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रेयर अर्थ संकट के बीच ऑटो कंपनियों की गुहार, सरकार से PLI में राहत की मांग

ऑटो कंपनियों: कल्पना कीजिए कि आप एक ऑटोमोबाइल फैक्ट्री के मैनेजर हैं। आपके पास हज़ारों गाड़ियों के ऑर्डर हैं, लेकिन कुछ ऐसे छोटे-छोटे पुर्जों की कमी हो गई है, जिनके बिना गाड़ियां बन ही नहीं सकतीं। ये पुर्जे चीन जैसे देशों से आते हैं और इनका नाम है, “रेयर अर्थ मेटल्स”। अब ज़रा सोचिए, ऐसी स्थिति में फैक्ट्री कैसे चलेगी? यही हाल फिलहाल भारत की बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनियों का हो रहा है। देश में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई PLI स्कीम में अब कंपनियां राहत की मांग कर रही हैं, और इसकी वजह है, रेयर अर्थ की आपूर्ति में आई बड़ी बाधा।

क्या है PLI योजना और ऑटो कंपनियों का इससे रिश्ता

भारत सरकार ने इलेक्ट्रिक व्हीकल और ऑटो सेक्टर को मजबूती देने के लिए PLI यानी Production Linked Incentive स्कीम की शुरुआत की थी। इस योजना के तहत कंपनियों को उत्पादन के आधार पर सरकारी मदद मिलती है, ताकि वे देश में ही ज्यादा निर्माण करें और विदेशी निर्भरता कम हो।

कई दिग्गज कंपनियों ने इस स्कीम में भाग लिया है और भारी निवेश की योजनाएं बनाई हैं। लेकिन अब जब उत्पादन तेज़ करने की बारी आई है, तो सामने आ रहा है कि कई जरूरी कच्चे माल की आपूर्ति बाधित हो गई है। खासकर, इलेक्ट्रिक गाड़ियों में इस्तेमाल होने वाली रेयर अर्थ मेटल्स जैसे लिथियम, कोबाल्ट और नियोडियम की सप्लाई पर संकट गहराता जा रहा है।

रेयर अर्थ संकट कैसे बना बड़ी चुनौती

रेयर अर्थ मेटल्स का इस्तेमाल खासकर बैटरियों, मोटर्स और सेमीकंडक्टर्स में होता है। ये सभी आधुनिक ऑटोमोबाइल टेक्नोलॉजी के मुख्य आधार हैं। भारत इन धातुओं के लिए अब भी काफी हद तक चीन और कुछ अन्य देशों पर निर्भर है।

हाल ही में चीन में हुए पर्यावरणीय और व्यापारिक बदलावों की वजह से इनकी सप्लाई में रुकावटें आई हैं। नतीजतन, भारतीय कंपनियों को कच्चे माल की कीमतें बढ़ने और समय पर डिलीवरी न होने जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। ये परिस्थितियां उन कंपनियों को सीधे प्रभावित कर रही हैं जो PLI टारगेट्स को पूरा करने में लगी थीं।

कंपनियों की सरकार से मांग: राहत दो या समय बढ़ाओ

इन चुनौतियों को देखते हुए ऑटो कंपनियों ने सरकार से अपील की है कि या तो PLI स्कीम के लक्ष्यों में कुछ ढील दी जाए या फिर उन्हें पूरा करने के लिए समयसीमा को आगे बढ़ाया जाए। उनका तर्क है कि इन हालात में टारगेट हासिल करना संभव नहीं है और अगर स्कीम से बाहर होना पड़ा तो इससे उनकी योजनाओं पर असर पड़ेगा।

सरकार के स्तर पर इस मांग को गंभीरता से लिया जा रहा है क्योंकि PLI योजना के सफल कार्यान्वयन से भारत को वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की दिशा में मदद मिलेगी। केंद्र सरकार का उद्देश्य भी है कि घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिले और रोजगार के नए अवसर बनें।

इस संकट का समाधान क्या हो सकता है?

कई विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को रेयर अर्थ जैसे महत्वपूर्ण संसाधनों के लिए दीर्घकालिक रणनीति बनानी होगी। इसमें घरेलू भंडार की खोज, रीसायक्लिंग तकनीक का विकास और वैकल्पिक स्रोतों की तलाश जरूरी है।

इसके साथ ही, PLI जैसी योजनाओं को लचीला बनाकर, कंपनियों की वर्तमान समस्याओं को समझते हुए समय और लक्ष्य में थोड़ी नरमी दिखाई जा सकती है। ऐसा करना न सिर्फ निवेशकों के भरोसे को बनाए रखेगा, बल्कि भारत के ऑटो सेक्टर को वैश्विक मंच पर टिकाए रखने में भी मदद करेगा।

आत्मनिर्भरता की राह में जरूरी लचीलापन

भारत में ऑटो उद्योग आज एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रहा है। PLI जैसी योजनाएं जहां अवसर ला रही हैं, वहीं वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में आई रुकावटें बड़ी चुनौती बनकर सामने खड़ी हैं। ऐसे में सरकार और उद्योग दोनों को मिलकर समाधान ढूंढना होगा। यदि समय पर सही फैसले लिए जाते हैं, तो यह संकट एक बड़े अवसर में भी बदल सकता है।

Disclaimer: यह लेख सार्वजनिक समाचार स्रोतों और उद्योग विशेषज्ञों की रिपोर्ट पर आधारित है। दी गई जानकारी सामान्य जानकारी के उद्देश्य से है। किसी निर्णय से पहले आधिकारिक सूचना की पुष्टि ज़रूर करें।

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