Avik Chattopadhyay

Avik Chattopadhyay: भारत को चाहिए अपनी खुद की ऑटोमोबाइल डिजाइन पहचान, अविक चट्टोपाध्याय की सोच

Avik Chattopadhyay: अक्सर जब हम भारतीय सड़कों पर गाड़ियाँ चलते देखते हैं, तो लगता है मानो हम विदेशों की नकल पर चल रहे हैं। गाड़ियों का लुक, उनकी बनावट और डिज़ाइन में कुछ भी ऐसा नहीं लगता जो हमारे देश की मिट्टी, हमारी संस्कृति या हमारे सोच से जुड़ा हो। लेकिन अब वक़्त बदलने की बात हो रही है। और इस सोच को मज़बूती दी है इंडस्ट्री के अनुभवी रणनीतिकार अविक चट्टोपाध्याय ने।

उनका कहना है कि भारत को अपनी खुद की ऑटोमोबाइल डिज़ाइन पहचान बनानी चाहिए, ऐसी जो बाकी दुनिया से अलग हो, और जिसमें भारत की आत्मा झलके। ये बात सिर्फ गाड़ियों के लुक तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे भारत की सोच, परिवेश और लोगों की जरूरतों का गहरा विश्लेषण है।

भारत की कारें, लेकिन आत्मा विदेशी?

जब भी कोई भारतीय ग्राहक कार खरीदने की सोचता है, तो वो कई बार डिज़ाइन देखकर ही फैसला करता है। और यही डिज़ाइन अक्सर यूरोपीय या जापानी स्टाइल से प्रभावित होते हैं। चाहे SUV हो या हैचबैक लगभग हर कार में वही ग्लोबल टेम्पलेट देखने को मिलता है, जिसमें भारतीयता की झलक बहुत कम दिखाई देती है।

अविक चट्टोपाध्याय मानते हैं कि यह एक बड़ी समस्या है। भारत जितना बड़ा और विविधता से भरा देश है, वहाँ की गाड़ियों में वह विविधता दिखनी चाहिए। हमारे गाँव, हमारे कस्बे, हमारी गर्मी, धूल, त्योहार, संगीत सबकुछ एक विशिष्ट पहचान के रूप में उभरना चाहिए ऑटोमोबाइल डिज़ाइन में।

डिज़ाइन सिर्फ दिखावे के लिए नहीं, बल्कि सोच का हिस्सा

बहुत से लोगों को लगता है कि डिजाइन सिर्फ लुक्स के लिए होता है, पर असल में यह किसी सोच और जीवनशैली का प्रतिबिंब होता है। भारत में आज भी लोग गाड़ियों को सिर्फ स्टेटस सिंबल नहीं, बल्कि अपने परिवार का हिस्सा मानते हैं। चाहे गांव की सड़कों पर चलने वाली ट्रैक्टर जैसी मजबूत गाड़ी हो, या फिर शहर में चलने वाली किफायती कार हर एक डिज़ाइन के पीछे एक जरूरत छिपी होती है।

अविक इसी सोच को सामने लाते हैं कि अब भारत को ऐसे डिज़ाइनर चाहिए जो भारतीयता को समझते हों। जो नकल नहीं, नई सोच और संस्कृति के हिसाब से डिज़ाइन करें। हमें अपने डिज़ाइनरों को फ्री हैंड देना होगा, जिससे वे भारतीय ग्राहक के मन को समझते हुए कुछ नया और असली बना सकें।

क्यों जरूरी है अपनी पहचान बनाना?

आज चीन, कोरिया और जापान की कारें दुनिया भर में अपनी अलग पहचान बना चुकी हैं। उनकी कारें देखते ही समझ आ जाता है कि वो किस देश से हैं। पर भारत की कारों को अब तक सिर्फ ‘सस्ता और टिकाऊ’ ब्रांड ही माना गया है, ‘खूबसूरत और मौलिक’ नहीं।

अगर हम डिज़ाइन में अपनी पहचान बना पाएं, तो भारतीय कारें सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के दूसरे बाज़ारों में भी एक ब्रांड वैल्यू के साथ पहचान बना सकती हैं। इससे न सिर्फ भारत की ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री को मज़बूती मिलेगी, बल्कि हमारी सांस्कृतिक ताकत भी दुनिया के सामने आएगी।

नई पीढ़ी के लिए एक मौका

यह बात सिर्फ इंडस्ट्री तक सीमित नहीं है। जो युवा आज डिज़ाइनिंग, इंजीनियरिंग या प्रोडक्ट डेवलपमेंट में अपना करियर देख रहे हैं, उनके लिए यह एक सुनहरा मौका है। अगर भारत अपना खुद का ऑटोमोबाइल डिज़ाइन स्कूल, रिसर्च प्लेटफ़ॉर्म और डिज़ाइन लैब्स खड़ा करता है, तो यकीन मानिए हमारे देश के युवा दुनिया की बेहतरीन कारें डिजाइन कर सकते हैं – लेकिन इस बार वो भारत की पहचान लिए हुए होंगी।

अविक कहते हैं कि हमें सिर्फ इंडस्ट्री को नहीं, बल्कि पॉलिसी लेवल पर भी इस सोच को शामिल करना होगा। सरकार, कंपनियाँ और शिक्षण संस्थान सब मिलकर अगर यह ठान लें कि ‘भारत की कार, भारत के डिज़ाइन से’ बनेगी, तो ये क्रांति बस कुछ कदम दूर है।

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