क्रिमिनल जस्टिस सीजन 4

क्रिमिनल जस्टिस सीजन 4: एक और जबरदस्त कहानी के साथ लौटे माधव मिश्रा, इस बार मामला है और भी पेचीदा

क्रिमिनल जस्टिस सीजन 4: क्राइम और कोर्टरूम ड्रामा देखने वाले दर्शकों के लिए “क्रिमिनल जस्टिस” एक ऐसा शो बन चुका है, जिसने ओटीटी की दुनिया में अलग ही पहचान बनाई है। हर सीजन के साथ इस शो ने ना सिर्फ नए केस की गहराई को दिखाया है, बल्कि आम इंसान के नजरिए से कानून और इंसाफ की लड़ाई को भी सामने लाया है। अब क्रिमिनल जस्टिस सीजन 4 के आने के बाद फिर एक बार दर्शकों में उत्सुकता की लहर दौड़ गई है। इस बार की कहानी पहले से ज्यादा भावनात्मक, जटिल और सामाजिक सवालों से जुड़ी हुई है, जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर देती है।

शो के मेन लीड पंकज त्रिपाठी इस सीजन में भी वकील माधव मिश्रा के किरदार में लौटे हैं, जो अपनी सादगी, चालाकी और कानूनी पैंतरों से फिर एक बार केस को उलट-पलट करते दिखेंगे। लेकिन इस बार जो केस उनके सामने आया है, वो न सिर्फ कानून बल्कि समाज और परिवार की जड़ों को भी छूता है।

कहानी की पृष्ठभूमि और इस बार का मामला

क्रिमिनल जस्टिस सीजन 4 की कहानी एक नाबालिग लड़की के मर्डर केस के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसमें शक की सुई उसी के छोटे भाई पर जाती है। कहानी में भावनात्मक झटके हैं, पारिवारिक उलझनें हैं और सिस्टम की खामियों को भी बारीकी से दिखाया गया है।

जब पुलिस आरोपी बच्चे को पकड़ती है, तब पूरा परिवार टूट जाता है। लेकिन मामला यहीं खत्म नहीं होता। जब वकील माधव मिश्रा इस केस को संभालते हैं, तो कहानी में ऐसे मोड़ आते हैं जो दर्शकों को बांध कर रखते हैं। सीजन 4 में साफ दिखता है कि सिर्फ कोर्ट में लड़ाई नहीं होती, बल्कि समाज में भी एक मानसिक ट्रायल चलता है। लोगों की राय, मीडिया ट्रायल और सोशल प्रेशर कैसे किसी को गुनहगार बना सकते हैं, ये बात शो बहुत गहराई से दिखाता है।

माधव मिश्रा की वापसी और उनका अंदाज़

पंकज त्रिपाठी का किरदार माधव मिश्रा इस शो की जान है। उनकी आम आदमी वाली भाषा, बिना बनावटी तेवर और सीधी बात कहने का तरीका लोगों को फिर एक बार पसंद आ रहा है।

माधव मिश्रा का किरदार ऐसा है जो आपको आपके आसपास के किसी वकील जैसा लगेगा – थोड़ा चालाक, थोड़ा भावुक और बहुत ज्यादा जुड़ा हुआ। वो ना सिर्फ आरोपी के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ते हैं, बल्कि उसकी परवरिश, उसके हालात और उसके मानसिक स्थिति को भी कोर्ट के सामने रखते हैं।

इस बार उनके सामने जो चुनौती है, वो सिर्फ लीगल नहीं, बल्कि नैतिक भी है। एक बच्चा जिसने अपनी बहन का मर्डर किया या नहीं – ये साबित करना आसान नहीं है। लेकिन माधव मिश्रा अपने अनुभव, भावनाओं और कानूनी दांव-पेंच के सहारे एक बार फिर दिखाते हैं कि इंसाफ सिर्फ कानून से नहीं, इंसानियत से भी जुड़ा होता है।

निर्देशन, पटकथा और प्रस्तुति

क्रिमिनल जस्टिस सीजन 4 का निर्देशन बहुत ही संवेदनशीलता और गंभीरता से किया गया है। कहानी की रफ्तार धीमी नहीं है, लेकिन हर मोड़ पर सोचने के लिए कुछ ना कुछ छोड़ जाती है। निर्देशक ने कोर्टरूम की कार्यवाही को बहुत असली और जमीनी तरीके से दिखाया है। ना कोई ओवरड्रामा, ना ही बेवजह की बहस – बस सच्चाई और तर्क के सहारे आगे बढ़ती कहानी।

स्क्रिप्ट में इमोशन और लॉजिक का संतुलन बेहद खूबसूरती से रखा गया है। संवादों में गहराई है, और हर किरदार की अपनी परछाई है जो कहानी को और मज़बूत बनाती है। कैमरा वर्क और बैकग्राउंड म्यूज़िक भी शो को एक गंभीर और प्रभावशाली टोन देता है। हर सीन में माहौल का असर महसूस होता है, खासकर कोर्ट के दृश्यों में।

सोशल इशू और समाज को दिखाता आईना

इस बार की कहानी सिर्फ एक मर्डर केस नहीं, बल्कि समाज में बच्चों की परवरिश, पारिवारिक तानाबाना और किशोर अपराध की मानसिकता को भी सामने लाती है। क्रिमिनल जस्टिस सीजन 4 ये सवाल भी उठाता है कि क्या कानून सबके लिए बराबर है? क्या नाबालिग को बाल सुधार गृह भेजना ही न्याय है, या उसके मानसिक और पारिवारिक हालात को समझना भी जरूरी है?

इस सीजन में कानून की सीमाओं के साथ-साथ इंसाफ के असली मायनों पर भी सवाल खड़े किए गए हैं। ये शो दिखाता है कि अपराध का कारण समझना, सिर्फ सजा देने से कहीं ज़्यादा जरूरी है। शो में मीडिया ट्रायल, सोशल जजमेंट और न्याय प्रक्रिया में देरी जैसे मुद्दों को भी बेहद बारीकी से उठाया गया है। और यही बात इसे सिर्फ एक क्राइम शो नहीं, बल्कि सोचने पर मजबूर करने वाला ड्रामा बनाती है।

Scroll to Top