Income Tax Rule Update : आयकर विभाग की जांच से जुड़े डर ने आम टैक्सपेयर्स को हमेशा असहज रखा है। कई बार सालों पुराने मामलों की फाइल अचानक खुल जाती है और लोगों को पता भी नहीं होता कि आखिर किस साल की गलती के लिए उन्हें नोटिस भेजा गया है। लेकिन अब केंद्र सरकार ने इस दिशा में एक ऐसा कदम उठाया है जिससे लाखों टैक्सदाताओं को बड़ी राहत मिल सकती है। नए नियम के अनुसार अब आयकर विभाग किसी भी टैक्सपेयर्स के पुराने मामलों की जांच एक तय सीमा से ज्यादा नहीं कर सकेगा। इससे जहां टैक्सपेयर्स को मानसिक और आर्थिक दबाव से राहत मिलेगी, वहीं आयकर विभाग भी समय और संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल कर सकेगा।
नया नियम क्या कहता है और कब से लागू हुआ
वित्त मंत्रालय द्वारा जारी की गई जानकारी के मुताबिक आयकर विभाग अब केवल तीन साल तक के पुराने मामलों की ही जांच कर सकेगा। पहले यह सीमा छह साल तक की हुआ करती थी और कुछ विशेष मामलों में यह दस साल तक भी बढ़ जाती थी। लेकिन अब नए प्रावधान के तहत यदि किसी टैक्सपेयर्स की फाइल को री-ओपन करना हो, तो यह केवल पिछले तीन सालों तक के मामले में ही संभव होगा।
हालांकि एक विशेष स्थिति में इस सीमा को दस साल तक बढ़ाया जा सकता है, लेकिन यह तब ही होगा जब आयकर विभाग के पास ठोस सबूत हों कि टैक्सपेयर्स ने ₹50 लाख या उससे अधिक की अघोषित आय छुपाई है। यह नियम आयकर अधिनियम की धारा 148A के तहत संशोधित किया गया है और इसे 1 अप्रैल 2021 से प्रभावी माना जा रहा है। यानी अब इसके बाद का कोई भी मामला इस सीमा के बाहर जांच के दायरे में नहीं आएगा जब तक कि स्पष्ट आधार न हो।
टैक्सपेयर्स को कैसे मिलेगा फायदा
इस नियम के लागू होने से सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि अब टैक्सपेयर्स को लंबे समय तक पुराने दस्तावेज संभालकर रखने की जरूरत नहीं पड़ेगी। पहले विभाग कई साल पुराने रिकॉर्ड मांग लेता था, जिसकी जानकारी या तो टैक्सपेयर्स के पास नहीं होती थी या वह उस समय की फाइलिंग से अनजान होता था। इससे न केवल परेशानियां बढ़ती थीं बल्कि मानसिक तनाव और कानूनी खर्चा भी बढ़ता था।
अब तीन साल की सीमा तय होने के बाद टैक्सपेयर्स को यह स्पष्ट रहेगा कि उन्हें किन-किन वर्षों का रिकॉर्ड संभालकर रखना है। यह कदम सरकार की उस सोच को भी दर्शाता है जिसमें वह टैक्स प्रणाली को ज्यादा पारदर्शी और सरल बनाना चाहती है। इसके साथ ही, इससे विभागीय भ्रष्टाचार पर भी लगाम लगेगी क्योंकि अब बिना कारण सालों पुरानी फाइलें खोले जाने की संभावना कम हो गई है।
आयकर विभाग के लिए भी होगा यह बदलाव फायदेमंद
इस नियम का फायदा सिर्फ टैक्सपेयर्स को ही नहीं बल्कि खुद आयकर विभाग को भी मिलेगा। पहले जब जांच की समय सीमा छह या दस साल तक होती थी तो जांच अधिकारी कई बार पुराने रिकॉर्डों में फंस जाते थे और नए मामलों पर ध्यान नहीं दे पाते थे। इससे विभाग की कार्यक्षमता पर असर पड़ता था और लंबित मामलों की संख्या बढ़ती जाती थी।
अब इस सीमा को तीन साल तक सीमित करने से आयकर अधिकारी अपने समय और संसाधनों का बेहतर उपयोग कर सकेंगे। नए और महत्वपूर्ण मामलों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकेगा, जिससे टैक्स कलेक्शन प्रक्रिया भी अधिक प्रभावी हो सकती है। यह एक ऐसा सुधार है जो टैक्स प्रशासन की कार्यशैली में भी सकारात्मक बदलाव ला सकता है।
विशेष मामलों में जांच की शर्तें भी हुईं सख्त
जैसा कि बताया गया, यदि किसी मामले में ₹50 लाख या उससे अधिक की अघोषित आय छुपाने का शक है, तो आयकर विभाग उस केस में दस साल तक पुरानी फाइल खोल सकता है। लेकिन इसके लिए भी कुछ कड़े प्रावधान रखे गए हैं।
पहले तो विभाग को यह साबित करना होगा कि उसे ऐसे ठोस सबूत मिले हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि संबंधित टैक्सपेयर्स ने जानबूझकर इतनी बड़ी राशि छुपाई है। इसके बाद उसे धारा 148A के तहत कारण बताओ नोटिस (Show Cause Notice) भेजना होगा और टैक्सपेयर्स को अपना पक्ष रखने का पूरा मौका दिया जाएगा। यह सारी प्रक्रिया रिकॉर्ड में दर्ज होगी और बिना उच्च अधिकारियों की अनुमति के ऐसा कोई मामला दोबारा नहीं खोला जा सकेगा। इससे यह सुनिश्चित होगा कि जांच का दुरुपयोग न हो और सिर्फ वही मामले दोबारा खोले जाएं जिनमें वास्तविकता में गड़बड़ी हो।