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Delhi Crime: दिल्ली में 3 लड़कियों की हत्या: पजेसिव बॉयफ्रेंड्स और सोशल मीडिया का खतरनाक मेल

Delhi Crime: दिल्ली जैसे शहर में जब एक के बाद एक तीन नाबालिग लड़कियों की हत्या होती है, और सबमें एक जैसी बात सामने आती है – कि वो सभी अपने बॉयफ्रेंड्स की पजेसिव मानसिकता की शिकार थीं – तो यह सिर्फ एक क्राइम न्यूज नहीं रह जाती, बल्कि समाज के उस हिस्से का आईना बन जाती है जिसे हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं। इन तीनों घटनाओं में न सिर्फ प्यार का गलत मतलब निकाला गया बल्कि सोशल मीडिया और किशोर दिमाग की अनकही परतें भी सामने आईं, जो कहीं न कहीं हिंसा की जमीन तैयार कर रही थीं।

 

दिल्ली की इन घटनाओं ने क्यों हिला दिया समाज को

तीनों केसों में एक चीज कॉमन थी – लड़कियों के अपने बॉयफ्रेंड्स के साथ सोशल मीडिया पर बातचीत, रिश्ते में तनाव, और पजेसिव रवैया। पहली लड़की की हत्या इसलिए कर दी गई क्योंकि उसने ब्रेकअप किया था, दूसरी पर इसलिए हमला हुआ क्योंकि वो किसी और से बात कर रही थी, और तीसरी लड़की सिर्फ इसलिए मारी गई क्योंकि उसने मिलने से मना कर दिया।

इन सब मामलों में आरोपी लड़के 18 से 21 साल की उम्र के थे और सोशल मीडिया के ज़रिए लड़कियों से संपर्क में आए थे। रिपोर्ट्स के अनुसार, उनमें से कुछ ने पहले ही चेतावनी दी थी – इंस्टाग्राम स्टोरी में धमकी, कॉल्स पर डराना और लोकेशन ट्रैक करना। ये सिर्फ ‘युवा प्यार’ की कहानी नहीं है, ये साइकोलॉजिकल पजेशन और डिजिटल कंट्रोल का केस बनता जा रहा है।

 

सोशल मीडिया और किशोर दिमाग का खतरनाक मेल

आज के समय में इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और स्नैपचैट सिर्फ बातचीत के प्लेटफॉर्म नहीं रह गए हैं, बल्कि ये रिलेशनशिप को कंट्रोल करने के हथियार बन चुके हैं। किशोर उम्र के लड़के-लड़कियां जब ऑनलाइन रिलेशनशिप में आते हैं तो अक्सर वे निजी सीमाओं की समझ नहीं रखते।

जिस पल कोई “seen” के बाद रिप्लाई नहीं करता, शक शुरू हो जाता है। “last seen”, “typing”, “location tag” ये सभी चीजें रिश्तों में शक, जलन और गुस्से का जहर घोल रही हैं। और जब सामने वाला ना बोले या विरोध करे तो यही गुस्सा हिंसा में बदलने लगता है। दिल्ली के केस में भी यही देखा गया, सोशल मीडिया पर गुस्से के इशारे, और फिर असली ज़िंदगी में जानलेवा हमला।

पजेसिवनेस का जहर और लड़कियों की असुरक्षा

पजेसिवनेस को अक्सर लोग प्यार समझ लेते हैं, लेकिन सच्चाई ये है कि यह धीरे-धीरे कंट्रोल, डर और अंत में हिंसा में बदल जाता है। जब एक लड़का लड़की से कहता है “तू सिर्फ मेरी है”, “अगर किसी और से बात की तो देख लेना”, तो ये बातें शुरुआत में ‘स्पेशल’ लग सकती हैं, लेकिन यही सोच अंत में खून बनकर सामने आती है।

 

दिल्ली के इन केसों ने ये भी साफ कर दिया कि लड़कियों के पास मना करने, न कहने या दूरी बनाने का कोई स्पेस नहीं छोड़ा गया। उन्होंने जब भी न बोला, उन्हें जान से मारने की धमकी मिली और फिर वो धमकी सच्चाई बन गई।

परिवार और समाज की चुप्पी क्यों घातक बनती है

किशोर उम्र में रिश्ते बनते हैं, टूटते हैं ये स्वाभाविक है। लेकिन जब घरवाले, स्कूल, और समाज इस उम्र के बच्चों से खुलकर बात नहीं करते, तो वे अपने इमोशन्स का समाधान सोशल मीडिया या हिंसा में खोजते हैं।

इन तीनों घटनाओं में अगर समय रहते परिवार और दोस्तों को संकेत मिल जाते, अगर किसी ने लड़कों के गुस्से को गंभीरता से लिया होता, तो शायद तीन जिंदगियां बच सकती थीं। लेकिन हमारी चुप्पी, अनदेखी और रिश्तों को ‘निजी मामला’ मानकर छोड़ देना ही कई बार मौत की वजह बनता है।

 

समाज को अब आंखें खोलनी होंगी

अब वक्त आ गया है कि हम किशोर रिश्तों को सिर्फ ‘टीन एज फैंटेसी’ मानना बंद करें। सोशल मीडिया की आड़ में जो भावनात्मक अत्याचार और डिजिटल कंट्रोल बढ़ रहा है, उसे गंभीरता से समझने की जरूरत है।

स्कूलों में डिजिटल सेफ्टी की क्लास होनी चाहिए, पैरेंट्स को बच्चों के डिजिटल बिहेवियर पर नजर रखनी चाहिए और लड़कियों को यह समझाना होगा कि ‘ना’ कहना उनका हक है और लड़कों को यह सिखाना होगा कि ‘ना’ का मतलब ‘ना’ होता है।

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