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RBI Rule for loan : लोन लेने वालों को चुपचाप चूना लगा रहे बैंक, RBI ने नियमों में किया खुलासा

RBI Rule for loan : आज के वक्त में आम आदमी की सबसे बड़ी ज़रूरतों में से एक है – लोन। चाहे घर खरीदना हो, कार लेनी हो, बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाना हो या अचानक मेडिकल खर्च आ जाए, हर इंसान कभी न कभी बैंक के दरवाजे पर लोन के लिए दस्तक देता ही है। लेकिन बहुत से लोग बिना पूरी जानकारी के दस्तावेजों पर साइन कर देते हैं, और बाद में पता चलता है कि बैंक ने कुछ ऐसी शर्तें डाल दी हैं जिनके बारे में पहले बताया ही नहीं गया था। नतीजा ये होता है कि लोन की किस्तें चुकाने में पसीने छूट जाते हैं और ब्याज इतना लग जाता है कि पूरा बजट ही हिल जाता है।

हाल ही में सामने आए कुछ मामलों में यह बात उजागर हुई है कि कुछ बैंक लोन देते वक्त ग्राहकों को पूरी जानकारी नहीं देते, छुपे चार्जेज, फ्लोटिंग रेट और बीमा पॉलिसियों के नाम पर भारी भरकम रकम वसूलते हैं। इन सब पर आरबीआई की नजर है और उसने लोन देने की प्रक्रिया को लेकर कई सख्त नियम बना रखे हैं, जिन्हें जानना हर लोन लेने वाले के लिए जरूरी है।

 

बिना बताए चार्जेज और बीमा का खेल

अक्सर ऐसा होता है कि जब आप लोन के लिए बैंक में जाते हैं तो बैंककर्मी मीठे शब्दों में लोन की सारी खूबियां गिनाते हैं – कम ब्याज, जल्दी अप्रूवल, आसान प्रोसेस और टैक्स में छूट। लेकिन लोन मंजूर होते ही आपको पता चलता है कि आपके लोन में कुछ एक्स्ट्रा चार्ज जुड़ चुके हैं, जैसे प्रोसेसिंग फीस, टेक्निकल चार्ज, इंस्योरेंस प्रीमियम आदि।

बहुत से मामलों में बैंकों ने ग्राहकों को बिना जानकारी दिए जबरन बीमा पॉलिसी थमा दी और उसकी रकम लोन अमाउंट में जोड़ दी। न तो ग्राहक को पॉलिसी की कॉपी दी जाती है, न उसमें क्या कवर है यह बताया जाता है। ये सब खर्च ग्राहक को तब मालूम पड़ता है जब लोन की EMI तय रकम से ज्यादा कटने लगती है। आरबीआई ने इस पर सख्त नियम बना रखे हैं कि बिना ग्राहक की अनुमति के कोई भी चार्ज या बीमा नहीं जोड़ा जा सकता, और अगर जोड़ा गया है तो उसे तुरंत रिवर्स किया जाए।

फ्लोटिंग और फिक्स्ड रेट का झांसा

 

लोन देते वक्त ब्याज दर सबसे अहम मुद्दा होता है। बैंक अक्सर कहते हैं कि ये फ्लोटिंग रेट है – मतलब जैसे-जैसे आरबीआई की रेपो रेट घटेगी, आपकी EMI भी कम होती जाएगी। लेकिन सच्चाई ये है कि जब रेपो रेट बढ़ती है, तो बैंक बिना देर किए EMI बढ़ा देते हैं, लेकिन जब रेपो रेट घटती है, तो महीनों तक EMI में कोई कमी नहीं की जाती।

आरबीआई ने साफ कहा है कि फ्लोटिंग रेट पर लोन लेने वालों को रेट घटने का पूरा फायदा मिलना चाहिए, और हर छह महीने में बैंक को ब्याज दर रिवाइज करनी ही होगी। लेकिन कई बैंक इस नियम की अनदेखी करते हैं और ग्राहक को चुपचाप ज़्यादा ब्याज चुकाने पर मजबूर करते हैं। कुछ बैंक EMI बढ़ाने की बजाय लोन की अवधि बढ़ा देते हैं, जिससे ब्याज और ज्यादा देना पड़ता है। इन सब बातों को जानना और समझना बेहद जरूरी है।

फोरक्लोजर और प्रीपेमेंट पर छुपे दांव

 

बहुत से लोग यह सोचकर लोन जल्दी चुका देना चाहते हैं कि ब्याज से बच सकें, लेकिन जब वे बैंक से फोरक्लोजर की बात करते हैं तो बैंक अलग-अलग बहाने बनाता है – कभी कहते हैं कि ये ऑफर के तहत लिया गया लोन है, कभी कहते हैं कि फोरक्लोजर चार्ज लगेगा। जबकि आरबीआई ने यह साफ कहा है कि फ्लोटिंग रेट वाले लोन पर प्रीपेमेंट या फोरक्लोजर चार्ज नहीं लगाया जा सकता।

फिर भी कई बैंक ग्राहकों को भ्रम में डालकर ऐसे चार्ज वसूलते हैं। कई बार ग्राहक को लोन अकाउंट बंद कराने में हफ्तों लग जाते हैं, जिससे उन्हें मानसिक तनाव भी झेलना पड़ता है। जबकि सच्चाई यह है कि फोरक्लोजर की रिक्वेस्ट के बाद बैंक को एक तय समय में क्लियरेंस देना अनिवार्य है।

आरबीआई के दिशा-निर्देशों को जानना जरूरी है

रिजर्व बैंक ने ग्राहकों के हित में समय-समय पर स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए हैं, लेकिन जानकारी के अभाव में आम आदमी अक्सर बैंकों के जाल में फंस जाता है। जैसे कि हर बैंक को लोन अप्रूव करते वक्त ग्राहक को एक Key Fact Statement देना अनिवार्य है, जिसमें ब्याज दर, प्रोसेसिंग फीस, EMI, कुल ब्याज राशि और अन्य चार्जेस की पूरी जानकारी होनी चाहिए।

 

अगर बैंक यह जानकारी नहीं देता या बाद में उसमें बदलाव करता है, तो ग्राहक इसके खिलाफ शिकायत दर्ज कर सकता है। इसके अलावा आरबीआई के पास Integrated Ombudsman Scheme भी है, जहां आप ऑनलाइन या ऑफलाइन शिकायत कर सकते हैं और बैंक को जवाब देना अनिवार्य होता है। ग्राहकों को अपनी EMI, ब्याज दर और लोन की शर्तों पर नजर बनाए रखनी चाहिए और कोई भी गड़बड़ी दिखे तो तुरंत शिकायत करनी चाहिए।

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