खड़ा होता है, अगर वो खुद अपने हक के लिए खड़ा हो।
👉 अगर आपके जान-पहचान में कोई मकान मालिक या किरायेदार है, तो ये पोस्ट जरूर शेयर करें – ताकि कोई कानून के डर या भ्रम में न रहे।