Gratuity Rule: सरकारी और निजी नौकरी करने वाले कर्मचारियों के लिए ग्रेच्युटी एक ऐसा हक है जो रिटायरमेंट के वक्त उनके जीवन में आर्थिक संबल बनता है। लेकिन बहुत सारे कर्मचारी इस बात से अब भी अनजान हैं कि ग्रेच्युटी मिलती कैसे है, कितने साल की नौकरी पर मिलती है और इसका हिसाब कैसे लगाया जाता है। यही वजह है कि जब कर्मचारी सेवा से हटते हैं या नौकरी छोड़ते हैं तो उन्हें अंदाजा नहीं होता कि उन्हें कितना हक मिलना चाहिए। आज हम आपको ग्रेच्युटी के नियमों की पूरी जानकारी दे रहे हैं, जो हर नौकरीपेशा व्यक्ति को पता होनी चाहिए।
ग्रेच्युटी क्या है और क्यों दी जाती है
ग्रेच्युटी एक प्रकार की सेवा समाप्ति लाभ है जो कर्मचारी को तब दी जाती है जब वह संस्था में लंबी सेवा के बाद सेवानिवृत्त होता है, इस्तीफा देता है, या फिर उसकी मृत्यु या स्थाई विकलांगता हो जाती है। इसका मकसद होता है कर्मचारी की दी गई निष्ठावान सेवा के बदले कुछ आर्थिक सुरक्षा देना।
यह राशि नियोक्ता द्वारा दी जाती है, और यह कर्मचारी के अंतिम मूल वेतन और सेवा के वर्षों के आधार पर तय होती है। यह न केवल कर्मचारियों को सम्मान देती है, बल्कि उनके बाद के जीवन को थोड़ा आसान भी बनाती है।
ग्रेच्युटी पाने के लिए कितने साल की नौकरी जरूरी है
भारत में ग्रेच्युटी कानून, यानी Payment of Gratuity Act, 1972 के तहत कोई भी कर्मचारी तभी ग्रेच्युटी का हकदार बनता है जब उसने किसी एक ही संस्थान में लगातार कम से कम 5 साल की सेवा पूरी की हो।
यह सेवा कंटीन्यू होनी चाहिए यानी बीच में कोई बड़ा गैप नहीं होना चाहिए। हालांकि, यदि किसी कर्मचारी की मृत्यु हो जाती है या वह स्थायी रूप से अक्षम हो जाता है, तो 5 साल की सेवा पूरी करना जरूरी नहीं है। ऐसे मामलों में ग्रेच्युटी का भुगतान बिना शर्त किया जाता है।
ग्रेच्युटी की गणना कैसे होती है
ग्रेच्युटी की गणना एक तय फॉर्मूले से की जाती है:
(अंतिम मूल वेतन × सेवा के साल × 15) ÷ 26
यहाँ 15 दिन का वेतन हर साल के लिए जोड़ा जाता है, और महीने में 26 दिन मानकर हिसाब होता है। उदाहरण के लिए अगर किसी कर्मचारी का अंतिम मूल वेतन ₹20,000 है और उसने 10 साल काम किया है तो उसे मिलेगा:
(20000 × 10 × 15) ÷ 26 = ₹1,15,385
यह राशि टैक्स फ्री होती है, लेकिन इसके लिए कुछ शर्तें होती हैं। अगर कोई कर्मचारी सरकारी संस्थान में काम करता है, तो पूरी ग्रेच्युटी टैक्स फ्री होती है। वहीं निजी क्षेत्र में अधिकतम ₹20 लाख तक की ग्रेच्युटी टैक्स फ्री है।
ग्रेच्युटी मिलने की स्थिति और प्रक्रिया
ग्रेच्युटी पाने के लिए कर्मचारी को सेवा समाप्ति के 30 दिनों के भीतर नियोक्ता को एक आवेदन देना होता है। हालांकि, यदि कर्मचारी आवेदन नहीं भी करता है, तो भी नियोक्ता को 30 दिन के भीतर भुगतान करना होता है।
अगर नियोक्ता समय पर ग्रेच्युटी का भुगतान नहीं करता तो उसे देरी के लिए ब्याज देना पड़ सकता है। इसके अलावा, अगर कोई विवाद हो जाता है तो कर्मचारी लेबर कमिश्नर या ट्रिब्यूनल में शिकायत कर सकता है। निजी कंपनियों में कई बार ग्रेच्युटी को रोकने या काटने की कोशिश की जाती है, ऐसे में कर्मचारी को अपने अधिकार की पूरी जानकारी होनी चाहिए ताकि वह कानूनी कार्रवाई कर सके।
ग्रेच्युटी से जुड़े कुछ खास तथ्य
ग्रेच्युटी केवल उन्हीं कंपनियों में लागू होती है जहां 10 या उससे अधिक कर्मचारी काम करते हैं। यदि कोई कंपनी ग्रेच्युटी एक्ट के दायरे में आती है तो उसे हर कर्मचारी को यह लाभ देना अनिवार्य है।
इसके अलावा, कंपनी चाहे छोटी हो या बड़ी, अगर वह ग्रेच्युटी एक्ट के अंतर्गत आती है तो उसे रजिस्ट्रेशन कराना होता है और कर्मचारी की सेवा के दौरान उसका रिकॉर्ड बनाए रखना जरूरी होता है। यह भी जरूरी है कि कर्मचारी को सेवा के हर साल के लिए सही ग्रेच्युटी जोड़ी जाए।
अपने अधिकार को जानें और सुरक्षित भविष्य बनाएं
ग्रेच्युटी केवल एक रकम नहीं, बल्कि कर्मचारी की मेहनत और निष्ठा का सम्मान है। यह एक ऐसा अधिकार है जो हर कर्मचारी को समय पर और पूरी तरह मिलना चाहिए।
बहुत बार जानकारी के अभाव में कर्मचारी अपना हक नहीं ले पाते और चुपचाप नौकरी छोड़ देते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि आप अपने ग्रेच्युटी के नियमों को समझें, सेवा की अवधि के हिसाब से उसका हिसाब लगाएं और अगर जरूरत हो तो अपने हक के लिए आवाज उठाएं। आज जब नौकरी की स्थिरता और भविष्य की चिंता बढ़ रही है, ऐसे में ग्रेच्युटी जैसी स्कीम कर्मचारियों को आत्मविश्वास और आर्थिक सुरक्षा देती है।