Property Rights : कानूनी लड़ाई हो या घरेलू कलह, सबसे पहले सवाल उठता है – पत्नी का पति की प्रॉपर्टी पर हक कितना है? क्या पति उसे घर से निकाल सकता है? इन सवालों का जवाब अब कानून में साफ-साफ मौजूद है।
भारत में शादी सिर्फ एक रिश्ता नहीं, बल्कि दो परिवारों के बीच सामाजिक, भावनात्मक और कानूनी समझौता होता है। लेकिन जब यह रिश्ता किसी वजह से टूटने की कगार पर होता है या आपसी विवाद खड़ा हो जाता है, तो अक्सर विवाद संपत्ति को लेकर होता है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल उठता है – क्या पत्नी को पति की प्रॉपर्टी पर अधिकार है? अगर है तो कितना, और क्या पति उसे अपनी संपत्ति से बेदखल कर सकता है? इन सब सवालों का जवाब भारतीय कानून ने बहुत साफ तरीके से दिया है, जो हर महिला और पुरुष को जानना जरूरी है।
कानून में पत्नी का अधिकार कैसे तय होता है
भारतीय कानून, खासकर हिंदू विवाह अधिनियम 1955 और घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 में साफ तौर पर बताया गया है कि अगर पति-पत्नी एक साथ रहते हैं, तो पत्नी को “मैरिटल होम” यानी उस घर में रहने का पूरा अधिकार है, चाहे वह घर पति के नाम पर हो या उसके माता-पिता के नाम पर।
इसका मतलब यह हुआ कि शादी के बाद पत्नी को उस घर में रहने से कोई नहीं रोक सकता, जब तक कि कोर्ट से कोई अलग आदेश ना हो। यहां तक कि अगर पति उस घर का अकेला मालिक है, तब भी वह अपनी पत्नी को उस घर से जबरन नहीं निकाल सकता।
पति की संपत्ति में पत्नी का हिस्सा कब बनता है
अब सवाल उठता है कि क्या पत्नी को पति की खुद की कमाई या पैतृक संपत्ति में हिस्सा मिलता है? इसका जवाब थोड़ा पेचीदा है। भारतीय कानून के अनुसार, पत्नी का पति की जिंदा हालत में संपत्ति पर कोई कानूनी हिस्सा नहीं बनता, जब तक कि पति वसीयत के जरिए उसे कुछ ना दे या आपसी समझौते में कुछ तय ना हो।
हालांकि, यदि तलाक होता है, तो पत्नी भरण-पोषण (maintenance) के लिए कोर्ट में आवेदन कर सकती है। तब कोर्ट पति की आय, जीवनशैली और संपत्ति को देखते हुए फैसला देता है कि पत्नी को कितनी राशि दी जाए। लेकिन यह सिर्फ भरण-पोषण होता है, कानूनी रूप से हिस्सेदारी नहीं।
घरेलू हिंसा कानून में महिला के अधिकार
2005 में लागू हुए घरेलू हिंसा अधिनियम ने महिलाओं के अधिकारों को और मजबूती दी है। इस कानून के तहत अगर पति पत्नी को मानसिक, शारीरिक या आर्थिक रूप से प्रताड़ित करता है, तो पत्नी उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकती है और उसी घर में रहने का आदेश भी कोर्ट से ले सकती है।
इस कानून का सबसे मजबूत पक्ष यही है कि पत्नी को “residence order” के ज़रिए घर से निकाले जाने से सुरक्षा मिलती है। कोर्ट कह सकती है कि पत्नी उसी घर में रहेगी, चाहे वह पति की अकेली संपत्ति क्यों न हो। ऐसे मामलों में पति को मजबूरी में उसी घर में पत्नी को रखने की व्यवस्था करनी पड़ती है।
तलाक के बाद संपत्ति को लेकर स्थिति क्या रहती है
अगर पति-पत्नी के बीच तलाक हो जाता है, तो संपत्ति को लेकर स्थिति थोड़ी अलग हो जाती है। तलाक के समय पत्नी कोर्ट में permanent alimony या संपत्ति में हिस्सा मांग सकती है, लेकिन यह कोर्ट के विवेक पर निर्भर करता है।
कई बार पति को कुछ हिस्सा देना पड़ता है या पत्नी को घर, गाड़ी, या फ्लैट जैसी संपत्ति सौंपनी पड़ती है। यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि पति की आर्थिक स्थिति क्या है, शादी कितने साल चली, और पत्नी का खुद का कोई इनकम सोर्स है या नहीं।
पति द्वारा बेदखल करने पर कानूनी कार्यवाही
अगर पति किसी विवाद या झगड़े के कारण पत्नी को घर से निकाल देता है या निकालने की धमकी देता है, तो पत्नी घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत FIR दर्ज करवा सकती है और कोर्ट से सुरक्षा और रहने के आदेश की मांग कर सकती है।
कई बार कोर्ट पति को यह आदेश देती है कि वह पत्नी के रहने के लिए अलग घर की व्यवस्था करे या उसी घर में उसे अलग हिस्सा देकर रहने दे। यानी पति अपनी पत्नी को जबरन घर से निकाल नहीं सकता। यह एक संविधानिक अधिकार का हिस्सा है जिसे कोई भी कोर्ट आसानी से नजरअंदाज नहीं कर सकती।