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Home Loan: बैंक से लोन लेने से पहले जानें सही फॉर्मूला, EMI में नहीं होगी दिक्कत

Home Loan : अपना घर होना हर किसी का सपना होता है और जब बैंक से होम लोन मिल जाता है तो लगता है सपना पूरा होने जा रहा है। लेकिन असली कहानी तो तब शुरू होती है जब हर महीने बैंक के खाते से EMI कटने लगती है। शुरुआत में तो सबकुछ ठीक लगता है, लेकिन जैसे-जैसे खर्चे बढ़ते हैं और इनकम पर दबाव आता है, EMI भारी लगने लगती है। यही कारण है कि होम लोन लेने से पहले सिर्फ ब्याज दर और लोन अमाउंट ही नहीं, बल्कि एक सही प्लान और गणना भी जरूरी होती है। एक छोटा-सा फॉर्मूला आपके लिए आने वाले वर्षों को आसान बना सकता है। इसी पर आज की यह पूरी जानकारी आधारित है – ताकि आप लोन लेने से पहले कोई गलती न करें और EMI आसानी से भर पाएं।

EMI की गणना का सही तरीका क्या है

 

होम लोन में EMI तीन चीजों पर निर्भर करती है – लोन की राशि, ब्याज दर और अवधि यानी कितने साल में आप लोन चुकाएंगे। बहुत से लोग यही सोचते हैं कि ज्यादा समय तक लोन रखेंगे तो EMI कम हो जाएगी, लेकिन यह सिर्फ एक नजर का फायदा होता है। असल में आप ब्याज में कई लाख रुपये ज्यादा भरते हैं। इसलिए सबसे पहले आपको यह समझना जरूरी है कि EMI का सही फॉर्मूला क्या है और उसे कैसे अपनाया जाए।

एक आसान तरीका है – EMI आपकी मासिक आय का 40% से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। अगर आपकी सैलरी ₹50,000 है तो EMI ₹20,000 से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। यह फॉर्मूला बैंक भी इस्तेमाल करते हैं, लेकिन आपको खुद अपनी अन्य जरूरतों को देखकर यह संतुलन बैठाना होगा। कई बार लोग बजट से बाहर लोन ले लेते हैं और बाद में उसकी किस्त भरने में दिक्कत आती है।

लोन लेने से पहले खर्च और बचत का संतुलन तय करें

होम लोन लेने से पहले जरूरी है कि आप अपनी आमदनी और खर्चों का ठीक से आकलन करें। बहुत से लोग सिर्फ EMI की गणना करते हैं लेकिन यह भूल जाते हैं कि लोन के साथ घर खरीदने पर अन्य खर्चे भी जुड़ते हैं – जैसे रजिस्ट्रेशन, स्टांप ड्यूटी, इंटीरियर, शिफ्टिंग आदि।

 

आपको यह समझना होगा कि EMI तो हर महीने जाएगी ही, लेकिन बिजली बिल, बच्चों की फीस, राशन, मेडिकल, इंश्योरेंस जैसे जरूरी खर्चे भी साथ चलेंगे। अगर आप पहले से यह नहीं सोचते कि महीने का कितना हिस्सा EMI में जाएगा और कितना बाकी खर्चों में, तो जल्द ही परेशानी शुरू हो सकती है। इसलिए बेहतर है कि EMI शुरू होने से पहले ही एक बजट बनाएं और उसे 2-3 महीने ट्रायल के रूप में अपनाएं। इससे आपको अंदाज़ा हो जाएगा कि होम लोन आपकी आर्थिक सेहत पर कितना असर डालने वाला है।

ब्याज दर और लोन टेन्योर का सही चयन जरूरी है

होम लोन की EMI कम या ज्यादा होने में सबसे अहम भूमिका होती है ब्याज दर और लोन की अवधि की। कई बार लोग ज्यादा लंबी अवधि का लोन लेते हैं ताकि EMI कम लगे, लेकिन असल में वो ब्याज में ज्यादा भुगतान करते हैं। उदाहरण के तौर पर ₹30 लाख के लोन पर अगर 20 साल में चुकता कर रहे हैं तो ब्याज में ₹30-35 लाख तक देना पड़ सकता है, जबकि वही लोन अगर 10-12 साल में चुकाएं तो ब्याज काफी कम हो जाता है।

 

यहां पर वही फॉर्मूला काम आता है – “EMI उतनी ही रखो जितनी आसानी से भर सको, लेकिन समय उतना ही रखो जितना जरूरी हो।” साथ ही ब्याज दर अगर फ्लोटिंग है तो बाजार में बढ़ने या घटने का असर EMI पर भी पड़ेगा। इसलिए बैंक चुनते समय सिर्फ ब्याज दर नहीं, बल्कि प्रोसेसिंग फीस, प्रीपेमेंट चार्ज और फ्लेक्सिबिलिटी भी जरूर जांचें।

लोन लेने के बाद भी हर साल करें मूल्यांकन

होम लोन एक बार ले लेने के बाद कई लोग भूल जाते हैं कि बाजार की स्थितियां बदलती रहती हैं। कई बार ब्याज दर घट जाती है और लोग उसी दर पर सालों तक लोन भरते रहते हैं।

अगर आप अपने लोन की स्थिति हर साल नहीं देखते तो यह आपकी जेब पर भारी पड़ सकता है। साल में एक बार अपना लोन स्टेटमेंट निकालें, EMI के आंकड़े देखें और यह जांचें कि क्या आपको किसी और बैंक से कम दर पर लोन ट्रांसफर कराना चाहिए।

आजकल लोन ट्रांसफर प्रक्रिया काफी आसान हो गई है और अगर इससे ₹500–₹1000 भी महीने की EMI कम हो रही है तो यह आपके बजट में बड़ा फर्क डाल सकती है। साथ ही अगर आपकी इनकम बढ़ी है तो प्रीपेमेंट भी एक अच्छा विकल्प है, जिससे ब्याज में लाखों की बचत की जा सकती है।

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