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कमल हासन को हाईकोर्ट की फटकार: भावनाएं आहत नहीं कर सकते, कानून सबके लिए एक : kamal haasan

kamal haasan : फिल्मी दुनिया के दिग्गज कलाकार और राजनेता कमल हासन इस बार किसी फिल्म या राजनीतिक बयान को लेकर नहीं, बल्कि एक विवादित टिप्पणी के चलते सुर्खियों में हैं। कन्नड़ भाषा और संस्कृति को लेकर दिए गए उनके बयान पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने सख्त प्रतिक्रिया दी है। कोर्ट ने साफ कहा है कि “आप कितने भी बड़े कलाकार क्यों न हों, अगर किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचती है तो उसकी कानूनी समीक्षा होगी।”

इस फैसले ने न सिर्फ कानूनी नजरिए से मिसाल कायम की है, बल्कि यह भी दिखा दिया है कि संवेदनशील मुद्दों पर कोई भी छूट से बाहर नहीं है, चाहे वो कितना भी नामी चेहरा क्यों न हो।

क्या था पूरा मामला

 

दरअसल विवाद तब शुरू हुआ जब कमल हासन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कन्नड़ भाषा और उसकी प्रासंगिकता को लेकर टिप्पणी की। उन्होंने कहा था कि कुछ भाषाओं को राजनीतिक उद्देश्यों से जबरन बढ़ावा दिया जा रहा है, और इसमें कन्नड़ का भी जिक्र आया।

इस बयान के बाद कर्नाटक में कई राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने विरोध दर्ज कराया। FIR दर्ज हुई और बात अदालत तक जा पहुंची। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि कमल हासन की टिप्पणी से कन्नड़ भाषी जनता की भावनाओं को ठेस पहुंची है और यह भाषायी विविधता के खिलाफ है।

हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी

कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस केस की सुनवाई करते हुए यह साफ कहा कि “संविधान हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कोई व्यक्ति ऐसी बात कहे जिससे किसी वर्ग की भावना को ठेस पहुंचे।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि जब एक व्यक्ति का नाम और चेहरा जनता में प्रभाव रखता है, तब उसे और ज्यादा जिम्मेदारी से बोलना चाहिए। कमल हासन जैसे बड़े व्यक्ति से यह उम्मीद नहीं की जाती कि वो भाषाई असंतुलन को बढ़ावा देने वाले बयान दें।

 

कानून और अभिव्यक्ति की सीमाएं

भारत में अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत हर व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गई है, लेकिन इसके साथ ही अनुच्छेद 19(2) यह स्पष्ट करता है कि इस स्वतंत्रता के कुछ तार्किक प्रतिबंध हैं।

हाईकोर्ट ने भी अपने फैसले में इस बात का हवाला दिया कि कोई भी टिप्पणी जो देश की एकता, अखंडता या सांस्कृतिक विविधता को प्रभावित करती हो, उस पर नियंत्रण ज़रूरी है। कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की आज़ादी अधिकार है, लेकिन उसका दुरुपयोग अपराध में तब्दील हो सकता है। खासकर जब बात किसी धर्म, भाषा या क्षेत्रीय पहचान की हो।

राजनीति और समाज में प्रतिक्रिया

कमल हासन के बयान और कोर्ट की टिप्पणी पर राजनीति में भी हलचल देखने को मिली। जहां कुछ नेता इस फैसले को भाषाई सम्मान की जीत बता रहे हैं, वहीं कुछ लोगों ने इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक मानते हुए आलोचना की है।

 

हालांकि आम जनता का बड़ा तबका इस बात से सहमत नजर आया कि मशहूर व्यक्तित्वों को जिम्मेदारी के साथ बोलना चाहिए, क्योंकि उनके शब्द लाखों लोगों को प्रभावित करते हैं। कर्नाटक में कई युवाओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सोशल मीडिया पर कोर्ट के फैसले का स्वागत किया।

कमल हासन की प्रतिक्रिया

इस पूरे मामले पर कमल हासन की तरफ से अब तक कोई सीधी प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन उनके प्रवक्ता ने इतना जरूर कहा कि बयान को गलत संदर्भ में लिया गया। उनका मकसद किसी भी भाषा या समुदाय को नीचा दिखाना नहीं था।

हालांकि कानूनी प्रक्रिया जारी है और कोर्ट ने FIR को रद्द करने की याचिका खारिज कर दी है, जिससे मामला अब आगे बढ़ेगा। इससे ये भी स्पष्ट हो गया कि नाम और रुतबे के बावजूद कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है।

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