tenant rights: यह बात अब आम हो गई है कि शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में लोग किराए पर मकान लेकर रहते हैं। चाहे नौकरी की वजह से हो या पढ़ाई के कारण, लाखों लोग आज किसी न किसी शहर में किराए पर रहते हैं। लेकिन किराए पर मकान लेना केवल एक साधारण समझौता नहीं होता, बल्कि इसके पीछे कई कानूनी नियम-कायदे भी होते हैं, जिनके बारे में मकान मालिक और किराएदार दोनों को पूरी जानकारी होना जरूरी है। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि किराया कैसे और कितना बढ़ाया जा सकता है, किराएदार के क्या अधिकार हैं, और रेंट एग्रीमेंट की कानूनी महत्ता क्या है।
किराया बढ़ाने के नियम – क्या कहता है कानून?
कई बार ऐसा देखा गया है कि मकान मालिक अपनी मर्जी से किराया बढ़ा देते हैं, जिससे किराएदार को अचानक अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ता है। लेकिन यह जानना जरूरी है कि यह प्रक्रिया भी कानूनी दायरे में आती है और इसकी एक सीमा होती है। महाराष्ट्र रेंट कंट्रोल एक्ट, 1999 के अनुसार, मकान मालिक एक साल में अधिकतम 4% तक ही किराया बढ़ा सकता है। इसका मतलब यह है कि यदि आप हर महीने ₹10,000 किराया दे रहे हैं, तो अगले साल वह ₹10,400 से ज्यादा नहीं हो सकता।
अब सवाल यह उठता है कि यदि मकान मालिक घर में कोई सुधार करता है तो क्या किराया और बढ़ सकता है? इसका उत्तर है – हां, लेकिन कुछ शर्तों के साथ। यदि मकान में कोई विशेष सुधार जैसे कि नया फर्श, टाइल्स, पेंटिंग या अन्य सुधार कार्य होता है, तो मकान मालिक किराया 15% तक बढ़ा सकता है। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि उस इमारत में रहने वाले कम से कम 70% किराएदारों की लिखित सहमति हो। वहीं यदि मकान की संरचना में कोई बुनियादी मरम्मत जैसे छत या दीवार की मरम्मत की जाती है, तो किराया 25% तक बढ़ाया जा सकता है, लेकिन यह वृद्धि केवल मरम्मत की लागत की भरपाई तक ही सीमित होगी।
रेंट एग्रीमेंट का कानूनी महत्व
रेंट एग्रीमेंट केवल एक कागज का टुकड़ा नहीं होता, बल्कि यह मकान मालिक और किराएदार के बीच हुए समझौते को कानूनी मान्यता देता है। ज्यादातर मामलों में लोग 11 महीने का रेंट एग्रीमेंट बनवाते हैं क्योंकि इसे रजिस्ट्रेशन की जरूरत नहीं होती और इस पर लगने वाली स्टांप ड्यूटी भी कम होती है। लेकिन अगर कोई रेंट एग्रीमेंट 11 महीने से अधिक के लिए बनता है, तो उसे स्थानीय सब-रजिस्ट्रार कार्यालय में रजिस्टर्ड कराना अनिवार्य होता है। यह रजिस्टर्ड एग्रीमेंट न केवल दोनों पक्षों को कानूनी सुरक्षा देता है बल्कि भविष्य में किसी भी विवाद की स्थिति में स्पष्ट दिशा-निर्देश भी प्रदान करता है।
रजिस्टर्ड एग्रीमेंट की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि उसमें किराया, सुरक्षा राशि, अवधि, मेंटेनेंस, बिजली-पानी के बिल, और मकान खाली करने की शर्तें पहले से स्पष्ट रूप से लिखी होती हैं। इससे कोई भी पक्ष बाद में अपने मन से नियम नहीं बदल सकता और न ही विवाद की स्थिति में झूठे आरोप लगा सकता है।
किराएदार के अधिकार और बुनियादी सुविधाएं
किराएदार को मकान में रहने के दौरान कुछ मूलभूत सुविधाएं मिलना उसका कानूनी अधिकार है। मकान मालिक उसे बिजली, पानी, सीवरेज जैसी जरूरी सुविधाएं देने से मना नहीं कर सकता। यदि किसी मकान मालिक द्वारा इन सुविधाओं को जानबूझकर रोका जाता है, तो किराएदार स्थानीय अदालत में शिकायत दर्ज करा सकता है और कानूनी कार्रवाई कर सकता है।
किराया बढ़ाने से पहले भी कुछ नियम लागू होते हैं। मकान मालिक को किराएदार को 30 से 60 दिन पहले लिखित सूचना देना अनिवार्य है। इसका मतलब यह है कि मकान मालिक किराएदार को पहले से सूचित किए बिना किराया नहीं बढ़ा सकता। यह व्यवस्था किराएदार को मानसिक और आर्थिक रूप से तैयार रहने का समय देती है।
लंबी अवधि के लिए रेंट एग्रीमेंट – क्या करें, क्या न करें
कुछ लोग 11 महीने से ज्यादा के लिए मकान किराए पर लेना चाहते हैं, जैसे कि 2 साल या 5 साल के लिए। ऐसे मामलों में लंबी अवधि का रेंट एग्रीमेंट बनवाना सही विकल्प होता है, लेकिन इसे सब-रजिस्ट्रार कार्यालय में रजिस्टर कराना अनिवार्य है। 5 साल तक का रजिस्टर्ड रेंट एग्रीमेंट कानूनी रूप से मान्य होता है और इसमें मकान मालिक और किराएदार दोनों के अधिकारों और जिम्मेदारियों का पूरा उल्लेख होता है।
इस तरह के एग्रीमेंट की सबसे अहम बात यह होती है कि अगर पांच साल की अवधि पूरी होने के बाद मकान मालिक प्रॉपर्टी खाली कराना चाहता है, तो वह बिना कोई कारण बताए केवल एक लिखित नोटिस देकर ऐसा कर सकता है। इस स्थिति में किराएदार कानूनी तौर पर आपत्ति नहीं कर सकता। इसलिए लंबी अवधि का रेंट एग्रीमेंट बनवाते समय किराएदार को पहले से इसकी जानकारी होनी चाहिए और सभी शर्तों को ध्यान से पढ़कर ही दस्तखत करना चाहिए।
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दोनों पक्षों की जिम्मेदारी
आखिर में बात यही है कि मकान किराए पर देना या लेना केवल मौखिक सहमति का मामला नहीं है, बल्कि इसमें कानूनी जिम्मेदारियां जुड़ी होती हैं। मकान मालिक को यह समझना चाहिए कि किराएदार उसका ग्राहक नहीं बल्कि एक कानूनी रूप से सुरक्षित पक्ष है और किराएदार को यह समझना चाहिए कि वह केवल अस्थायी रूप से प्रॉपर्टी का उपयोग कर रहा है, उसका मालिक नहीं है। दोनों ही पक्षों को रेंट एग्रीमेंट बनवाना चाहिए और उसमें हर शर्त को स्पष्ट रूप से शामिल करना चाहिए ताकि भविष्य में किसी भी प्रकार की असहमति या विवाद की स्थिति न आए।
किराया बढ़ाना, सुविधाएं देना, मरम्मत कराना, मकान खाली कराना, यह सब कानूनी रूप से तय नियमों के तहत होना चाहिए। अगर हर व्यक्ति इन नियमों को समझकर रेंट एग्रीमेंट करता है, तो मकान मालिक और किराएदार दोनों के बीच विश्वास बना रहेगा और कानून का पालन भी सही ढंग से होगा।