Tenant landlord Dispute: भारत में प्रॉपर्टी को लेकर सबसे ज़्यादा विवाद किराएदार और मकान मालिक के बीच होते हैं। कई बार किराएदार कुछ सालों के लिए आता है और फिर साल दर साल उस घर में ऐसे टिक जाता है मानो उसका ही हो। ऐसा ही एक मामला सामने आया जिसमें एक किराएदार ने पूरे 40 साल तक मकान पर कब्जा बनाए रखा और बाद में दावा भी कर दिया कि अब यह प्रॉपर्टी उसकी है।
इस लंबे विवाद के बाद आखिरकार मामला हाईकोर्ट पहुंचा जहां कोर्ट ने मकान मालिक के हक में ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने साफ कर दिया कि सिर्फ लंबे समय तक किसी जगह पर रहने से कोई उस पर मालिकाना हक नहीं जता सकता, खासकर जब वह किराए की शर्तों पर रह रहा हो। इस फैसले ने देशभर में मकान मालिकों को राहत की सांस दी है।
40 साल तक किराएदारी, फिर किया मालिकाना हक का दावा
मामला उत्तर भारत के एक बड़े शहर से जुड़ा है जहां एक परिवार ने अपनी दो मंजिला प्रॉपर्टी का एक हिस्सा 1983 में एक व्यक्ति को किराए पर दिया था। किराएदार शुरू में हर महीने किराया देता रहा, लेकिन कुछ साल बाद किराया देना बंद कर दिया और फिर उस प्रॉपर्टी को अपना बताने लगा।
मकान मालिक ने कई बार खाली कराने की कोशिश की लेकिन बात नहीं बनी। आखिरकार मामला अदालत तक पहुंचा। किराएदार का दावा था कि चूंकि वो 40 साल से लगातार उस जगह पर रह रहा है और अब कोई किरायानामा भी नहीं है, तो उसे “एडवर्स पजेशन” के तहत प्रॉपर्टी का हक मिलना चाहिए।
हाईकोर्ट ने साफ किया कानून का असली मतलब
हाईकोर्ट ने पूरे केस की सुनवाई के दौरान कहा कि एडवर्स पजेशन (Adverse Possession) का कानून तभी लागू होता है जब कोई व्यक्ति बिना अनुमति के और खुले तौर पर किसी प्रॉपर्टी पर कब्जा कर ले, और असली मालिक लंबे समय तक कोई आपत्ति न जताए।
लेकिन इस केस में किराएदार पहले खुद ही किरायेदारी के आधार पर उस घर में आया था, और उसके रहने की शुरुआत मालिक की मंजूरी से हुई थी। कोर्ट ने ये भी कहा कि भले ही बाद में किराया देना बंद कर दिया गया हो, लेकिन अगर शुरूआत किरायेदारी से हुई है तो वह मालिकाना हक का दावा नहीं कर सकता।
इस फैसले ने यह साफ कर दिया कि किरायेदार चाहे जितने साल भी किसी प्रॉपर्टी में रहे, अगर वह कानूनी रूप से किराए पर है तो उसे उस प्रॉपर्टी का मालिक नहीं माना जा सकता।
फैसले का असर देशभर के मकान मालिकों पर
इस फैसले से देशभर के लाखों मकान मालिकों को राहत मिली है जो सालों से ऐसे ही मामलों में फंसे हुए हैं। कई जगहों पर पुराने किराएदार समय का फायदा उठाकर प्रॉपर्टी पर कब्जा कर लेते हैं और फिर कोर्ट में जाकर “अधिकार” जताते हैं।
लेकिन अब हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि किसी भी प्रॉपर्टी पर मालिकाना हक साबित करने के लिए किरायेदारी का कोई आधार नहीं हो सकता। कोर्ट ने इस फैसले में यह भी कहा कि मकान मालिक को अपनी प्रॉपर्टी के दस्तावेज संभालकर रखने चाहिए और समय-समय पर कानूनी प्रक्रिया अपनानी चाहिए ताकि ऐसे विवाद से बचा जा सके।
किराए पर प्रॉपर्टी देने वालों को क्या सावधानी रखनी चाहिए
यह फैसला सभी मकान मालिकों के लिए एक चेतावनी भी है। जब भी आप किसी को अपना घर किराए पर दें तो हर बार लिखित किरायानामा (rent agreement) जरूर बनवाएं और उसे रजिस्टर्ड कराएं। यह भी ध्यान रखें कि हर 11 महीने में उसे रिन्यू कराना जरूरी होता है।
किराया कैश में न लेकर बैंक ट्रांसफर या रसीद के माध्यम से लिया जाए ताकि सबूत बना रहे। अगर किरायेदार किसी महीने किराया न दे तो उसे तुरंत नोटिस दें और रिकॉर्ड बनाएं। ऐसा करके आप भविष्य में किसी भी तरह के कानूनी पचड़े से बच सकते हैं।
कानून मकान मालिक के साथ है, लेकिन अगर आप खुद लापरवाही करेंगे तो कई बार नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।