Supreme Court

क्या मां-बाप औलाद को घर और प्रॉपर्टी से बेदखल कर सकते हैं?, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: Supreme Court

Supreme Court: कई बार घर में ऐसा वक्त आ जाता है जब मां-बाप को अपनी ही औलाद से रिश्ते तोड़ने का मन करता है। किसी की शादी के बाद बहू के साथ अनबन हो जाती है, तो किसी के बेटे या बेटी का व्यवहार बदल जाता है। ऐसे में बहुत से माता-पिता यह सोचते हैं कि क्या वे अपने बच्चों को अपनी प्रॉपर्टी से बेदखल कर सकते हैं? क्या उन्हें कानूनी हक है कि वो अपने बेटे या बेटी को घर से निकाल दें? इस सवाल का जवाब अब सीधे सुप्रीम कोर्ट से आया है और यह फैसला उन लाखों परिवारों के लिए राहत की सांस बन सकता है जो ऐसी ही स्थिति से गुजर रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा इस मामले में

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक केस की सुनवाई करते हुए साफ कहा है कि अगर कोई बेटा या बेटी अपने माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार करता है या उन्हें मानसिक रूप से परेशान करता है, तो माता-पिता को पूरा हक है कि वो उसे अपने घर और संपत्ति से बाहर कर दें। कोर्ट ने कहा कि यह मामला सिर्फ संपत्ति का नहीं, बल्कि सम्मान और शांति से जीने के हक का भी है।

इस फैसले में कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि अगर कोई प्रॉपर्टी माता-पिता की खुद की कमाई से खरीदी गई है, यानी वो खुद के नाम पर है और कोई कानूनी विरासत का मामला नहीं है, तो वो अपनी मर्जी से किसी को भी उसमें रहने देने या न देने का फैसला कर सकते हैं। यानी अगर बेटा-बेटी घर में झगड़ा कर रहे हैं, या उनका व्यवहार ठीक नहीं है, तो मां-बाप उन्हें साफ तौर पर कह सकते हैं कि अब इस घर में तुम्हारा कोई हक नहीं है।

ये फैसला क्यों ज़रूरी हो गया था

देश में ऐसे कई मामले सामने आते रहे हैं जहां बुजुर्ग माता-पिता अपने ही घर में तनाव और डर के माहौल में रह रहे थे। कभी बहू परेशान कर रही होती है, तो कभी बेटा मां-बाप की बात नहीं सुनता और उनका अपमान करता है। कई बार तो बुजुर्ग अपने घर में ही कैद होकर रह जाते हैं। ऐसे में ये फैसला एक तरह से उनके लिए ढाल जैसा है।

दरअसल जिस केस पर सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया, उसमें एक पिता ने अपने बेटे और बहू को घर से बेदखल कर दिया था क्योंकि वे दोनों उन्हें मानसिक रूप से परेशान कर रहे थे। जब यह मामला हाई कोर्ट तक पहुंचा तो फैसला बेटे के पक्ष में गया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले को पलटते हुए साफ कर दिया कि मां-बाप को अपने घर से किसी को भी निकालने का अधिकार है।

इस फैसले से आम लोगों को क्या मिलेगा फायदा

इस फैसले के बाद अब बुजुर्ग माता-पिता अपने अधिकार को लेकर और ज्यादा जागरूक हो सकते हैं। बहुत बार समाज के डर से या बच्चों के खिलाफ जाने की हिम्मत ना होने की वजह से माता-पिता चुप रहते हैं, लेकिन अब कानून उनके साथ है।

कानून यह कहता है कि अगर प्रॉपर्टी आपके नाम है और आपने खुद की कमाई से खरीदी है, तो आपको तय करने का पूरा हक है कि उसमें कौन रहेगा और कौन नहीं। ये फैसला सिर्फ कागज़ों पर नहीं, बल्कि असल जिंदगी में बुजुर्गों को राहत देने वाला है।

क्या कानूनी प्रक्रिया भी है इसके लिए

अगर कोई मां-बाप अपने बेटे या बेटी को घर से बेदखल करना चाहते हैं तो उन्हें एक लीगल नोटिस देना होता है जिसमें साफ लिखा जाता है कि अब उस व्यक्ति का घर से कोई लेना-देना नहीं है। इसके लिए ज़रूरी नहीं कि कोर्ट में लंबी-चौड़ी लड़ाई लड़ी जाए, बल्कि लोकल अथॉरिटी के पास एक एप्लिकेशन देकर भी यह काम किया जा सकता है।

राज्यों में बनाए गए Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007 के तहत यह अधिकार बुजुर्गों को दिया गया है। यह कानून उन्हें कानूनी सुरक्षा देता है और अगर बच्चे उन्हें जबरदस्ती घर में रहने पर मजबूर करते हैं, तो प्रशासनिक तौर पर उनकी मदद की जा सकती है।

अब समाज की सोच में बदलाव ज़रूरी है

कानून ने तो अपना काम कर दिया, लेकिन अब ज़रूरत है कि समाज में भी इस तरह की सोच बदले। बच्चों को समझना होगा कि माता-पिता का सम्मान करना सिर्फ एक संस्कार नहीं, बल्कि उनका हक है।

और माता-पिता को भी यह जानना जरूरी है कि अगर कोई उनका सम्मान नहीं कर रहा, उन्हें तकलीफ दे रहा है, तो चुप रहना ही प्यार नहीं होता। अब कानून उनके साथ है, और जरूरत पड़ने पर उसका इस्तेमाल करना गलत नहीं।

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