Cheque Bounce: चेक बाउंस के मामलों में अब तक लोगों के मन में एक बड़ी उलझन बनी हुई थी कि आखिर नोटिस किस रूप में भेजना मान्य होगा। क्या व्हाट्सएप या ईमेल से भेजा गया नोटिस भी अदालत में मान्य होगा या नहीं? इस सवाल को लेकर काफी समय से भ्रम बना हुआ था। लेकिन अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस पर बड़ा और स्पष्ट फैसला सुनाया है, जिससे आम जनता से लेकर वकीलों तक को काफी राहत मिलेगी। इस फैसले के बाद यह पूरी तरह साफ हो गया है कि ईमेल और व्हाट्सएप जैसे डिजिटल माध्यम से भेजे गए नोटिस भी पूरी तरह से वैध और मान्य होंगे, बशर्ते वे कानून के दायरे में हों और सही तरीके से भेजे गए हों।
चेक बाउंस का मतलब और कानूनी झंझट
जब कोई व्यक्ति किसी को चेक देता है और वह बैंक में जाकर बाउंस हो जाता है, तो इसे ‘चेक बाउंस’ कहा जाता है। इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे कि खाते में पर्याप्त बैलेंस न होना, हस्ताक्षर में गड़बड़ी या तकनीकी कारण। चेक बाउंस होते ही सबसे पहली प्रक्रिया बैंक द्वारा की जाती है, और चेक देने वाले को एक नोटिस भेजा जाता है। इसके बाद यदि राशि का भुगतान नहीं होता है, तो चेक देने वाले के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी शुरू हो सकती है। इसमें जेल, जुर्माना और कोर्ट में चक्कर लगाने तक की नौबत आ सकती है।
नोटिस को लेकर अब नहीं रहेगा कोई भ्रम
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस केस में बहुत महत्वपूर्ण और स्पष्ट फैसला सुनाते हुए कहा है कि चेक बाउंस के मामलों में ईमेल और व्हाट्सएप जैसे डिजिटल माध्यम से भेजे गए नोटिस भी मान्य होंगे। यानी अब यह समझना जरूरी है कि कोई भी डिमांड नोटिस जो इन माध्यमों से भेजा गया हो, वह भी लिखित नोटिस की तरह मान्य होगा और उस पर कानूनी कार्रवाई की जा सकेगी। इससे पहले अधिकतर लोग यह मानते थे कि केवल पोस्ट या रजिस्टर्ड डाक से भेजा गया नोटिस ही सही माना जाएगा, लेकिन कोर्ट ने इस भ्रम को दूर कर दिया है।
कोर्ट ने किन कानूनों का लिया सहारा
हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाने से पहले कई कानूनी प्रावधानों की गहराई से जांच की। इसमें खासतौर से नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 और आईटी एक्ट की धारा 13 शामिल थीं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस एक्ट में कहीं भी यह नहीं लिखा गया है कि नोटिस सिर्फ हाथ से लिखा हुआ या डाक से भेजा गया ही होना चाहिए। अगर कोई नोटिस इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भेजा गया है और वह लिखित रूप में है, तो उसे भी वैध माना जाएगा। इसका मतलब है कि अब डिमांड नोटिस ईमेल या व्हाट्सएप से भेजना पूरी तरह से कानूनी रूप से स्वीकार्य है।
नोटिस भेजने के साथ रखें साक्ष्य भी
कोर्ट ने यह भी कहा है कि यदि नोटिस ईमेल या व्हाट्सएप से भेजा जा रहा है, तो उसकी पूरी जानकारी और सबूत रखना जरूरी है। यह सबूत कोर्ट में पेश किया जा सकता है कि नोटिस किस तारीख को भेजा गया, रिसीवर ने उसे कब देखा और उसकी डिलीवरी कंफर्म कैसे हुई। इस संदर्भ में इंडियन एविडेंस एक्ट की धारा 65बी का भी हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया है कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड कोर्ट में वैध साक्ष्य माना जा सकता है, बशर्ते उसे उचित प्रक्रिया के तहत पेश किया जाए।
अब न्यायाधीश भी रखें इन बातों का ध्यान
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के सभी न्यायाधीशों को विशेष निर्देश देते हुए कहा है कि जब भी चेक बाउंस के मामलों की सुनवाई करें, तो इस तरह के इलेक्ट्रॉनिक नोटिस और सबूतों को गंभीरता से देखें और उनकी वैधता को ध्यान में रखें। कोर्ट ने यह भी कहा है कि जब शिकायत रजिस्टर्ड पोस्ट के माध्यम से भेजी जाती है तो उसकी डिटेल रिकॉर्ड में रखनी चाहिए ताकि बाद में कोई परेशानी न हो।
डिमांड नोटिस की स्वरूप की बाध्यता नहीं
हाईकोर्ट ने यह भी साफ किया कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 में कहीं भी नोटिस की भाषा, टाइपिंग, फार्मेट या भेजने के माध्यम की बाध्यता नहीं दी गई है। इसका सीधा अर्थ यह है कि नोटिस चाहे कैसे भी टाइप किया गया हो, और चाहे वह कैसे भी भेजा गया हो — अगर वह स्पष्ट, सही और तय समय में भेजा गया है, तो उसे कानूनी तौर पर मान्यता दी जाएगी।
फैसले से आम जनता को क्या लाभ
इस फैसले के आने से आम लोगों को सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि अब वे डाकघर के भरोसे न रहकर सीधे डिजिटल माध्यम से नोटिस भेज सकते हैं। इससे न केवल समय की बचत होगी, बल्कि प्रक्रिया भी ज्यादा तेज और पारदर्शी हो जाएगी। इसके अलावा, कई बार डाक से भेजा गया नोटिस रिसीवर तक नहीं पहुंच पाता था या उसमें देरी हो जाती थी। अब ईमेल या व्हाट्सएप के जरिए भेजा गया नोटिस न सिर्फ तेज होगा, बल्कि उसका इलेक्ट्रॉनिक सबूत भी उपलब्ध रहेगा।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले से चेक बाउंस के मामलों में नोटिस भेजने को लेकर चल रही तमाम आशंकाओं पर विराम लग गया है। अब ईमेल और व्हाट्सएप से भेजे गए नोटिस को भी उसी तरह से मान्यता मिलेगी जैसे किसी लिखित या पोस्ट से भेजे गए नोटिस को मिलती है। इस फैसले से न केवल कानून की प्रक्रिया में तेजी आएगी, बल्कि डिजिटल माध्यमों के इस्तेमाल को भी बढ़ावा मिलेगा। अदालत ने स्पष्ट किया है कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड और आईटी एक्ट के अनुसार भेजे गए नोटिस को नकारा नहीं जा सकता। इससे भविष्य में चेक बाउंस के मामलों में न्यायिक प्रक्रिया और ज्यादा स्पष्ट, सरल और तेज हो सकेगी।