Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट का ताज़ेतर का एक बार फिर प्रॉपर्टी से जुड़ा नियमों के लेकर साफ संदेश दिया गया है कि किराए पर रहने से मालिकाना हक नहीं मिल सकता। मामला 63 साल पुराना था, लेकिन इसका सर आज के समय में भी हजारों मकान मालिक और किराया दारू के लिए मिसाल बन गया है।
मामला कुछ ऐसा है कि एक व्यक्ति 1960 से एक संपत्ति में किराए पर रह रहा था। कितने सालों तक उसने किराया तो दिया, लेकिन समय के साथ उसे पर ऐसा कब्जा कर लिया जैसे वह खुद उसका मालिक हो। जब असली मालिक ने संपत्ति खाली करवाने की कोशिश की, तो मामला कोर्ट तक पहुंच गया। अब जाकर सुप्रीम कोर्ट ने साफ साफ कहा कि किराएदार कितने भी साल से एक ही मिल्कत में रह क्यों नहीं रहे हो उस संपत्ति का हक मालिकाना हक नहीं बदलता।
क्या था मामला और कैसे पहुंचा सुप्रीम कोर्ट तक
यह मामला उत्तर भारत के एक शहर का है, एक बुजुर्ग किराएदार 1960 से एक संपत्ति में रह रहा था। वह समय भीम तारा, लेकिन जैसे जैसे समय बिता, उसने खुद को उसे मकान का असली मालिक समझना शुरू कर दिया।
मलिक ने जब मकान वापस लेने की कोशिश की, अदालत में दावा कर दिया कि इतने लंबे समय से रहने के बाद अब वह उसे जगह का असली हकदार है। पहले लोकल कोर्ट और फिर हाईकोर्ट गया। लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा तो स्थिति बिल्कुल साफ हो गई।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा अपने फैसले में
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि किराए पर रहना सिर्फ निवास का अधिकार देता है, नेकी मालिक बनने का अधिकार। यह भी कहा कि किरायेदारी चाहे 50 साल की हो या 100, वह मालिकाना हक में कर सकती जब तक की मालिक खुद ना कोई कानूनी अधिकार दे।
इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी माना कि अगर किराएदार ने मलिक की अनुमति से किराए की अवधि पूरी की है और किराया नियमित दे रहा है, वह कब्जेदार नहीं बल्कि किराएदार ही रहेगा। इस केस में किराया लंबे समय से नहीं दिया गया था और किराएदार खुद को मलिक बताने लगा था, क्योंकि कानून की नजर में बिल्कुल गलत है।
भविष्य में इस फैसले का क्या असर होगा
यह फैसला उन हजारों मकान मालिकों के लिए राहत लेकर आया है जो लंबे समय से किराया दारू के कब्जे से परेशान है। कई बार देखा जाता है कि लोग मकान किराए पर देते हैं और फिर किराएदार उन्हें ही बाहर निकालने की कोशिश करता है। इस फैसले के बाद अब कानून की स्थिति बिल्कुल साफ हो गई है कि किरायेदारी से मालिकाना हक नहीं बनता, और अगर कोई ऐसा दावा करता है तो वह कानून के खिलाफ होगा। इस से प्रॉपर्टी विवादों की संख्या में कमी आने की संभावना है।
मकान मालिकों को क्या सावधानी बरतनी चाहिए
कानून फिल्म मकान मालिक के साथ हो, लेकिन कुछ जरूरी सावधानियां हर मलिक को रखनी चाहिए। किरायेदारी का लिखित एग्रीमेंट होना चाहिए और उसे समय समय पर रिन्यू भी करना चाहिए।
दूसरा, किराया बैंक ट्रांसफर या रसीद से लेना चाहिए ताकि भविष्य में कोई विवाद होने पर सबूत के तौर पर पेश किया जा सके। यदि किराएदार समय पर किराया नहीं दे रहा है या एग्रीमेंट की शर्तों का उल्लंघन कर रहा है, तो जल्दी कानूनी कार्यवाही शुरू कर देनी चाहिए।
संपत्ति पर कब्जे से जुड़े कानून को समझना जरूरी है
पति पर कब्जे से जुड़ा कानून साफ कहता है कि अगर कोई व्यक्ति मलिक की मर्जी के बिना संपत्ति पर 12 साल से अधिक समय तक लगातार और खुले तौर पर कब्जा रखता है और मालिक कोई कानून कार्यवाही नहीं करता, तो कब से डर को कुछ अधिकार मिल सकते हैं। बात किराएदार की होती है, तो यह नियम लागू नहीं होता, क्योंकि किराएदार मलिक की अनुमति से रह रहा होता है। इसलिए इस तरह के कब्जे में “एडवर्स पजेशन” नहीं माना जाएगा और कोर्ट उसे मालिक नहीं मानेगी।