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क्या आपकी प्राइवेट प्रोपर्टी पर भी है सरकार का हक, सुप्रीम कोर्ट ने कर दिया साफ supreme court decision

supreme court decision: हमारे आसपास हर तरफ सरकारी इमारतें, पार्क, सड़कें और दूसरी संपत्तियां मौजूद हैं जिनका हम रोजमर्रा में इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में कई बार लोगों के मन में सवाल उठता है कि क्या सरकार किसी की भी निजी जमीन या प्रॉपर्टी को जब चाहे अपने कब्जे में ले सकती है? बहुत समय से इस बात को लेकर असमंजस बना हुआ था। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस पर बड़ा और साफ फैसला दिया है जिससे इस उलझन को पूरी तरह दूर कर दिया गया है। यह फैसला देश की जनता के लिए बहुत मायने रखता है क्योंकि अब सरकार की सीमाएं तय हो गई हैं।

सरकार को हर निजी संपत्ति पर नहीं है हक

सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस ऐतिहासिक फैसले में साफ कर दिया है कि सरकार को हर किसी की प्राइवेट प्रॉपर्टी पर अधिकार नहीं है। यानी अब कोई भी सरकार आपकी संपत्ति को अपनी मर्जी से नहीं ले सकती। यह फैसला 9 जजों की बेंच ने सुनाया जिसमें 7 जजों ने एकमत से कहा कि हर निजी जमीन पर सरकार का हक नहीं हो सकता। कोर्ट ने कहा कि सरकार किसी की प्रॉपर्टी तभी ले सकती है जब उसके लिए संविधान में कोई स्पष्ट व्यवस्था हो और वह वाकई जनहित से जुड़ा मामला हो। अब बिना मजबूत कारण के सरकार प्रॉपर्टी पर कब्जा नहीं कर सकती।

इससे पहले 1978 में एक फैसला आया था जिसमें कहा गया था कि निजी संपत्तियों को भी सरकार अगर चाहे तो सामुदायिक संसाधन मानकर अपने कब्जे में ले सकती है। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस पुराने फैसले को पलट दिया है और कहा है कि हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संसाधन नहीं कहा जा सकता। यानी अब सिर्फ जनहित के नाम पर निजी संपत्ति को कब्जे में लेना आसान नहीं होगा।

धारा 39 (बी) पर आया था यह फैसला

इस पूरे मामले की जड़ संविधान की धारा 39 (बी) से जुड़ी है। इसमें यह बात कही गई थी कि जनहित के लिए कुछ संसाधनों का सही तरीके से वितरण किया जाना चाहिए ताकि समाज में बराबरी बनी रहे। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सरकार जब चाहे किसी की भी संपत्ति को कब्जे में ले ले। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 39 (बी) का मतलब जन कल्याण जरूर है, लेकिन वह निजी अधिकारों को पूरी तरह खत्म नहीं कर सकता। निजी संपत्ति का भी संविधान में सम्मान है और वह भी सुरक्षित है।

 

इस फैसले में यह भी बताया गया कि संविधान के 42वें संशोधन में कुछ बदलाव किए गए थे ताकि धारा 39 (बी) को लागू किया जा सके। लेकिन अब कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि इन बदलावों के बाद भी सरकार का यह हक नहीं बनता कि वह किसी की प्रॉपर्टी को जब चाहे ले ले। जनता के अधिकार भी उतने ही जरूरी हैं जितना कि जनहित के कार्य।

मुंबई के प्रॉपर्टी मालिकों की याचिका से शुरू हुआ मामला

इस पूरे केस की शुरुआत हुई मुंबई के कुछ प्रॉपर्टी मालिकों की याचिका से। उन्होंने कोर्ट में कहा कि 1986 में महाराष्ट्र सरकार ने एक संशोधन किया था, जिसमें सरकार को यह अधिकार दिया गया था कि वह किसी भी निजी बिल्डिंग को मरम्मत या सुरक्षा के नाम पर अपने कब्जे में ले सकती है। प्रॉपर्टी मालिकों ने इस कानून को गलत बताया और कहा कि यह पूरी तरह भेदभावपूर्ण है। इसी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की और फिर इस बड़े फैसले को सुनाया गया।

 

सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में 16 याचिकाओं को एक साथ निपटाते हुए यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। इसमें कहा गया कि अब सरकार सिर्फ जनता की भलाई के नाम पर निजी संपत्ति नहीं ले सकती। उसे इसके लिए मजबूत कारण देने होंगे और यह साबित करना होगा कि यह कदम जरूरी है। अब प्रॉपर्टी मालिकों को यह डर नहीं रहेगा कि सरकार कभी भी उनकी जमीन या बिल्डिंग पर दावा कर सकती है। यह फैसला प्रॉपर्टी के मालिकों को एक तरह से राहत और सुरक्षा दोनों देता है।

नतीजा यह कि निजी संपत्ति का अधिकार और मजबूत हुआ

इस फैसले के बाद यह साफ हो गया है कि अब किसी की भी प्राइवेट प्रॉपर्टी पर सरकार यूं ही कब्जा नहीं कर पाएगी। इससे पहले लोग इस डर में रहते थे कि कहीं सरकार विकास या जनहित के नाम पर उनकी संपत्ति को न ले ले। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि सरकार को हर बात की सीमा में रहकर ही काम करना होगा। यह फैसला न सिर्फ संविधान की भावना को मजबूत करता है बल्कि नागरिकों को यह भरोसा भी देता है कि उनके अधिकार सुरक्षित हैं।

 

अब लोगों को यह समझने की जरूरत है कि निजी संपत्ति सिर्फ एक कागज का टुकड़ा नहीं बल्कि उनके मेहनत की कमाई होती है। और उस पर किसी और का जबरदस्ती हक नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक मिसाल है कि देश में कानून का राज है और आम आदमी की भी आवाज है।

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