Pollachi sexual assault case: पोल्लाची यौन उत्पीड़न मामला तमिलनाडु में एक ऐसा कांड था जिसने पूरे राज्य को झकझोर कर रख दिया। 2019 में सामने आए इस मामले में कई महिलाओं को ब्लैकमेल करके उनका यौन शोषण किया गया। शुरुआत में स्थानीय पुलिस की लापरवाही के कारण पीड़िताओं को न्याय नहीं मिल पाया, लेकिन बाद में सीबीआई और विशेष लोक अभियोजक वी. सुरेन्द्र मोहन की मेहनत से न्याय की राह आसान हुई।
शुरुआत में पुलिस की लापरवाही
पोल्लाची यौन उत्पीड़न मामला फरवरी 2019 में उस वक्त सुर्खियों में आया जब एक कॉलेज छात्रा ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। उसने बताया कि कुछ लड़कों ने उसका वीडियो बनाकर उसे ब्लैकमेल किया और उसके साथ जोर-जबरदस्ती की। इस शिकायत के बाद पुलिस ने मामले की जांच तो शुरू की लेकिन पहली ही गलती उन्होंने पीड़िता की पहचान उजागर करके कर दी। इससे दूसरी लड़कियां जो इसी गिरोह का शिकार हुई थीं, वो आगे आने से डर गईं।
पुलिस की इस लापरवाही की वजह से मामला दबता चला गया। मीडिया और समाज के कुछ जागरूक लोगों के सामने लाने पर ही यह बात धीरे-धीरे बड़ी बनी। स्थानीय पुलिस की ढीली जांच से यह अंदेशा होने लगा था कि न्याय शायद ही मिल पाएगा। यही वजह थी कि कई लोग और संस्थाएं इस मामले की सीबीआई जांच की मांग करने लगे।
सीबीआई की जांच और सुरेन्द्र मोहन की भूमिका
तमिलनाडु सरकार ने जब मामले को सीबीआई को सौंपा तो लोगों को उम्मीद की एक किरण दिखी। सीबीआई ने गहराई से जांच शुरू की और पीड़िताओं से संपर्क साधने की कोशिश की। लेकिन पहले से डरी-सहमी पीड़िताएं सामने आने को तैयार नहीं थीं। ऐसे में सीबीआई टीम ने काउंसलिंग और मनोवैज्ञानिक सहायता उपलब्ध करवाई ताकि वे खुलकर बात कर सकें।
जनवरी 9, 2023 को सीबीआई ने वी. सुरेन्द्र मोहन को इस मामले में विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किया। उन्होंने अपनी भूमिका को गंभीरता से निभाया और पीड़िताओं को आश्वस्त किया कि उन्हें सुरक्षा और न्याय दोनों मिलेंगे। उनके प्रयासों से पीड़िताओं का आत्मविश्वास लौटा और वे गवाही देने को तैयार हुईं।
सुरेन्द्र मोहन ने बताया, “शुरुआत में लड़कियां सामने आने से हिचक रही थीं, लेकिन जब हमने उन्हें भरोसा और सहारा दिया, तब वे अपने अनुभव साझा करने को तैयार हुईं। इससे केस को मजबूती मिली और न्याय की दिशा में हम बढ़ पाए।”
अदालत की कार्यवाही और न्याय की दिशा में बड़ा कदम
फरवरी 24, 2023 से मुकदमे की सुनवाई महिला अदालत, कोयंबटूर में शुरू हुई। जज आर. नंधिनी देवी ने इस केस की गंभीरता को समझते हुए सुनवाई बंद कमरे में कराने का फैसला किया, जिससे पीड़िताएं सुरक्षित महसूस करें।
अदालत में पेश सबूतों और गवाहियों के आधार पर नौ आरोपियों को दोषी करार दिया गया। अदालत ने न केवल उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी बल्कि राज्य सरकार को आदेश दिया कि पीड़िताओं को कुल 85 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए। यह फैसला तमिलनाडु की न्यायिक प्रणाली के लिए एक मिसाल बन गया।
पीड़िताओं के लिए यह फैसला सिर्फ न्याय नहीं था, बल्कि उन्हें समाज में एक नई पहचान और सम्मान भी दिलाया। इससे उन महिलाओं को भी हिम्मत मिली जो अब तक अपने साथ हुए अपराध को लेकर चुप थीं।
समाज और प्रशासन के लिए सीख
यह पूरा मामला हमें कई अहम बातें सिखाता है। सबसे पहले, पीड़िताओं की गोपनीयता को बरकरार रखना कितना जरूरी है, ये पोल्लाची केस से साफ हो जाता है। दूसरी बात, अगर सही समय पर सही एजेंसी और ईमानदार अफसर को जिम्मेदारी दी जाए, तो न्याय की उम्मीद की जा सकती है।
वी. सुरेन्द्र मोहन और सीबीआई टीम ने जो काम किया, वह केवल एक केस का समाधान नहीं था, बल्कि यह समाज को एक भरोसा दिलाने वाला कदम था। जब न्यायपालिका और जांच एजेंसियां मिलकर काम करती हैं, तो बड़े से बड़े अपराधियों को भी सजा मिल सकती है।
पोल्लाची यौन उत्पीड़न कांड एक ऐसा मामला है जो तमिलनाडु ही नहीं, पूरे देश के लिए एक सबक है। यह मामला बताता है कि शुरुआत में भले ही सिस्टम में खामियां हो, लेकिन जब सही लोग, सही मंशा और सही तरीके से काम करते हैं, तो न्याय जरूर मिलता है। इस केस की सफलता के पीछे जहां पीड़िताओं की हिम्मत है, वहीं सीबीआई टीम और लोक अभियोजक वी. सुरेन्द्र मोहन की लगन भी अहम भूमिका में रही। उन्होंने न सिर्फ पीड़िताओं का विश्वास जीता, बल्कि समाज को भी यह सिखाया कि चुप रहना नहीं, बोलना ही सच्चा न्याय पाने का पहला कदम है।