Property Rights

क्या पति अपनी प्रोपर्टी से पत्नी को कर सकता है बेदखल, जानिए कानूनी प्रावधान : Property Rights

Property Rights : घर में झगड़ा हो जाए, रिश्तों में खटास आ जाए और बात तलाक या अलगाव तक पहुंच जाए, तो सबसे पहले जो सवाल सामने आता है वो यही होता है – क्या अब पत्नी को उस घर से जाना पड़ेगा जो पति के नाम है? क्या पति अपनी प्रॉपर्टी से पत्नी को बेदखल कर सकता है? यह सवाल बहुत सारे लोगों के मन में रहता है, खासकर तब जब शादीशुदा जिंदगी में परेशानियाँ चल रही हों।

लेकिन इस पूरे मामले में सिर्फ भावनाओं से नहीं, बल्कि कानून से सोचना जरूरी है। क्योंकि भारत में विवाह और उसके बाद की स्थिति को लेकर कई कानून बने हुए हैं, जो पति-पत्नी दोनों के अधिकारों और कर्तव्यों को निर्धारित करते हैं। खासकर महिलाओं के अधिकार को लेकर कानून अब पहले से काफी सख्त और स्पष्ट हो चुका है। ऐसे में जानना जरूरी है कि पत्नी के पास क्या कानूनी हक हैं और क्या पति उसे अपनी संपत्ति से निकाल सकता है या नहीं।

कानून की नजर में पत्नी का अधिकार

भारत के घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम 2005 (Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005) के तहत पत्नी को “Shared Household” यानी साझा घर में रहने का पूरा हक है, भले ही वह संपत्ति पति की अकेली मिल्कियत हो। इसका मतलब ये है कि शादी के बाद जो भी घर पति-पत्नी ने साथ में साझा रूप से इस्तेमाल किया है, उसे साझा घर माना जाएगा और पत्नी को उसमें रहने से नहीं रोका जा सकता।

यह नियम सिर्फ वैध पत्नी पर लागू होता है, यानी अगर शादी कानूनन मान्य है, तभी पत्नी को यह अधिकार मिलता है। यहां यह भी जरूरी है कि वह घर उनकी वैवाहिक जिंदगी का हिस्सा रहा हो। अगर पति की संपत्ति में पत्नी साथ में रहती रही है, चाहे वो किराए का घर हो या पति की खुद की प्रॉपर्टी, उसे कानून shared household ही मानता है और पत्नी को उसमें रहने से नहीं निकाला जा सकता।

घर से बेदखली को लेकर कोर्ट का नजरिया

अदालतों ने इस मुद्दे पर कई बार स्पष्ट किया है कि पति चाहे तो भी पत्नी को उस घर से जबरन नहीं निकाल सकता जिसमें दोनों साथ रहते आए हैं। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के कई फैसलों में यह कहा गया है कि महिला का वैवाहिक घर में रहने का अधिकार उसकी गरिमा और सुरक्षा से जुड़ा हुआ है, जिसे छीना नहीं जा सकता।

अगर पति ऐसा करने की कोशिश करता है, तो पत्नी अदालत से सुरक्षा की मांग कर सकती है और अदालत तुरंत हस्तक्षेप करके पत्नी को रहने का अधिकार दिलवा सकती है। कुछ मामलों में कोर्ट ने यह भी माना है कि अगर घर ससुराल वालों के नाम है लेकिन पति-पत्नी उसमें साथ रहते थे, तब भी पत्नी को वहाँ से बेदखल नहीं किया जा सकता।

अगर घर पति के माता-पिता के नाम पर है तो?

यह स्थिति थोड़ी अलग होती है। अगर वह घर पति के माता-पिता की संपत्ति है और पति केवल उनके साथ रह रहा है, तो कोर्ट कुछ मामलों में यह मान सकता है कि पत्नी को उस घर में रहने का हक नहीं है, जब तक कि वह साफ तौर पर साबित न हो कि वह घर भी shared household की श्रेणी में आता है।

हालांकि यह पूरी तरह केस-टू-केस तय होता है। कई बार कोर्ट यह मान लेती है कि अगर पत्नी लंबे समय तक ससुराल में रही है और उसे कोई दूसरी वैकल्पिक जगह नहीं दी गई है, तो उसे वहीं रहने की अनुमति मिल सकती है। लेकिन अगर पति पत्नी को रहने के लिए वैकल्पिक घर देता है, तो कोर्ट उसे उस घर में शिफ्ट करने को कह सकती है।

क्या तलाक के बाद भी पत्नी को घर में रहने का हक है?

तलाक के बाद अगर पत्नी को कोई अल्टरनेटिव अरेंजमेंट नहीं मिला है और वह खुद से कमाने में सक्षम नहीं है, तो कोर्ट उसकी सुरक्षा और रहने की सुविधा के लिए पति को घर या किराए की जगह उपलब्ध कराने का आदेश दे सकती है।

हालांकि, तलाक के बाद shared household में रहने का अधिकार थोड़ा सीमित हो जाता है। अगर तलाक फाइनल हो चुका है और कोर्ट ने कोई स्पष्ट व्यवस्था कर दी है, तो उसी के अनुसार पालन करना होगा। लेकिन तब तक जब तक तलाक फाइनल नहीं होता, पत्नी shared household में रहने की हकदार होती है, और उसे कोई जबरन निकाल नहीं सकता।

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