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अब किराएदार को मिल सकता है मालिकाना हक, सुप्रीम कोर्ट का फैसला

भारत में किराएदारी को लेकर लंबे समय से कानूनी पेच बने हुए हैं। बहुत सारे मकान मालिक इस डर से मकान किराए पर नहीं देते कि किराएदार अगर सालों-साल वहीं रह गया, तो कहीं बाद में उस पर मालिकाना दावा न कर दे। इसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिससे देशभर के करोड़ों मकान मालिक और किराएदार प्रभावित हो सकते हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि कुछ विशेष परिस्थितियों में किराएदार भी मकान पर मालिकाना हक हासिल कर सकता है, लेकिन इसके लिए कई कानूनी शर्तें पूरी करनी होंगी। यह फैसला जितना किराएदारों के लिए उम्मीद भरा है, उतना ही मकान मालिकों के लिए चेतावनी भी।

फैसले की कानूनी पृष्ठभूमि और मामला क्या था

यह मामला महाराष्ट्र से सामने आया था, जहां एक व्यक्ति पिछले कई वर्षों से एक मकान में किराए पर रह रहा था। उसने दावा किया कि वह इतने लंबे समय से वहां रह रहा है कि अब वह उस संपत्ति पर मालिकाना हक का दावा कर सकता है। इस दावे को निचली अदालतों ने खारिज कर दिया था, लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की पूरी सुनवाई करने के बाद साफ किया कि अगर कोई किराएदार बिना विरोध और मालिक की अनुमति के 12 साल या उससे अधिक समय तक संपत्ति पर कब्जा बनाए रखता है और मालिक उस दौरान कोई कानूनी कदम नहीं उठाता, तो ऐसे में यह “एडवर्स पजेशन” यानी प्रतिकूल कब्जा माना जा सकता है। इस सिद्धांत के तहत व्यक्ति मालिक बन सकता है, भले ही उसने मकान खरीदा न हो।

एडवर्स पजेशन का कानून क्या कहता है

एडवर्स पजेशन एक पुराना कानूनी सिद्धांत है जिसके तहत अगर कोई व्यक्ति किसी संपत्ति पर लगातार 12 साल तक कब्जा करके बैठा है और असली मालिक ने इस दौरान कोई आपत्ति दर्ज नहीं की या कानूनी कार्रवाई नहीं की, तो कब्जा करने वाले को उस संपत्ति का मालिकाना हक मिल सकता है।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सिर्फ किराए पर रहना एडवर्स पजेशन नहीं माना जाएगा। यदि किरायेदार ने रेंट एग्रीमेंट के बिना, बिना किराया दिए और बिना मालिक की अनुमति के रहना शुरू किया हो और मालिक ने भी चुप्पी साध ली हो, तभी यह मामला एडवर्स पजेशन के दायरे में आएगा। इसका मतलब यह नहीं कि कोई भी किराएदार जो वर्षों से मकान में रह रहा है, सीधे-सीधे मालिक बन जाएगा।

मकान मालिकों को क्यों होनी चाहिए सतर्कता

इस फैसले के बाद मकान मालिकों में हलचल बढ़ना लाजिमी है, क्योंकि बहुत से लोग सालों तक किराएदारों से बिना कोई रेंट एग्रीमेंट के ही काम चला लेते हैं। यही लापरवाही भविष्य में कानूनी मुसीबत का कारण बन सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि यदि मालिक समय पर कानूनी कार्रवाई करे, किरायेदारी का दस्तावेज हो, और किराया नियमित रूप से लिया जाए, तो किराएदार कभी भी ऐसा दावा नहीं कर सकता। इसलिए अब मकान मालिकों को यह जरूरी हो गया है कि वे हर किरायेदार के साथ लिखित समझौता करें, समय-समय पर उसका नवीनीकरण करें और किराया बैंक ट्रांजैक्शन या रसीद के जरिए लें। यह छोटी सी सतर्कता भविष्य में बड़ी कानूनी लड़ाई से बचा सकती है।

किराएदारों के लिए भी एक सबक

इस फैसले से यह भी साफ हो गया है कि अगर कोई किराएदार यह सोच रहा है कि वह लंबे समय तक मकान में रहकर खुद को मालिक घोषित कर सकता है, तो ऐसा अब भी इतना आसान नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह जरूर कहा है कि एडवर्स पजेशन लागू हो सकता है, लेकिन इसके लिए पूरी कानूनी प्रक्रिया और परिस्थितियाँ महत्वपूर्ण हैं।

अगर किराएदार ने मालिक की अनुमति से मकान में रहना शुरू किया, किराया दिया, रसीद ली, तो उसे कभी भी मालिकाना हक नहीं मिल सकता। इसलिए किराएदारों को भी यह समझ लेना चाहिए कि वे केवल एक कानूनी अनुबंध के आधार पर उस मकान में रह रहे हैं और उस अनुबंध की शर्तों का पालन करना ही बेहतर रहेगा।

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