Supreme Court: सोचिए आप अपने ही मकान को पाने के लिए अदालत के चक्कर काटते रहो, और सामने वाला किरायेदार उस घर में सालों से बिना चिंता रह रहा हो। ऐसा ही हुआ एक बुज़ुर्ग मकान मालिक के साथ, जिसने 64 साल पहले एक छोटा सा घर किराए पर दिया था। तब शायद उसने भी नहीं सोचा होगा कि उसकी अगली पीढ़ियां भी उस घर के लिए कोर्ट के चक्कर लगाएंगी। मगर अब आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है, जो बहुत से मकान मालिकों के लिए उम्मीद की किरण बन गया है।
क्या था पूरा मामला और कितने साल चला
ये केस मध्य प्रदेश के एक शहर से जुड़ा हुआ है। मकान मालिक ने सालों पहले अपना एक घर एक परिवार को किराए पर दिया था। शुरुआत में सब ठीक चला लेकिन वक्त बीतने के साथ किरायेदार ने घर खाली करने से मना कर दिया। मामला कोर्ट में गया और निचली अदालत से होते हुए हाईकोर्ट फिर आखिर में सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।
64 साल तक मकान मालिक को इंतजार करना पड़ा। इतने लंबे समय तक एक प्रॉपर्टी को लेकर कानूनी लड़ाई लड़ना बहुत ही थका देने वाला और भावनात्मक रूप से भारी अनुभव होता है। लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार मकान मालिक के पक्ष में फैसला सुनाया, तो उस फैसले ने न सिर्फ उन्हें राहत दी बल्कि देशभर के लाखों मकान मालिकों को एक मजबूत संदेश भी दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा अपने फैसले में
सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि कोई भी किरायेदार अगर मकान मालिक की सहमति के बिना सालों तक घर पर कब्जा जमाए बैठा है, तो उसे वैध नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा कि किराया देना किसी को मालिक नहीं बना देता। और जब मकान मालिक ने वैध तरीके से किरायेदार को नोटिस दिया है, तो उसे खाली करना ही होगा।
फैसले में ये भी कहा गया कि लंबे समय तक कब्जा रहने से किरायेदार को कोई अतिरिक्त अधिकार नहीं मिल जाते। यह कानून का दुरुपयोग माना जाएगा अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर कोर्ट के रास्ते को लंबा खींचकर मकान पर कब्जा बनाए रखे। इस फैसले ने उस भ्रम को भी तोड़ा है कि अगर कोई किराएदार सालों तक घर में रह ले, तो वो मालिकाना हक मांग सकता है।
क्यों ये फैसला बाकी लोगों के लिए भी है अहम
यह मामला भले एक परिवार का था, लेकिन इसका असर लाखों लोगों पर पड़ेगा। बहुत से ऐसे मामले आज भी चल रहे हैं, जहां मकान मालिक अपने ही घर को पाने के लिए सालों से केस लड़ रहे हैं। किराएदार घर खाली नहीं करते और कई बार कोर्ट का सहारा लेने के बावजूद नतीजा जल्दी नहीं निकलता।
अब जब सुप्रीम कोर्ट ने इतना साफ फैसला दिया है, तो निचली अदालतों में भी ऐसे केस जल्दी निपटाए जा सकते हैं। ये फैसला उन मकान मालिकों को भी हिम्मत देगा जो अब तक सोचते थे कि क्या वाकई कोर्ट उनका साथ देगा या नहीं।
आम लोगों के लिए इससे क्या सबक मिलते हैं
अगर आप मकान मालिक हैं, तो इस फैसले से ये जरूर समझिए कि वक्त रहते लीगल एक्शन लेना कितना जरूरी है। किराया एग्रीमेंट समय पर रिन्यू कराना, किराया रिसीट्स का रिकॉर्ड रखना और किरायेदार के साथ संवाद बनाए रखना बहुत जरूरी है। वहीं किरायेदारों को भी समझना होगा कि किराया देना एक जिम्मेदारी है और मकान मालिक की संपत्ति का सम्मान करना हर किसी की ड्यूटी है।
ये फैसला एक मिसाल है कि कानून देर से सही लेकिन इंसाफ करता है। और जब सुप्रीम कोर्ट जैसे सर्वोच्च संस्थान से ऐसा निर्देश आता है, तो उसकी गूंज पूरे देश में सुनाई देती है।