Supreme Court : तमिलनाडु की प्रतिष्ठित अन्ना यूनिवर्सिटी एक बार फिर खबरों में है, लेकिन इस बार वजह गर्व की नहीं, बल्कि शर्म और अपराध की है। एक ऐसा मामला जो न केवल विश्वविद्यालय की छवि पर दाग लगा गया, बल्कि समाज में मौजूद उस स्याह सच्चाई को सामने लाया जिसे हम अक्सर अनदेखा करते हैं।
अन्ना यूनिवर्सिटी के एक पूर्व गेस्ट लेक्चरर ज्ञनसेकर पर लगे यौन शोषण के आरोप अब अदालत द्वारा साबित हो चुके हैं। कोर्ट ने ज्ञनसेकर को दोषी करार देते हुए सजा सुनाई है, जिससे पीड़ित को न्याय तो मिला है, लेकिन यह सवाल भी उठ गया है कि शिक्षा जैसे पवित्र क्षेत्र में आखिर ऐसा कब तक होता रहेगा। यह फैसला देशभर के शैक्षणिक संस्थानों के लिए एक चेतावनी है कि अब चुप्पी नहीं, सख्त कदम उठाने का वक्त है।
घटना की पृष्ठभूमि और प्रारंभिक कार्रवाई
इस पूरे मामले की शुरुआत 2022 में हुई, जब अन्ना यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली एक छात्रा ने पूर्व गेस्ट लेक्चरर ज्ञनसेकर पर यौन उत्पीड़न का गंभीर आरोप लगाया। छात्रा के मुताबिक, ज्ञनसेकर ने उसे अकेले में बुलाकर शारीरिक तौर पर प्रताड़ित करने की कोशिश की थी। पहले तो छात्रा डरी रही, लेकिन बाद में उसने अपने साथियों और फिर यूनिवर्सिटी प्रशासन को इसकी जानकारी दी।
मामले की गंभीरता को देखते हुए अन्ना यूनिवर्सिटी प्रशासन ने तुरंत कार्रवाई करते हुए ज्ञनसेकर को निलंबित कर दिया और पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई गई। इसके बाद आरोपी को गिरफ्तार किया गया और मामला सीधे कोर्ट तक पहुंचा। इस केस की जांच में पुलिस और फॉरेंसिक विभाग ने पूरी मेहनत की और छात्रा के बयान और तकनीकी सबूतों के आधार पर चार्जशीट तैयार की गई।
अदालत की सुनवाई और सबूतों की ताकत
जब मामला कोर्ट में पहुंचा तो शुरुआत में ज्ञनसेकर ने खुद को निर्दोष बताया और कहा कि उसे झूठा फंसाया जा रहा है। लेकिन जैसे-जैसे सुनवाई आगे बढ़ी, वैसे-वैसे सच्चाई सामने आती गई। छात्रा के बयान में जो दृढ़ता थी, वह अदालत के लिए सबसे मजबूत सबूत बनकर उभरी। इसके अलावा मोबाइल चैट्स, कॉल रिकॉर्ड्स और यूनिवर्सिटी के CCTV फुटेज ने केस को और मजबूत किया।
मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में हुई, जहां विशेष रूप से महिला और बच्चों से जुड़े अपराधों की जल्द सुनवाई होती है। इस कोर्ट ने ना सिर्फ पीड़िता के पक्ष को गंभीरता से सुना, बल्कि आरोपी को दिए गए हर तर्क की कड़ी जांच की। अंत में, कोर्ट ने माना कि ज्ञनसेकर ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए छात्रा के साथ अनुचित व्यवहार किया और उसे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया।
सजा और सामाजिक संदेश
कोर्ट ने ज्ञनसेकर को दोषी करार देते हुए IPC की धारा 354A (यौन उत्पीड़न) और POSH एक्ट (Prevention of Sexual Harassment) के तहत सजा सुनाई। उसे तीन साल की सश्रम कारावास की सजा दी गई और साथ ही ₹50,000 का जुर्माना भी लगाया गया।
इस फैसले ने न सिर्फ पीड़िता को न्याय दिलाया, बल्कि पूरे समाज को यह संदेश दिया कि अब कोई भी व्यक्ति अपने पद या ताकत का गलत इस्तेमाल कर महिलाओं को डराने-धमकाने की कोशिश नहीं कर सकता। यह फैसला उन हजारों लड़कियों के लिए एक प्रेरणा है जो चुप रह जाती हैं, डर जाती हैं, लेकिन अब शायद आवाज उठाने का साहस जुटा सकेंगी।
शैक्षणिक संस्थानों की भूमिका और ज़िम्मेदारी
यह मामला केवल एक अपराध की कहानी नहीं है, बल्कि यह सवाल भी है कि शैक्षणिक संस्थान अपनी ज़िम्मेदारी कैसे निभा रहे हैं। अन्ना यूनिवर्सिटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में अगर ऐसा मामला सामने आ सकता है, तो देश के दूसरे छोटे-बड़े कॉलेजों में क्या स्थिति होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है।
इस केस से साफ है कि संस्थानों को अपने आंतरिक शिकायत तंत्र को और मजबूत बनाना होगा। साथ ही, नियमित रूप से छात्रों और स्टाफ को POSH कानून के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए ताकि पीड़िता डर के बजाय कानूनी प्रक्रिया पर भरोसा कर सके।