Fixed Deposit

Fixed Deposit: एफडी में पैसे लगाने वाले हो जाएं सावधान, निवेश करने से पहले जान लें ये जरूरी बात

Fixed Deposit: आज के समय में फिक्स्ड डिपॉजिट यानी एफडी में पैसे लगाने से पहले ब्याज दरों पर नजर रखना जरूरी हो गया है। कई बैंक ग्राहकों को ज्यादा ब्याज देने का दावा कर रहे हैं, लेकिन सभी शर्तों को पढ़े बिना निवेश करना आपके लिए नुकसानदायक हो सकता है। ब्याज दरें समय-समय पर बदलती रहती हैं, ऐसे में लंबे समय के लिए एफडी करने से पहले बैंक की वर्तमान और संभावित दरों की जानकारी लेना जरूरी है।

इसी के साथ छोटे बैंकों में ज्यादा ब्याज मिलने के बावजूद सुरक्षा पर भी ध्यान देना चाहिए। अगर आप सिर्फ ज्यादा ब्याज के लालच में निवेश करते हैं, तो बाद में बैंक में पैसे फंसे रहने की स्थिति बन सकती है। इसलिए ब्याज दर और सुरक्षा के संतुलन को ध्यान में रखकर ही एफडी में पैसे लगाएं।

टैक्स पर मिलने वाली छूट की सीमाएं

एफडी पर मिलने वाला ब्याज टैक्सेबल होता है, और इस पर टैक्स छूट की सीमा तय है। अगर आपके एफडी से सालाना 40,000 रुपये से ज्यादा ब्याज मिलता है तो टीडीएस काटा जाएगा। वरिष्ठ नागरिकों के लिए यह सीमा 50,000 रुपये तक होती है। कई लोग बिना टैक्स प्लानिंग के एफडी कर देते हैं, जिससे बाद में टैक्स की ज्यादा देनदारी बन जाती है।

इसलिए एफडी में निवेश करने से पहले अपने टैक्स ब्रैकेट को समझना और इसके अनुसार निवेश करना जरूरी है। अगर आप टैक्स बचाने के लिए एफडी कर रहे हैं, तो 5 साल की टैक्स सेविंग एफडी का विकल्प चुन सकते हैं, जिससे 80C के तहत छूट मिल सके।

बैंक सुरक्षा और डीआईसीजीसी गारंटी

एफडी में निवेश करते समय बैंक की सुरक्षा और डीआईसीजीसी की गारंटी को भी समझना जरूरी है। वर्तमान में किसी भी बैंक में जमा पैसे पर 5 लाख रुपये तक की गारंटी डीआईसीजीसी देती है। इसका मतलब यह है कि अगर बैंक किसी कारणवश बंद हो जाता है, तो आपकी 5 लाख तक की जमा राशि सुरक्षित रहती है।

अगर आपके पास एक से ज्यादा बैंक अकाउंट हैं, तो यह लिमिट प्रत्येक बैंक पर लागू होती है। इसलिए ज्यादा पैसे रखने पर अलग-अलग बैंकों में एफडी करना सुरक्षा की दृष्टि से अच्छा विकल्प हो सकता है। निवेश करते समय हमेशा बैंक की साख और उसके वित्तीय स्वास्थ्य की भी जांच कर लें।

एफडी पर मिलने वाला लिक्विडिटी विकल्प

एफडी में निवेश करने से पहले उसके लिक्विडिटी यानी पैसे निकालने की सुविधा को भी समझना जरूरी है। इमरजेंसी में अगर पैसे निकालने की जरूरत पड़ती है, तो समय से पहले एफडी तोड़ने पर जुर्माना लगता है और ब्याज भी कम मिलता है। ऐसे में कुछ राशि को छोटे कार्यकाल की एफडी में लगाना फायदेमंद हो सकता है।

इसके अलावा कुछ बैंकों में स्वीप इन सुविधा मिलती है, जिससे एफडी को सेविंग अकाउंट से लिंक कर पैसे की जरूरत पड़ने पर एफडी अपने आप टूटकर पैसे अकाउंट में आ जाते हैं। इस सुविधा को समझकर ही एफडी में निवेश करना आपको लिक्विडिटी की समस्या से बचा सकता है।

ब्याज दर बढ़ने की संभावना और रणनीति

रेपो रेट में बदलाव से बैंकों की एफडी पर ब्याज दर भी बदलती है। अगर ब्याज दर बढ़ने की संभावना है, तो लंबी अवधि की जगह छोटे कार्यकाल की एफडी करना फायदेमंद हो सकता है। इससे ब्याज दर बढ़ने पर रिन्यूअल के समय ज्यादा ब्याज मिल सकेगा।

इसके अलावा आप एफडी में स्टेगर्ड इन्वेस्टमेंट की रणनीति भी अपना सकते हैं। इसमें अलग-अलग अवधि की एफडी कर ब्याज दर बढ़ने पर उसका फायदा लिया जा सकता है। यह तरीका रिटर्न को बेहतर करने के साथ जोखिम को भी कम करता है।

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